बाल विवाह रोकना ही बना लिया जि़ंदगी का मकसद: रज्बुल निशां

Update: 2017-04-06 18:33 GMT
रज्बुल निशां

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बहराइच। खुद का बाल विवाह होने के बाद सामने आई परेशानियों का सामना करने वाली रज्बुल निशां अब तक सैकड़ों बाल विवाह रोक चुकी हैं। इतना ही नहीं उन्होंने हजारों महिलाओं को न्याय दिलाया और घरेलू हिंसा के खिलाफ अभियान चला रही हैं। शुरुआत में लोग इन्हें घर फोड़नी कहते थे क्योंकि महिलाओं को इन्होंने उनके हक के लिए बोलना सिखाया था।

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रज्बुल निशां (58 वर्ष) मूल रूप से सुल्तानपुर जिले की रहने वाली हैं। वो वर्ष 1995 में महिला समाख्या के साथ जुड़़ीं और घर से दूर बनारस में एक साल और गोरखपुर में 12 साल हजारों महिलाओं को सशक्त बनाने के बाद वर्ष 2008 से बहराइच जिले में जिला समन्यवक के पद पर कार्यरत हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सम्बन्ध में वर्ष 2015 में जो मामले दर्ज हुए हैं उनमें उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है। उत्तर प्रदेश में 35527, महाराष्ट्र में 31126, पश्चिम बंगाल में 33218 मामले दर्ज हुए हैं।

एक मुस्लिम महिला होने के नाते उन्हें घर से बाहर निकलने में किस तरह की चुनौतियों का सामना किया, इस बारे में वो बताती हैं, “जब हम अच्छा करने निकलते हैं तो परेशानियां तो आती ही हैं। जब घर से बाहर कदम निकाला तो साड़ी पहनकर घर से निकली, पति खुले विचारों के थे सासू माँ भी साड़ी पहनती थीं, तो उन्हें बहुत ज्यादा असहज नहीं लगा।“

समाज शास्त्र से मास्टर डिग्री करने वाली रज्बुल ने पांचवीं के बाद खुद पढ़ाई पूरी की। शादी के 16 वर्ष तक घर में रहने के बाद जब घर के बाहर कदम रखा तब तक ये स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थीं। खुद का बाल विवाह होने के बाद रज्बुल बताती हैं, “जब मेरी शादी हुई थी मुझे कुछ भी समझ नहीं थी, जब मैं महिला समाख्या से जुड़ी और जिन जिलों में काम करने का मौका मिला वहां बाल-विवाह, अशिक्षा जैसे विषयों पर काम करने का पूरा मौका मिला। सैकड़ों बाल विवाह रोके, हजारों लड़कियों को पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया, हजारों महिलाओं पर हो रही हिंसा को रोककर उन्हें न्याय दिलाया, हजारों ग्रामीण महिलाओं को साक्षर बनाया जिससे वो खुद सवाल कर सकें।”

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले चार वर्षों से 2015 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है जिसमें पीड़ित महिलाओं द्वारा पति और रिश्तेदारों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं।

घरेलू हिंसा के क्षेत्र में वर्ष 2005 से ब्रेकथ्रू संस्था उत्तर प्रदेश के कई जिलों में काम कर रही कृति प्रकाश का कहना है, “बाल विवाह भी एक तरह की घरेलू हिंसा है जिसमें लड़की की सहमति नहीं जानी जाती है, बाल विवाह घरेलू हिंसा को बहुत ज्यादा बढ़ावा देता है क्योंकि जिस उम्र में इनकी शादी होती है उस उम्र में इनमे निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती है। जिम्मेदारियों को संभालने के लिए पारिवारिक दबाव बनता है इसलिए आये दिन इनके घरेलू हिंसा होती रहती है।

रज्बुल निशां मुस्लिम महिलाओं को घर से बाहर निकालने के लिए सबसे पहले उन महिलाओं के शौहर से बात करती थी। काफी मशक्तों के बाद इन मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को घर से बाहर निकालने में सफल हो पायीं। आज ये महिलाएं न सिर्फ घर से बाहर निकली हैं, बल्कि खुद अपने हक़ के लिए सवाल करने लगी हैं। रज्बुल निशा 22 वर्षों से अलग-अलग जनपदों में किये कार्यों का अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “औरत की जिन्दगी उसके जन्म के साथ ही कठपुतली बना दी जाती हैं, शुरुआत महिलाओं को साक्षर बनाने के साथ की थी, उनको घर से बहार निकालने से लेकर वो खुद अपनी आवाज़ बन सकें इतना उन्हें जागरूक किया।”

रज्बुल निशा ने बताया, “जब से मैं घर से बाहर काम करने निकली तबसे मेरी माँ ने मेरा झूठा खाना नहीं खाया, उनका कहना है कि मै कई लोगों के साथ खाकर आती हूं।” रज्बुल निशा का कहना हैं, “मेरी आवाज़ कठोर है मै बहुत तेज बोलती हूं, इसलिए लोग सोचते हैं, मैं बहुत खूंखार हूं पर ऐसा नहीं है। मैंने कभी गलत फैसले नहीं लिए हैं, अपनी तेज आवाज़ को ही अपनी पहचान मानती हूं, कई मुद्दे तो कई बार मेरी तेज आवाज़ से ही सुलझ जाते हैं।

मिल चुका लक्ष्मीबाई सम्मान

रज्बुल निशा को उनके सराहनीय कार्यों के लिए रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड 2016 से सम्मानित किया गया। इस अवार्ड मिलने के बारे में वो कहती हैं, “ये मेरी अकेले की जीत नहीं है मेरे पूरे महिलाओं के समूह की जीत है, हजारों महिलाओं को न्याय दिलाने और घरेलू हिंसा के लिए मुहिम छेड़ने के लिए मुझे ये सम्मान दिया गया है।”

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