नई दिल्ली। भारत में संकट से जूझ रहे किसानों की जिंदगी बदलने वाला सुधार कार्यक्रम इस साल निर्धारित लक्ष्य से 91.6% पीछे है। देशभर में लगभग 250 कृषि बाज़ारों (585 में से) को 2015-16 तक साझा राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाना था, लेकिन मार्च 2016 तक आठ राज्यों में सिर्फ़ 21 बाज़ारों को ही राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (एनएएम) प्लेटफार्म से जोड़ा जा सका है।
किसान के उत्पाद के लिए जितनी कीमत आप चुकाते हैं, एक किसान को औसतन उसका 10 से 30% से अधिक नहीं मिल पाता। इसकी वजह है किसान अपने उत्पाद को सीधे उपभोक्ताओं या बड़ी कंपनियों को नहीं बेच सकता। वजह है पुराने कानून, जिसमें कई स्तरों पर एजेंट्स को कमीशन देना पड़ता है और ये एजेंट आमतौर पर राजनेताओं से जुड़े होते हैं।
इस धीमी रफ्तार के बावजूद कृषि मंत्रालय द्वारा 14 अप्रैल 2016 को जारी एक बयान के अनुसार, 2018 तक एनएएम के तहर 585 बाज़ारों को जोड़ने के लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इसका मतलब है कि दो सालों में 564 बाज़ारों को जोड़ना होगा, ये आंकड़ा पिछले 10 महीनों में जोड़े गए बाज़ारों (21) का 26 गुना है।
भारत में कृषि बाजार (2016)
राज्य का कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) कानून उस क्षेत्र के लिए अनाज, दालों, फलों और सब्जियों जैसे कृषि उत्पादों की ख़रीद को विनियमित करता है। ये उत्पादों पर कई तरह के कर लगाकर किसानों के लिए रोड़ा अटकाता है और बड़ी कंपनियों को सीधे बिक्री नहीं करने देता। अधिकांश राज्यों में अधिकांश कमोडिटीज में एपीएमसी अधिनियम की मौजूदगी से किसानों को अपने उत्पाद केवल सरकार नियंत्रित विपणन यार्डों में बेचने को मजबूर किया गया है। दिसंबर 2015 की नीति आयोग की रिपोर्ट में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने और किसानों के लिए खेती लाभकारी बनाने को कहा गया है, एपीएमसी बाज़ार यार्ड तकनीक के साथ विपणन अक्षमताओं का शिकार हैं जिससे किसानों को कम पैसा मिलता है।
बिहार एकमात्र राज्य है जिसने 2006 में एपीएमसी अधिनियम को निरस्त कर दिया था। केरल ने कभी एपीएमसी अधिनियम को लागू नहीं किया, लेकिन विपणन का आधारभूत ढांचा भी विकसित नहीं किया। 2015-16 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है, एपीएमसी कई तरह के शुल्क लगाता है, जो कि गैरपारदर्शी हैं और इसलिए राजनीतिक शक्ति का स्रोत रहे हैं।