मेरठ। जमीन बढ़ने और सिकुड़ने का नाम है पैमाइश। विधिक तौर पर चकबंदी की यह परिभाषा नहीं है, लेकिन वर्तमान में ग्रामीणों द्वारा गढ़ी गई यही काहवत सटीकबैठती है। जिले में दर्जनों गाँव ऐसे हैं, जहां बिगड़ी चकबंदी का दंश ग्रामीण आज भी झेल रहे हैं। सरकारी मशीनरी ने चकबंदी के नाम पर गाँव-गाँव सैकड़ों बीघा जमीन कीनाप बिगाड़ दी है। इसी नाप को ठीक कराने के लिए ग्रामीण आज भी झगड़ रहे हैं। ग्रामीणों ने चकबंदी टीम पर सुविधा शुल्क लेने का आरोप भी लगाया है।
मेरठ सहित आस-पास के क्षेत्रों में चकबंदी कार्य चल है। नाम ने छापने की शर्त पर विभाग के अधिकारी ने बताया,“ बिगड़ी भूमि का स्वरूप उन्हें विरासत में मिला है।दो दशक से भी अधिक से चकबंदी में भूमि पैमाइश की स्थिति बेहद दयनीय रही है। कई गाँव की शिकायतें आती हैं, जिन्हें सुधार दिया जाता है, लेकिन कई गांवों से कोईशिकायत ही नहीं आई।”
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हस्तिनापुर ब्लाक के गाँव पलड़ा निवासी किसान रामफल (52वर्ष) ने बताया,“ उनकी जमीन पहले से कम कर दी गई है, जबकि उनके खातेदार की जमीन बढ़ा दी गई है।”
रानीनगला गाँव निवासी जोगिंद्र कुमार (30वर्ष) ने बताया,“ पहली चकबंदी में उनकी जमीन लगभग दो बीसा बढ़ गई थी, लेकिन इस बार पता नहीं कैसी पैमाइश की है, जमीन लगभग तीन बीसा घट गई है।”
30 गाँव में चल रही चकबंदी-
विभाग के रिकार्ड के मुताबिक वर्तमान में करीब तीस गाँवों में चकबंदी जारी है। जिनमें दस गाँव किला क्षेत्र के हैं, जबकि बीस गाँव हस्तिनापुर ब्लाक के हैं। चकबंदीअफसरों का कहना है कि चकबंदी में किसी तरह की अनियमिता नहीं बरती जा रही है। किसी किसान का कोई विवाद है तो उसे तत्काल ठीक कराया जा रहा है।
ज्यादातर गाँवों की समस्या का समाधान करा दिया गया है। इक्का- दुक्का शिकायतें बची हैं, जिन्हें ठीक करा दिया जाएगा। ऋतु सिंह, डीडीसी चकबंदी
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