उत्तर प्रदेश में दवा विक्रेताओं की हड़ताल से 600 करोड़ का कारोबार ठप

Update: 2017-05-31 09:45 GMT
हड़ताल के दौरान बंद मेडिकल स्टोर ।

गाँव कनेक्शन, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। दवा विक्रेताओं के केंद्रीय संगठन एआईओसीडी के आह्वान पर मंगलवार को मेडिकल स्टोर बंद रहे। प्रदेशभर में मेडिकल स्टोर बन्द होने से जहां मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ा वहीं, दूर- दराज से अस्पतालों में इलाज के लिए दवाई लेने पहुंचे मरीजों को मेडिकल स्टोर बन्द होने के चलते दवाई नहीं मिल पाने के कारण परेशानी हुई। पूरे प्रदेश में इस दौरान करीब 600 करोड़ रुपये का दवा का थोक एवं फुटकर कारोबार बंद रहा।

केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन ने दवा विक्रेताओं से संगठित होकर बंद को सफल बनाने का आह्वाहन किया। सामान्य मरीजों के अतिरिक्त सरकारी अस्पतालों में भी केमिस्टों की हड़ताल का बहुत बुरा असर पड़ा है। मरीजों का इलाज बुरी तरह से प्रभावित रहा। अकेले लखनऊ में पांच हजार थोक और फुटकर केमिस्ट और ड्रगिस्ट के प्रतिष्ठान बंद रहे।

यही हाल मेडिकल कॉलेज का भी था, वहां पर भी लोग दवाई के लिए इधर-उधर भटक रहे थे। उनमें से मनोज (35 वर्ष) अपनी माँ का इलाज करने गोंडा के करनैलगंज से आये थे, जिन्हें दवाई नहीं मिल रही थी।

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उन्होंने बताया, ‘’आज मेडिकल स्टोर बंद हैं जिससे काफी दिक्कत हो रही है। पता नहीं किस चीज के लिए आज दुकाने बंद हैं, कुछ दवाएं ऐसी हैं जो बाहर से लेनी ही पड़ती हैं।“ यह हाल सिर्फ लखनऊ का नहीं बल्कि मेडिकल स्टोर बंद होने से ये हाल पूरे प्रदेश का भी रहा, लोग दवाई के लिए इधर-उधर भटक रहे थे।

एस्मा की धमकी साबित हुई गीदड़ भभकी

प्रदेश की खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की आयुक्त कामिनी चौहान रतन ने केमिस्ट एण्ड ड्रगिस्ट फेडरेशन, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रदेश में दिनांक 30 मई को दवाओं की दुकानें बन्द रखने के निर्णय के विरूद्ध कठोर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। उन्होंने बताया था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अन्तर्गत दवाओं को जरूरी वस्तु माना गया है।

कोई भी दवा विक्रेता, दवाओं की बिक्री को नहीं रोकेगा और न ही इसकी बिक्री से इन्कार कर सकता है। इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के समस्त मण्डलायुक्तों, जिलाधिकारियों तथा पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया गया था। यदि ऐसा कहीं पाया जाता है तो सम्बन्धित दुकानदारों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाये। मगर ये आदेश महज कागजी साबित हुआ। दवा दुकानें बंद रहीं। प्रशासन और पुलिस मरीजों और तीमारदारों की कोई मदद नहीं कर सकी।

केमिस्टों की हड़ताल से खुली सरकार डॉक्टरों की पोल

बाराबंकी से अपने भांजे हंसराज का मानसिक इलाज कराने डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल आए सुरेश चन्द्र मेडिकल स्टोर बंद होने के कारण इधर-उधर भटकते रहे। उन्होंने बताया, ‘’ आज मेडिकल स्टोर बंद है और डॉक्टर ने बाहर की दवाई लिखी हैं। मेडिकल स्टोर बंद होने के कारण अब दवाई कहाँ लेने के लिए जायें।”

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सुरेश चन्द्र के जैसे कई मरीज अपना पर्चा लिए मेडिकल स्टोर के खुलने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन दवा नहीं मिल रही थी, क्योंकि डॉक्टर ने उन्हे भी बाहर की ही दवाई लिखी थी। जबकि नियमों के हिसाब से सरकारी डॉक्टर बाहर की दवा मरीजों को नहीं लिख सकते हैं। इस विषय पर लोहिया अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ ओमकार यादव से पूछा गया तो उन्होंने बताया, ‘’हमारे अस्पताल में कोई दिक्कत नहीं है । हर बीमारी की 100 प्रतिशत दवा अस्पताल में उपलब्ध है तो फिर बाहर जाने की आवश्यकता ही नही है।“

क्यों बंद हुए मेडिकल स्टोर

फार्मासिस्ट की अनिवार्यता खत्म हो, नए लाइसेंस व नवीनीकरण में उत्पीड़न बंद हो, ऑनलाइन फार्मेसी व केंद्रीय ई-पोर्टल पर रोक लगे, दवा मूल्य नियंत्रण नीति में केमिस्टों का शोषण बंद हो, केंद्रीय दवा कानून संशोधन में लिए जाएं दवा विक्रेताओं के सुझाव।

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