लखनऊ। स्मार्टफोन और इंटरनेट को लेकर महिलाओं की झिझक तोड़ने और उन्हें जागरुक करने के लिए चलाए जा रहे गूगल इंडिया और टाटा ट्रस्ट के प्रोग्राम इंटरनेट साथी का असर दिखने लगा है। महिलाएं मोबाइल और टेबलेट से मेहंदी की डिजाइन से लेकर खाने तक की रेसिपी खोज रही हैं, कई महिलाओं ने इसी के सहारो रोजगार के जरिए तलाश लिए हैं।
एक इंटरनेट साथी तीन से चार गांवों की 500-800 महिलाओं को जागरुक करती हैं, मार्च तक हम प्रदेश के 32 हजार गांवों तक पहुंच जाएँगे और इस दौरान करीब 40 लाख महिलाओं को जागरुक करने का लक्ष्य रखा गया है।मिहिर मेहन, प्रोजेक्ट काउंसलर, यूपी
उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के गौडैचा की रहने वाली रेनू वर्मा (22 वर्ष) को पिछले वर्ष इंटरनेट साथी के तौर पर चुना गया था। पहली बार स्मार्टफोन हाथ में पकड़ने वाली रेनू गांव की तमाम महिलाओं और दूसरे लोगों की मदद करती हैं। वो बताती हैं, “पढ़ाई छूटने के बाद मैं दुनिया से कटा-कटा सा महसूस करने लगी थी. लेकिन हाथ में ये (टेबलेट) आ जाने से अब लगता है वापस दुनिया से जुड़ गई हूं और ज़रुरत पढने पर लोगों की मदद भी करती हूं।”
हमारी कोशिश महिलाओं की झिझक तोड़ना है। इंटरनेट साथी की मदद से पहले वो मेहंदी और खाने की रेसिपी खोजती हैं, फिर शॉपिंग और अपने काम की दूसरे काम करने लग जाती हैं। हम लोग इंटरनेट साथी (मास्टर ट्रेनर) आने वाले दिनों में गांव में ही रोजगार देने की भी तैयारी में हैं।अमिता जैन, यूपी रीजन हेड, टाटा ट्रस्ट
रेनू की तरह गूगल इंडिया और टाटा ट्रस्ट उत्तर प्रदेश में दिसंबर 2016 तक 8400 महिलाओं/लड़कियों को एक स्मार्ट फोन और टेबलेट देकर इंटरनेट साथी बना चुका है। ये इंटरनेट साथी अपने इलाके की 20 लाख महिलाओं को जागरुक भी कर चुकी हैं। प्रोजेक्ट के यूपी काउंसलर मिहिर मेहन बताते हैं, “ एक इंटरनेट तीन से चार गांवों की 500-800 महिलाओं को जागरुक करती हैं, मार्च तक हम प्रदेश के 32 हजार गांवों तक पहुंच जाएँगे और इस दौरान करीब 40 लाख महिलाओं को जागरुक करने का लक्ष्य रखा गया है।”
प्रोजेक्ट की जरुरत के बारे में टाटा ट्रस्ट की यूपी रीजन प्रमुख अमिता जैन बताती हैं, “पहले तो ग्रामीण महिलाओं के लिए मोबाइल ही बड़ी बात थी फिर स्मार्टफोन आया तो वो उससे लगातार दूर भागती रहीं। इस प्रोग्राम का लक्ष्य उऩकी झिझक तोड़ना है, उनके ही बीच की महिला (इंटरनेट साथी) जब मोबाइल और टेबलेट के चलाकर उसके फायदे गिनाती हैं तो वो भी आसानी से समझ जाती हैं।”
वो आगे जोड़ते हैं, “डिजिटलाइजेशन के इस दौर में पहले महिलाएं मेहंदी और खाने की रेसिपी देखती हैं फिर सिलाई के डिजाइन और कहीं-कहीं तो वो इससे गांव के तमाम लोगों को तमाम सरकारी योजनाओं के लिए जागरुक करती हैं। जो उनके जीवन में बदलाव ला रहा है।”
गूगल इंडिया और ट्राटा ट्रस्ट ने जुलाई 2015 में इसे पायलट प्रोजेक्ट में फिर अप्रैल 2016 में देशभर के सैकड़ों जिलों में एक साथ लागू किया। इंटरनेट साथी का लक्ष्य मार्च के आखिर तक प्रदेश के 75 हजार गांवों तक पहुंचना है। महिर बताते हैं, “दक्षिण भारत में एक महिला ने इसी से सीखकर ओलेक्स पर एक पुरानी कार खरीदकर अपने पति को दी और उऩ्हें ओला में रजिस्टर्ड करवा दिया। ऐसे तमाम कहानियां हमें जगह-जगह से मिल रही हैं।”
यूपी के रामपुर मथुरा ब्लॉक के बिसेसड़ गांव की रहने वाली संजू सिंह (21 वर्ष) की भी ज़िंदगी इंटरनेट ने काफ़ी हद तक बदल दी है, “मुझे एक मोबाइल और टेबलेट मिला है, जिसमें अनलिमेटड इंटरनेट है। मैं इसके माध्यम से अपने गांव की महिलाओं और सहेलियों को कई कुकरी शो, गाने सुनन, मेंहदी और ब्लाउज आदि के नए-नए डिजाइन दिखाती हूं, अब तक इलाके के कई बच्चे हमसे पढ़ाई के बारे में कुछ होता है तो पूछने आते हैं।”
राजस्थान के धौलपुर समेत कई जिलों में ये इंटरनेट साथी तमाम महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया बने हैं। लखऩऊ में कई जगह पर चिकनकारी करने वाली महिलाओं को नए डिजाइन इंटरनेट सखी बता रही हैं। प्रोजेक्ट का दायरा बढ़ाने के लिए गूगल और टाटा टस्ट्र कई पार्टनर (एनजीओ) के साथ मिलकर गांवों तक पहुंच रहे हैं।
अमिता जैन आगे बताती हैं, “इंटरनेट सखी को हमने मोबाइल और टेबलेट तो दे दिया लेकिन उनकी कमाई का जरिया अभी खोजना बाकी था इसिलए हम लोग अब ऐसे तरीकों पर काम कर रहे हैं कि इन महिलाओं को गांव में रहकर ही कमाई का जरिया मिल जाए।” प्रोजेक्ट के तहत पूरे देश में लाखों महिलाओं को इंटरनेट साथी बनाया जाना है।
इंटरनेट साथी
18 वर्ष से ऊपर की महिलाओं और लड़कियों को चुनकर उन्हें मोबाइल और इंटरनेट की ट्रेनिंग दी जाती है, फिर उन्हें एक स्मार्टफोन और एक टेबलेट (जिसमें अनलिमिटेड इंटरनेट डाटा होता है) दिया जाता है। ट्रेनिंग के बाद ये इंटरनेट साथी अपने आसपास के गांवों की महिलाओं को इंटरनेट के प्रति जागरुक करती हैं।
अतिरिक्त सहयोग- सीतापुर से वीरेंद्र शुक्ला (कम्यूनिटी जर्नलिस्ट)