तो क्या आपको भी है भूलने की बीमारी

Update: 2017-08-04 18:00 GMT
फोटो - इंटरनेट

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

मेरठ। क्या आप अक्सर अपनी चीजें रखकर भूल जाते हैं? कई बार गाड़ी या घर का दरवाजा लॉक करने के बाद भी आप उसे कई बार चेक करते हैं। अगर ऐसा आपके साथ एक से ज्यादा बार हो रहा है तो आप डिमेंशिया नामक बीमारी से ग्रस्त हैं। एक आंकड़े के मुताबिक शहरों में डाक्टरों के पास आने वाला हर दसवां मरीज इस बीमारी से पीड़ित है।

युवाओं में पनप रही बीमारी

डिमेंशिया अक्सर उम्रदराज लोगों में पाई जाने वाली बीमारी है। डाक्टर्स बताते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ यादाश्त का कमजोर होना स्वभाविक है। हर 100 में से 70 बुजुर्गों में डिमेंशिया की बीमारी पाई जाती है। मगर हैरत की बात ये है कि युवा अवस्था में भी भूलने की बीमरी लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। दरअसल हमारी जीवनशैली और काम का दबाव और उससे आगे बढकर अवसाद की शक्ल में युवाओं को घेर रहा है। इन दोनों परेशानियों में डिमेंशिया हावी हो रही है।

क्यों भूल जाते हैं

विशेषज्ञ डा. संदीप बताते हैं,“ जब सोचने, याद रखने और तर्क शक्ति में कमी आती है, तो ये रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने लगती है। इन कारणों में ड?ग्स लेना, अल्कोहल लेना, हारमोन, विटामिन इंबेलेंस और डिप्रेशन सबसे आगे है। डिमेंशिया नाम की इस बीमारी में ब्रेन का लर्निंग वाला पार्ट इफेक्टेड होता है। डिमेंशिया का सबसे कामन काज अल्जाइमर डिसीज है। कई डिसआर्डर्स भी डिमेंशिया का शिकार बनाते हैं।”

डिमेंशिया से व्यक्ति की पर्सनेल्टी से लेकर मूड और व्यवाहर तक पर असर दिखाई देता है। जिन लोगों को ये समस्या होती है, वो कुछ गुमसुम हो जाते हैं। साथ ही उनकी सहने की शक्ति भी बहुत कम हो जाती है।

महामारी की शक्ल ले रहा डिमेंशिया

डिमेंशिया की बीमारी देश में महामारी की तरह फैल रही है। इससे ग्रसित 60 वर्ष से उपर उम्र वाले व्यक्तियों की संख्या 92 मिलियन हो गई है। यदि इसे नहीं रोका गया तो इस बीमारी के मरीजों की संख्या 20 फीसदी और बढ जाएगी। डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 31 लाख लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं। जिसमें से उत्तर प्रदेश में साढ़े चार लाख लोग हैं। डाक्टर्स के अनुसार 2020 तक यह संख्या दोगुनी हो सकती है। आज भी एक हजार में 40 पुरुषऔर 78 महिलाएं डिमेंशिया की शिकार हैं। सिटी स्कैन से इस बीमारी की डायग्नोसिस करने से रोग की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है।

देखभाल करने वाले को भी तनाव

डाक्टर्स के अनुसार डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति की देखभाल करने वाला भी तनाव में आकर उसी बीमारी से ग्रसित हो जाता है। ऐसे लोगों को बीमारी की चपेट में आने से बचान के लिए परिवार के लोगों को चाहिए कि उसे तनाव मुक्त रहने में मदद करे। डिमेंशिया से शुरुआत में याददास्त की कमी पैदा होती है, जो धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। इसके बाद हाथ-पैर में कंपन, चलने में शिथिलता एवं लडखड़ाहट जैसे लक्षण मरीज में आने लगते हैं।

केस -

शलिनी देवी (42वर्ष) बताती हैं,“ पिछले दो साल से उन्हे भूलने की आदत है। वो अक्सर खाना खाकर भी भूल जाती हें। पहले मेरी बेटी नेहा इस आदत से बहुत परेशान थी, लेकिन जब से चैकप के बाद डाक्टर ने डिमेंशिया की बीमारी बताई, तब से सभी घर वाले उनकी किसी बात का बुरा नहीं मानते।”

शास्त्रीनगर निवासी रवीश रस्तोगी (32वर्ष) बताते हैं,“ वह साफ्टवेयर कंपनी में में इंजिनियर हैं, लेकिन वो चीजों को रखकर अक्सर भूल जाते हैं और तो और जिस रास्ते से रोजाना जाते हैं कई बार उन्हें भी भूल जाते हैं, जिसके चलते उनकी पत्नी को उन्हे आफिस छोड़ने जाना पड़ता है। उनका भी उपचार चल रहा है।”

साइकोलाजिस्ट डॉ. रवि राणा बताते हैं,“ पहले डिमेंशिया सिर्फ उम्रदराज लोगों में पाई जाने वाली बीमारी थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज के परिपेक्ष में यह बीमारी युवाओं में भी पनपती जा रही है, इसका मुख्य कारण बहुत ज्यादा वर्कलोड और भागदौड़ भरी जिंदगी है।”

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