नीतू सिंह, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। “दो वर्ष पहले 28 जुलाई 2015 को जब एक लडके ने मेरे ऊपर तेज़ाब डाला तो ऐसा लगा कि आज से हमारी जिन्दगी खत्म हो जाएगी, आसपास के लोग ताने देते थे। पिता ने भी कहा घर से निकल जाओ, मां ने मुझे बहुत सपोर्ट किया।” ये कहना है गाजीपुर जिले के रेहटी मालीपुर गाँव की रहने वाली एसिड अटैक पीड़िता रुपाली विश्वकर्मा (23 वर्ष) का। रुपाली कभी भोजपुरी फिल्मों में काम किया करती थीं, लेकिन आज वो अपने सपनों से कोसों दूर हैं। ऐसे ही न जाने कितनी एसिड अटैक सर्वाइवर्स को सम्मान के साथ जीना सीखा रहा शीरोज हैंगआउट कैफे।
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‘स्टॉप एसिड अटैक सर्वाइवर्स’ के लिए काम कर रही एक गैर सरकारी संस्था छाँव फाउंडेशन को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘शीरोज हैंगआउट कैफे’ की पहल के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। छाँव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला खुश होकर बताते हैं, “‘स्टाप एसिड अटैक कैम्पेन’ की शुरुआत महिला दिवस पर वर्ष 2013 में की गयी थी, राष्ट्रपति द्वारा जब एक एसिड अटैक सर्वाइवर्स ने ये सम्मान प्राप्त किया तो मुझे बहुत खुशी हुई।”
कानपुर जिले की रहने वाली रेशमा (32 वर्ष) का कहना है, “मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैंने पांच बेटियों को जन्म दिया था, मेरे पति लड़का चाहते थे। मैं 10 हफ्ते की गर्भवती थी मेरे पति ने मुझ पर एसिड डाल दिया था। लम्बे इलाज के बाद बमुश्किल ठीक हुई और मैंने एक बेटे को जन्म दिया।” वो आगे बताती हैं, “उस बुरे दौर को मैं याद नहीं करना चाहती हूं, जबसे मैं शीरोज कैफे आयीं हूं मुझे अपने लड़की होने पर गर्व है।”
एसिड अटैक पीड़िताओं की मदद करने के लिए ‘छाँव फाउंडेशन’ नाम की एक गैर सरकारी संस्था की शुरुआत दो युवा साथियों आशीष शुक्ला और आलोक दीक्षित ने वर्ष 2014 में की थी। इनको रोजगार देने के लिए इस संस्था ने 10 दिसंबर वर्ष 2014 में सबसे पहले शीरोज हैंगआउट कैफे की शुरुआत आगरा से की। इस कैफे की खासियत यह है कि यहां आने वालों को कोई बिल नहीं दिया जाता बल्कि उन्हें जितना समझ में आये वो दे सकते हैं। पुरस्कार लेने आगरा कैफे से गयीं रूपा बताती हैं, “मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे राष्ट्रपति भी सम्मानित कर सकते हैं, डांस करने का मन कर रहा है, आज मैं जी भर के हंसी हूं।”
दरिंदों को फांसी दिलाना ही मकसद
अलीगढ़ जिले के सुरेन्द्रनगर कालोनी में रहने वाली जीतू वर्मा (20 वर्ष) 17 जुलाई 2014 को अपनी जिन्दगी में कभी नहीं भुला पाएंगी। जीता शर्मा कहती हैं, “जब भी शीशे में अपना चेहरा देखती हूं सिर्फ यही सोचती हूं जबतक उन दरिंदों को फांसी नहीं हो जाती तबतक मुझे सुकून नहीं मिलेगा।”
रायबरेली की रहने वाली कमला (बदला हुआ नाम) का कहना है, “मेरे पड़ोस में रहने वाले एक परिवार ने मेरे साथ रेप किया और तेज़ाब डाल दिया , अगर मेरे बच्चे नहीं होते तो मैं आत्महत्या कर लेती, मैं जिन्दा होकर भी घुटन भरी जिन्दगी जी रही हूं।”
यहां आने वाले लोग इस कैफे को महज एक रेस्टोरेंट के नजरिए से खाने का एक स्थान समझ रहे हैं जबकि ये खाने का एक स्थान नहीं बल्कि इन एसिड अटैक सर्वाइवर्स की मदद करना ही इस कैफे का मुख्य उद्देश्य है। हमारी संस्था एसिड अटैक सर्वाइवर्स को सबसे पहले कानूनी और चिकित्सकीय सुविधा मुहैया करवाती है, जो जॉब करने के इच्छुक होते हैं उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है कम्प्यूटर चलाने से लेकर मोबाइल चलाने तक की जानकारी दी जाती है।
पार्थ साथी, रिसोर्स मैनेजर छाँव फाउंडेशन‘स्टाप एसिड अटैक सर्वाइवर्स’ के लिए काम कर रही एक गैर सरकारी संस्था छाँव फाउंडेशन को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘शीरोज हैंगआउट कैफे’ की पहल के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा नारी शक्ति पुरूस्कार से सम्मानित किया गया । ‘स्टाप एसिड अटैक कैम्पेन’ ने 8 मार्च 2017 को महिला दिवस पर चार वर्ष पूरे किये है । एसिड अटैक सर्वाइवर्स द्वारा शीरोज हैंगआउट कैफे लखनऊ सहित तीन जिलों में चलाए जा रहे हैं ।
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