नई दिल्ली।स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए विश्व बैंक करीब 10,000 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देगा। विश्व बैंक की मदद का मकसद 2019 तक खुले में शौच की समस्या को ख़त्म करना है। इस धनराशि से न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय बनाए जाएंगे बल्कि लोगों को इसके इस्तेमाल के लिए जागरूक भी बनाया जाएगा। इसके अलावा विश्व बैंक चुनिंदा राज्य सरकारों को तकनीकी सहायता के रूप में करीब 160 करोड़ रुपये भी देगा। विश्व बैंक कर्ज के रूप में यह मदद करेगा।
विश्व बैंक के भारत निदेशक ओन रुहल और वित्त मंत्रालय में आर्थिक कार्य विभाग के संयुक्त सचिव राज कुमार ने बुधवार को इस संबंध में एक समझौते पर दस्तख़त किए। स्वच्छ भारत के तहत पांच साल के दौरान ग्रामीण कार्यों में ये पैसे खर्च किए जाएंगे।
इस दौरान विश्व बैंक धनराशि खर्च होने के बाद जमीनी स्तर पर कार्यक्रम के प्रदर्शन का मूल्यांकन भी करेगा। बैंक का कहना है कि इस धनराशि से ग्रामीण क्षेत्रों में 60 प्रतिशत से अधिक जरूरतमंद लोगों तक स्वच्छता सुविधाएं पहुंचाया जाना है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय इस धनराशि से चलने वाले कार्यक्रमों की निगरानी करेगा।
चुनिंदा राज्य सरकारों को मिलने वाली करीब 160 करोड़ रुपये की तकनीकी सहायता का मकसद ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को शौचालयों का इस्तेमाल करने के प्रति जागरूक बनाना है। इस कार्यक्रम की प्रगति का जायजा लेने के लिए हर साल ग्रामीण स्वच्छता सर्वे भी कराया जाएगा।
इस अवसर पर रुहल ने कहा कि भारत में हर दसवीं मौत स्वच्छता के अभाव के चलते होती है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि साफ-सफाई के अभाव की सबसे ज्यादा कीमत गरीबों को चुकानी पड़ती है। इस परियोजना से भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा मिलेगा जिसका फायदा ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले समाज के वंचित तबके और गरीबों को मिलेगा।
परियोजना की कार्य निदेशक और स्वच्छता विशेषज्ञ सोमा घोष मौलिक का कहना है कि विश्व भर के अनुभव से इस परियोजना को लागू करने में मदद मिलेगी। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए व्यापक स्तर पर जागरुकता कार्यक्रम चलाने की भी जरूरत है।