ये किसान अनाज बैंक चलाकर मोटे अनाज की खेती को दे रहा बढ़ावा 

Update: 2018-04-13 14:20 GMT
सावां, कोदो जैसी फसलों की करते हैं खेती

केन्द्र सरकार लगातार मोटे अनाज की खेती को खबर बढ़ावा दे रही है, कई बड़ी कंपनियां मोटे अनाजों के उत्पाद भी बनाने लगी हैं, लेकिन एक किसान ऐसे भी हैं जो पिछले कई वर्षों न केवल मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं, साथ ही अनाज बैंक चलाकर दूसरे किसानों को भी बीज उपलब्ध करा रहे हैं।

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गोरखपुर ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 किमी उत्तर पश्चिम दिशा में जंगल कौड़िया ब्लॉक के राखूखोर चिकनी गाँव के दर्जनों किसान मोटे अनाज की खेती करते हैं। किसान राम निवास मौर्या (45 वर्ष) पिछले पांच साल से मोटे अनाज उगा रहे हैं साथ ही उनका अनाज बैंक भी चला रहे हैं।

सरकार ने 2018 को राष्ट्रीय मोटे अनाज का वर्ष भी घोषित करने का निर्णय लिया है। पोषण सुरक्षा को प्राप्त करने के लिए बाजरा की खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं क्योंकि 2016-17 के फसल वर्ष में खेती का रकबा घटकर एक करोड़ 47.2 लाख हेक्टेयर रह गया जो रकबा वर्ष 1965 - 66 में तीन करोड़ 69 लाख हेक्टेयर था।

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सावां की खेती

रामनिवास मौर्या कहते हैं, “हमारे पूर्वज तो बहुत साल से इनकी खेती करते आ रहे थे। लेकिन अब नहीं करते हैं। गोरखपुर के गोरखपुर एनवायरमेंटल ग्रुप की सहायता से हमें इनके बीज मिले थे। उनकी खेती की, फायदा भी हुआ।”

रामनिवास मौर्या अनाज बैंक भी चलाते हैं, जहां से किसानों को बीज उपलब्ध कराते हैं। ताकि इनकी खेती को बढ़ावा मिल सके। पिछले कुछ साल में मोटे अनाज की मांग काफी बढ़ी है, किसान इसे कम पानी में उगा सकते हैं। आजकल रागी के बिस्किट भी आते हैं। मोटे अनाज की मांग तो बढ़ रही है लेकिन गाँवों में उसकी बुवाई बढ़ने के बजाए घट रही है।

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वो आगे कहते हैं, “हमारा गाँव राप्ती और रोहिन दो नदियों के बीच में रहता पड़ता है, कभी सूखा पड़ा रहता है तो कभी बाढ़। ऐसे में इन फसलों पर इनका कोई असर नहीं पड़ता है। इसमें धान गेहूं से ज्यादा फायदा हो रहा है।” राम निवास मौर्या की तरह ही उनके गाँव के बाबूलाल मौर्या, रमेश मौर्या जैसे दर्जनों किसान भी इनकी खेती करके मुनाफा कमा रहे हैं।

बाजारा की खेती

मडुवा, कोदो, सावां मोटे अनाजों की श्रेणी में आता है और यह बहुत पौष्टिक होता है। पिछली दो साल लगातार सूखा पड़ने से जहां किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा वहीं यहां के किसानों ने काफी मुनाफा हुआ। कम वर्षा होने के कारण वह सही तरीके से धान की फसल की बुआई नहीं कर पाते हैं। कृषि वैज्ञानिक किसानों को हमेशा यह सलाह देते हैं कि ऐसी स्थिति में उन्हें खेती के दूसरे विकल्प को अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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इनमें कम पानी की जरूरत होने के कारण उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं होती है। सिंचाई की पूरी व्यवस्था न होने के कारण ऐसी भूमि पर कम पानी वाली फसल लगाना ही लाभदायक होता है। इसके साथ ही मानसून फेल होने पर भी ज्यादा चिंता नहीं होती क्योंकि खेती के लिए दूसरे विकल्प मौजूद होते हैं।

बाजार में मोटे अनाज वाले उत्पाद और मल्टीग्रेन आटे की मांग बढ़ रही है। ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और शुगर का लेवल संतुलित बनाए रखने के लिए मोटा अनाज अमीरों और शहरी मध्यवर्ग के भोजन का अनिवार्य हिस्सा बन गया।

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