इस महीने करें हरी खाद की बुवाई, बढ़ेगी खेत की उत्पादकता

Update: 2018-04-11 12:28 GMT
तीन-चार महीने में तैयार हो जाती है हरी खाद

लगातार बढ़ते रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता घटती जा रही है। ऐसे में किसान इस समय हरी खाद का प्रयोग करके न केवल अच्छा उत्पादन पा सकते हैं, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है।

हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के लिए की जाती है। मई से जून महीने में ढैंचा और सनई जैसी हरी खाद की बुवाई की जाती है।

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सनई अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक मनोज कुमार त्रिपाठी बताते हैं, “इस समय खेत में सनई या फिर ढैंचा लगा देने से किसानों को अगली फसल के लिए अच्छी हरी खाद मिल जाती है। इनकी जड़ों में राइजोबियम नाम का जीवाणु होता है, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है।” वो आगे बताते हैं, “ढैंचा-सनई मई से जून के महीने में हल्की बारिश के बाद इनकी बुवाई कर सकते हैं, अगर बारिश नहीं होती है तो हल्की सिंचाई कर बुवाई कर देनी चाहिए।”

बुवाई की तैयारी और बीज की मात्रा

हल्की बारिश के बाद या फिर हल्की सिंचाई करके जुताई कर बीज छिड़क दिया जाता है। ढैंचा के हरी खाद के प्रति हेक्टेयर 60 किलो बीज की जरूरत होती है और सनई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 80-90 किलो बीज बोया जाता है, जबकि मिश्रित फसल में 30-40 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।

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इस समय खेत में सनई या फिर ढैंचा लगा देने से किसानों को अगली फसल के लिए अच्छी हरी खाद मिल जाती है।
डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी, प्रमुख वैज्ञानिक, सनई अनुसंधान संस्थान

फसल तैयार होने के बाद खेत में हरी खाद देने की विधि

इस विधि में हरी खाद की फसल को उसी खेत में उगाया जाता है, जिसमें हरी खाद का प्रयोग करना होता है। फसल तैयार होने के बाद लगभग 40-50 दिनों में फूल आने से पहले ही मिट्टी को पलट दिया जाता है। मिट्टी में थोड़ी नमी होने से से ये अच्छी तरह से सड़ जाती है।

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जब फसल की बढ़वार अच्छी हो गई हो और फूल आने के पहले इसे हल या डिस्क हैरो से खेत में पलट कर पाटा चला देना चाहिए। यदि खेत में पांच-छह सेमी. पानी भरा रहता है तो पलटने व मिट्टी में दबाने में कम मेहनत लगती है। जुताई उसी दिशा में करनी चाहिए जिसमें पौधों को गिराया गया हो। इसके बाद खेत में आठ-दस दिन तक चार-छह सेमी पानी भरा रहना चाहिए जिससे पौधों के अपघटन में सुविधा होती है। यदि पौधों को दबाते समय खेत में पानी की कमी हो या देर से जुताई की जाती है तो पौधों के अपघटन में अधिक समय लगता है।

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