सिलाई करके दिव्यांग महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

Update: 2016-06-02 05:30 GMT
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मऊ। दो महीने पहले तक लोगों के लिए बोझ बनी दिव्यांग शमीमुनिशा आज सिलाई करके अपना खर्च चला रही हैं। शमीमुनिशा ही नहीं उनकी तरह और 15 दिव्यांग महिलाएं जिन्हें अभी तक बोझ समझा जाता था वो सिलाई कर के लोगों को गलत साबित कर रहीं हैं।

मऊ जिले के घोसी ब्लॉक के कारीसाथ गाँव की शमीमु

निशा (30 वर्ष) शारीरिक रूप से 70 प्रतिशत दिव्यांग हैं, दिव्यांगता के चलते शमीमुनिशा की शादी भी नहीं हो पाई। तीन बहनों और एक भाई में सबसे छोटी शमीमुनिशा के पिता के मौत के बाद भाई भी अलग हो गया।

शमीमुनिशा कहती हैं, “अब्बा की मौत के बाद घर चलाना मुश्किल हो रहा था, दोनों बहन और भाई की शादी हो गई। भाई की शादी के बाद वो भी हमसे अलग हो गया है। मां चूड़ी बेचती थी, लेकिन अब इतनी बूढ़ी हो गईं हैं कि कहीं जा नहीं पाती हैं।”

वो आगे बताती हैं, “रमेश भईया हमारे घर आए और बताया कि हमें सिलाई मशीन दी जाएगी। अब घर चलाने का खर्च आसानी से निकल जाता है।”

घोसी ब्लॉक की पंद्रह दिव्यांग महिलाओं को सिलाई मशीन दी गई है। सिलाई मशीन की सहायता से आज वो अपने घर का खर्च चला लेती हैं।

मऊ जिले के घोसी ब्लॉक के अरियासो गाँव के रमेश सिंह भगवान मानव कल्याण समिति नाम की गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। रमेश सिंह बताते हैं, “नारी संघ की बैठक में कारीसाथ गाँव में गया था, वहां पर मैंने शमीमुनिशा को देखा। मुझे लगा कि इनके लिए कुछ करना चाहिए।”

वो आगे कहते हैं, “नारी संघ की बैठक के बाद मैंने अपने साथियों से कहा कि महिलाओं के लिए कुछ न कुछ काम जरूर है। क्या हम दिव्यांग महिलाओं के लिए कोई काम उपलब्ध नहीं हो करा सकते हैं। मैंने शमीमुनिशा से पूछा कि आप क्या काम कर सकती हैं। इस पर शमीमुनिशा ने कहा कि यदि हमें सिलाई मशीन मिल जाए तो सिलाई करके हम अपनी रोजी रोटी चला सकते हैं।”

इसके बाद सलाहकार समिति की बैठक बुलाई गई और दिव्यांग शमीमुनिशा को सिलाई मशीन देने पर विचार विमर्श किया गया और यह निर्णय लिया गया कि लोगों से दान एवं सहयोग लेकर के शमीमुनिशा को सिलाई मशीन दिया जाए। शमीमुनिशा की मदद के बाद संस्था के सदस्यों को लगा कि और भी दिव्यांग महिलाएं हैं, उनकी भी मदद करनी चाहिए। लोगों ने मदद की जिनसे सभी महिलाएं को सिलाई मशीन दी गई।

शमीमुनिशा की तरह ही पतिला गाँव की भानमती, दादनपुर गाँव की चंद्रा देवी भी अपने घरवालों के लिए बोझ बनी थीं, अब पैसे कमा रही हैं। भानमती बताती हैं, “मेरे दोनो पैर खराब हैं कहीं जा भी नहीं सकती हूं, मुझे भी लगता था कि मुझे कोई काम करना चाहिए था। अब सिलाई मशीन से अपना और अपने बच्चों का खर्च आसानी से निकाल लेती हूं।”

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