गाँव कनेक्शन सर्वे : क्या आप मानते हैं दहेज़ देना कम हुआ?

Update: 2017-08-24 17:48 GMT
आज भी बेटी के हाथ पीले करने के लिये देना पड़ता है दहेज।

लखनऊ। नीतिका पंत की शादी में उनके पिता को कर्जा लेना पड़ा। “हम तीन बहनों की शादी के लिए पापा को बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ा” नीतिका बताती हैं।गाँवों में आज भी दहेज को लेकर बड़ी रूढ़ीवादिता है, गाँव कनेक्शन के ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों के बीच किए गए सर्वे के दौरान शादीशुदा महिलाओं से जब बात की गई तो 80 प्रतिशत ने माना कि उनके माता-पिता ने शादी के समय दहेज दिया था, जबकि 81 प्रतिशत लड़कियों ने कहा कि वह जानती हैं कि उनकी शादी के समय उनके माता-पिता को दहेज देना पड़ेगा।

कानपुर जिले के चौबेपुर ब्लॉक के निगोहा गाँव की रहने वाली रेखा पाण्डेय (33 वर्ष) कहती हैं, “हमारी शादी में हमारे पापा ने बहुत मुश्किल से दहेज का इंतजाम किया था, हर कोई दहेज का इंतजाम बहुत मुश्किल से करता है, पर इस पर रोक नहीं लग रही है,” आगे बताती हैं, “कई लोग कहते हैं बिटिया की खुशी में जो देना है दे दो, हमें कुछ नहीं चाहिए, ये भी दहेज लेना है बस मांगने का तरीका अलग है।” गाँव कनेक्शन ने 25 जिलों में 5000 ग्रामीण महिलाओं से बात कर उनके मन की बात जानी। इस ग्रामीण सर्वे में गलती की संभावना 1.39 प्रतिशत है।

ये भी पढ़ें- सर्वे : 45 % ग्रामीण महिलाएं बनना चाहती हैं टीचर तो 14 % डॉक्टर, लेकिन रास्ते में हैं ये मुश्किलें भी

“सर्वे के लिए उत्तर प्रदेश के कुल 820 ब्लॉक में से 350 ब्लॉक में ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों से सवालों के जवाब 25 दिन तक लिए गए।” सर्वे करने वाली गाँव कनेक्शन इनसाइट टीम की सदस्य अंकिता तिवारी बताती हैं, “इस दौरान 15 से 45 साल की लड़कियों और महिलाओं से बात की गई।” देश भर में अपराध के आंकड़ों को दर्ज करने वाली संस्था एनसीआरबी वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में हर रोज दहेज हत्या के 21 मामले दर्ज होते हैं। इनमें 35 प्रतिशत आरोपियों को ही सजा मिली।

लोकसभा में केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने भी माना वर्ष 2012, 2013 और 2014 के दौरान देश में दहेज प्रताड़ना के कुल 3.48 लाख मामले दर्ज हुए हैं। इसने पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर और उसके बाद राजस्थान और आंध्र प्रदेश का नंबर आता है। इन तीन वर्षों के दौरान कुल 24,771 मामले दहेज हत्या के दर्ज किए गए, इनमें सबसे ज्यादा 7,048 उत्तर प्रदेश में हुए।

‘’समाज में दहेज की परंपरा तभी खत्म हो सकती है, जब हर परिवार बेटी-बेटों को एक समान दर्जा दे। अगर लड़की शिक्षित है, तो उसका ओहदा किसी भी तरह के दहेज से बड़ा है। लड़कियों को अच्छी शिक्षा ज़रूर दें और गलत तरह से लिए जाने वाले दहेज को ना कहें। यही दहेज को समाज से खत्म करने का सबसे कारगर तरीका है,’’ बनारस हिन्दू विश्वविद्याल के समाजशास्त्री डॉ. सोहन यादव समझाते हैं।

ये भी पढ़ें- घर से बाहर निकलना चाहती हैं उत्तर प्रदेश की ग्रामीण महिलाएं, देख रहीं समाचार और जाती हैं ब्यूटी पार्लर

गाँवों में आज भी लड़कियों से उनकी शादी के बारे में मर्जी नहीं पूछी जाती। उनकी शादी घरवाले अपनी मर्जी से ही तय करते हैं। लखनऊ के ठाकुरगंज में रहने वाली दिव्या वैश्य (40 वर्ष) बताती हैं, “मेरी शादी में मेरी राय नहीं ली गई क्योंकि मैं गाँव की हूं और गाँव में ऐसा कम होता है, लेकिन मैं अपनी बेटी की शादी के समय उससे जरूर पूछूंगी कि उसकी राय क्या है।”

कानपुर नगर के आवास विकास में रहने वाली आयुशी कटियार (19 वर्ष), जो बीटेक कर रही हैं, ने बताया, “दहेज एक ऐसी कुप्रथा बन गई है, जो आसानी समाप्त होने वाली नहीं, शादी बिना दहेज के होनी चाहिए ये सब जानते हैं पर हकीकत में ऐसा होता नहीं है,” वह आगे कहती हैं,“हमारी पढ़ाई में बहुत पैसे खर्च हो गये हैं मेरे मम्मी पापा के पास इतने पैसे नहीं है जिसे वो मेरी शादी में दे सके पर मजबूरन उन्हें इंतजाम करना पड़ेगा।”

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Similar News