आज के सांसद अपना होमवर्क करके नहीं आते

विपक्षी सांसद न तो विषयवस्तु को प्रभावी ढंग से रख पाए और न निर्धारित समय में अपनी बात पूरी कर पाए। अनुशासन की कमी के कारण अनेक बार पीठासीन स्पीकर की झिड़कियां सुननी पडीं।

Update: 2019-12-14 05:51 GMT
फोटो साभार : प्रभात ख़बर

संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त हुआ, पास हुए बिलों में नागरिकता संशोधन विधेयक सबसे महत्वपूर्ण दिखाई पड़ा क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम होंगे। बहस टीवी पर देखकर ऐसा लगा कि 48 वक्ताओं में से अनेक तो बिल का आलेख ही पढ़कर नहीं आए थे क्योंकि उनका फोकस शरणार्थियों के बजाय भारतीय नागरिकों विषेशकर मुस्लिम आबादी पर केन्द्रित हो गया।

एक सांसद प्वाइंट ऑफ आर्डर तो उठा रहे थे लेकिन किस नियम के अन्तर्गत यह नहीं बता पाए। अनेक सांसद बार-बार भारतीय संविधान की धारा 14 सहित अन्य धाराओं की याद दिलाते रहे मानो हमारा संविधान पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के नागरिकों पर लागू होता है जो प्रताड़ित किए गए और भागकर भारत आए हैं।


असदुद्दीन ओवैसी ने बिल को फाड़कर समझ लिया कि बिल नामंजूर हो गया जबकि शिवसेना के सांसदों ने बिल को लोकसभा में स्वीकार्य पाया और राज्यसभा में अमान्य पाया। तृणमूल कांग्रेस के एक सदस्य गला फाड़ कर बोलने से बिल को अमान्य करवाना चाहते थे तो कांग्रस के वक्ता बिल में साम्प्रदायिकता खोजते रहे और यह नहीं बता पाए कि नेहरू लियाकत पैक्ट लागू न करना पाकिस्तान और बांग्लादेश का दिल्ली समझौता का उल्लंघन था या नहीं। इतने साल तक उन्होंने क्यों बर्दाश्त किया।

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विपक्षी सांसद न तो विषयवस्तु को प्रभावी ढंग से रख पाए और न निर्धारित समय में अपनी बात पूरी कर पाए। अनुशासन की कमी के कारण अनेक बार पीठासीन स्पीकर की झिड़कियां सुननी पडीं। आज का छात्र यह सब देखता है ओर कुछ हद तक इसका अनुकरण करता है।

अप्रासंगिक बातें और अनुशासनहीन व्यवहार तो मानो कार्यशैली में आ गया है। एक सांसद को 'मेक' और 'रेप' में समानता दिखी होगी और वह मेक इन इंडिया की जगह रेप इन इंडिया बताते रहे। किसका आवाहन कर रहे थे किसके लिए और इसका नागरिकता संशोधन बिल से क्या मतलब था वही जानें। कांग्रेस से अपेक्षा थी कि वह बताते कि पाकिस्तान में हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत से दो प्रतिशत कैसे हो गई और कांग्रेस सरकारें देखती रहीं।

वर्तमान सांसदों के भाषण सुनकर और देखकर देश की जनता याद करती होगी डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, हीरेन मुखर्जी, भूपेश गुप्ते, महावीर त्यागी, फीरोज गांधी, राम मनोहर लोहिया, एन जी रंगा, और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण, कहते हैं अटल जी के भाषण की प्रशंसा तो नेहरू जी ने भी की थी। उनके भाषणों को सुनकर और शैली को देखकर छात्र अपने में उसे उतारने का प्रयास करते थे। तब प्रखर वक्ता विपक्ष में ही हुआ करते थे कांग्रेस वक्ताओं के सामने चुनौती नहीं थी। आशा है अपने को अप्रासंगिक होता देख वर्तमान सांसद भी चुनौती स्वीकार करेंगे और सुधार लाएंगे।  

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