जानिए कैसे कम जगह और कम पानी में करें ज्यादा मछली उत्पादन

Update: 2018-11-22 05:33 GMT

जहांगीराबाद (बाराबंकी)। पिछले तीन वर्षों से कम लागत, कम जगह और कम पानी में परेवज़ खान (40 वर्ष) ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन कर रहे है। भारत सरकार ने उनके इस मॅाडल को नीली क्रांति के अंर्तगत पूरे देश में 'रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम' (आरएएस) परियोजना के नाम से इस वर्ष शुरू किया है। रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम यानि, जिसमें पानी का बहाव बना रहता है और पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है।

बाराबंकी से करीब आठ किलोमीटर दूर जहांगीराबाद ब्लॉक के मिश्रीपुर गाँव में परवेज खान ने ढ़ेड एकड़ में 25x25 फीट के 38 टैंक बनाए हुए हैं। इन टैंकों में करीब ढाई लाख पंगेशियस मछली हैं और दो लाख के करीब पंगेशियस मछली के बीज हैं।

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भारत सरकार, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के आकड़ों के अनुसार, देश के डेढ़ करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। सभी प्रकार के मछली पालन (कैप्चर एवं कल्चर) के उत्पादन को साथ मिलाकर 2016-17 में देश में कुल मछली उत्पादन 11.41 मिलियन तक पहुंच गया है।

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इस सिस्टम के फायदे के बारे में परवेज़ बताते हैं, "इसमें कम जगह और कम पानी लगता है। अगर साधारण मछली पालन किया जाता है तो एक एकड़ तालाब में सिर्फ 15 से 20 हजार ही पंगेशियस मछली डाल सकते है। एक एकड़ में करीब 60 लाख लीटर पानी होता है। अगर तालाब में 20 हजार मछली डाली हैं तो एक मछली को 300 लीटर पानी में रखा जाता है। जबकि इस सिस्टम के जरिए एक हजार लीटर पानी में 110-120 मछली डालते है। इस हिसाब से एक मछली को केवल नौ लीटर पानी में रखा जाता है।"

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पिछले तीन वर्षों से आरएएस सिस्टम से मछली पालन कर रहे है।

भारत में मत्स्य पालन तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2022 तक देश में नीली क्रांति के तहत मछली उत्पादन 15 मिलियन टन तक पहुंचाना है। भारत सरकार द्वारा तीन हजार करोड़ से पूरे देश में नीली क्रांति योजना की शुरू की गई थी। ऐसे में इस परियोजना से काफी लाभ होगा।

मछलियों के बीज परवेज़ कलकत्ता से लाते हैं। "इस सिस्टम में जो पानी मछलियों के लिए प्रयोग किया जाता है। उस पानी को फेका नहीं जाता है बल्कि एक सीमेंटेड टैंक में ट्रीटमेंट के आधार उस पानी दुबारा प्रयोग किया जाता है। इसमें पानी की बचत काफी कम होती है।" परवेज़ ने बताया। इस सिस्टम को तैयार करने में करीब 60-65 लाख रुपए की लागत आई है।

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सिस्टम से परवेज़ लाखों की कमाई तो कर रहे

परवेज़ के इस आधुनिक मॉडल को देखकर भारत सरकार ने पूरे देश में इसे परियोजना के रूप में लागू किया है। "भारत सरकार द्वारा इनके फार्म का निरीक्षण किया गया और उसी के आधार पर नीली क्रांति के अंतर्गत 'रिसरकुलर एक्वाकल्चर सिस्टम' के नाम से योजना भी शुरू की गई है। इस योजना के अंतर्गत मत्स्य पालक को 50 लाख की यूनिट कॅास्ट की दर से एक लघु इकाई का प्रोजेक्ट लगाने का प्रावधान है। उत्तर प्रदेश में इस सिस्टम को पूरा करने का लक्ष्य भी दिया गया है।" ऐसा बताते हैं, लखनऊ स्थित मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक डॉ. हरेंद्र प्रसाद।

परियोजना के बारे में डॉ. प्रसाद बताते हैं, "भारत सरकार द्वारा शुरू की गई इस परियोजना के अंर्तगत सामान्य वर्ग के लाभार्थियों को 40 प्रतिशत अनुदान की राशि दी जाती है। तथा कमजोर वर्ग जिसके अंर्तगत महिला, एससी, एसटी सम्मिलित हैं, उन्हें 60 प्रतिशत अनुदान राशि दी जाती है। इस प्रकार 50 लाख पर 30 लाख रुपए ( महिला, एससी, एसटी) राशि का प्रावधान है और सामान्य वर्ग को 20 लाख रुपए की राशि का प्रावधान है।"

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इस सिस्टम से परवेज़ लाखों की कमाई तो कर रहे है, लेकिन इसमें आने वाली समस्याओं के बारे में खान बताते हैं, "इस सिस्टम को चलाने के लिए बिजली की ज्यादा खपत होती है पर यूनिट साढ़े आठ रुपए देते हैं। ऐसे में पूरे महीने में करीब 50 से 60 हजार रुपए का बिजली का बिल देना पड़ता है। प्रदेश में मछली पालकों को कृषि का दर्जा मिला हुआ है। फिर भी हमको बिजली का भुगतान करना पड़ता है जबकि कई राज्यों में ऐसा नहीं है।"

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इस सिस्टम के जरिए एक एकड़ में 5 लाख मछलियों के बीज डालते है।

आरएएस सिस्टम की खासियत के बारे में खान बताते हैं, "इस सिस्टम के जरिए एक एकड़ में 5 लाख मछलियों के बीज डालते हैं। अगर एक टैंक में कोई बीमारी फैलती है तो दूसरे तालाब में उनको बीमारी नहीं होती है मतलब कि बीमारी कंट्रोल में रहती है। इसके साथ-साथ मछलियों को पकड़ना काफी आसान होता है। अगर छोटे किसान दो टैंक से भी इस सिस्टम की शुरूआत कर सकते हैं। भारत सरकार द्वारा जो योजना चलाई जा रही है। वो 50 लाख की योजना है और उससे मछली पालक आठ टैंक खोल सकता है।"

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