महाराष्ट्र की महिला किसान वनिता बालभीम मनशेट्टी एक साल में 15 फसलें उगाती हैं। उन्होंने 2014 में 'एक एकड़ में खेती' का फार्मूला अपनाया और अब अपने और बच्चों के भविष्य को लेकर निश्चिंत हैं। क्योंकि इस फार्मूले ने उन्हें आत्म निर्भर किसान जो बना दिया है।
उस्मानाबाद जिले के चिवड़ी गाँव में रहने वाली वनिता की चार बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी ग्रेजुएशन कर रही है जबकि सबसे छोटी सातवीं कक्षा की छात्रा है। उनके पति बालभीम मनशेट्टी खेती के साथ-साथ ठेकेदारी भी करते हैं। सड़क बनाना, बोरिंग कार्य, जमीन की पटाई आदि करवाते हैं। घर का आधा खर्च वहीं उठाते हैं लेकिन पत्नी के सफल किसान होने पर उन्हें गर्व है। वनिता के पास गाएं भी हैं। वह दूध भी बेचती हैं।
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दो साल पहले जाना जैविक खेती का रहस्य
महिला किसान वनिता को दो साल पहले इस फार्मूले का पता लगा। वह स्वयं शिक्षण प्रयोग (एसएसपी) एवं कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके)के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने गई थीं। उसी दौरान उनको इस फार्मूले का पता चला। एसएसपी के सदस्य इन महिलाओं को स्व उद्यम की कार्यशाला में ले गए। यह कार्यशाला सिद्धागिरी में हुई। उसमें महिला प्रतिभागियों को जैविक खेती के बारे में जानकारी दी गई। वहां उन्होंने देखा कि एक एकड़ खेत में करीब 100 फसलें उगाई गई थीं। ये वही फसलें थीं जिनका रोजमर्रा के जीवन से ताल्लुक है। इतने छोटे से खेत में इतनी सारी फसलें देख वे हैरान रह गईं और मन में जिज्ञासा भी घर कर गई कि क्या वे अपने एक एकड़ खेत में ऐसा कर पाएंगी। वनिता ने उसी समय फैसला किया कि वह ऐसा करके दिखाएगी।
वेबसाइट 'इंडियाएग्रीडाटइन' की रिपोर्ट के मुताबिक आमतौर पर लोग एक एकड़ खेत में सिर्फ एक कुंतल जिंस उगा पाते हैं। लेकिन जैविक खेती से यह आंकड़ा बढ़कर चार कुंतल तक पहुंच सकता है। वनिता पति बालभीम के हाई बीपी और मधुमेह को लेकर चिंतित थी। जैविक खेती का फार्मूला उसके दिमाग में घर कर गया। उसने तुरंत फैसला किया कि वह अब खेती करेगी ताकि परिवार को भरपेट और पौष्टिक भोजन मिल सके। वह जानती थी कि खेती में इस्तेमाल होने वाली रासायनिक खाद और कीटनाशक ही विभिन्न रोगों का कारण है। वह अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन कराएगी।
अनाज, दाल और सब्जी उगा संवारी जिंदगी
जैविक खेती की शुरुआत में उसने दो एकड़ खेत बटाई पर लिया। एक एकड़ खेत पहले से था। इसके बाद वनिता ने पति से खेती की मंजूरी ली और बन गई किसान। उसने शुरुआत में अनाज, दालें और सब्जियां उगाईं। एक एकड़ में उसने अकेले खेती की। बाकी दो एकड़ पर वह पति का हाथ बंटाती। उसमें उसने सोयाबीन और अंगूर की खेती की। बीते साल भी उसने इन्हीं फसलों को दोहराया। हालांकि उस साल सूखा पड़ा था। लेकिन बीते साल ही उन्होंने एक एकड़ में 15 फसलें उगाईं। इनमें अनाज, दालें और सब्जियां (हरी सब्जियां भी) शामिल थीं। खेत के 68 फीसदी हिस्से में वह बरसात में खरीफ फसल उगाती हैं तो जाड़ों में रबी।
दो फसली मौसम में कमाए साढ़े 44 हजार रुपए
वनिता बताती हैं कि वह घर के इस्तेमाल का अनाज और दालें रोकने के बाद सब्जियां मसलन प्याज, बैंगन बाजार में बेच देती हैं। इससे उनके परिवार का काम भी चल जाता है और चार पैसे भी मिल जाते हैं। वह कहती हैं कि बीते साल करीब 3900 किलो का जिंस और सब्जी उगाई। इसमें से 25 फीसदी का इस्तेमाल घर में हुआ। इसमें प्रति एकड़ करीब साढ़े नौ हजार रुपए की लागत आई। इसके लिए खाद भी अपनी गाय के गोबर से ही बनाई। इससे दो फसली मौसम में उनकी आय साढ़े 44 हजार रुपए हो गई। यानि उन्हें प्रति एकड़ 18 हजार रुपए की आमदनी हुई। इतनी कमाई के बाद वनिता फूली नहीं समा रही थीं।
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वह बताती हैं कि पहले मेरे पति सिर्फ घर के मसलों में राय-बात करते थे लेकिन अब मेरी कामयाबी से वह भी खुश हैं। घर में कमाई के दो स्रोत होने से हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो गया है। अब मैं खुद ही खेती करती हूं। मेरे पति मुझे काफी सहयोग करते हैं। वह बताती हैं कि मेरे खेतों में काम करने से मेरे बच्चों का भी आत्मविश्वास बढ़ गया है। गाँव के अन्य लोग मुझे प्रगतिशील महिला किसान का तमगा देते हैं।
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