गांवों में घुसे बाघ-तेंदुए तो वन विभाग के साथ ही डीएम की भी होगी जिम्मेदारी

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय पिछले साल अगस्त में जारी आंकडों के मुताबिक अप्रैल 2014 से पिछले साल मई तक हिसंक जानवरों में 1144 जानें जा चुकी हैं। इनमें 1052 मौतें हाथियों के हमलों से हुई है।

Update: 2018-08-04 07:03 GMT

लखनऊ। वन्य जीवों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष को देखते हुए राज्य सरकार ने इसे राज्य आपदा घोषित किये जाने का फैसला किया है। अब अगर हिंसक जानवर वनक्षेत्रों से बाहर आते है तो भीड़ को काबू करने के लिए वन विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन की भी पूरी जिम्मेदारी होगी।

"पीलीभीत में पिछले डेढ़ वर्षों में काफी मामले ऐसे हुए है जिसमें हिंसक जानवर बाहर आए है। जब जानवर बाहर आते तो उनको पकड़ने के लिए हमे ज्यादा जगह और शांति की जरूरत होती है लेकिन भीड़ की वजह से काफी दिक्कत होती है।" पीलीभीत टाइगर रिजर्व के विभागीय वन अधिकारी आदर्श कुमार ने बताया, "वन विभाग का काम होता है कि हिंसक जानवर के बाहर आने पर उसे पकड़ा जाए, लेकिन भीड़ के कारण इसमें काफी समय लग जाता है। ऐसे में कई घटनाएं भी हो जाती है। इस आदेश से जिला प्रशासन और आपदा प्रबंधन टीम का सहयोग मिलेगा जिससे जानवरों को पकड़ने में आसानी होगा।"

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय पिछले साल अगस्त में जारी आंकडों के मुताबिक अप्रैल 2014 से पिछले साल मई तक हिसंक जानवरों में 1144 जानें जा चुकी हैं। इनमें 1052 मौतें हाथियों के हमलों से हुई है। मंत्रालय में संसद की स्थायी की समिति की रिपोर्ट में मानव एवं वन्यजीव संघर्ष में वृद्यि के कारण हाथी बाघ और तेंदुए जैसे हिंसक जानवरों के हमलों में मरने वालों के आंकडों पर भी चिंता जताई गई थी, जिसके बाद इसे राज्य आपदा घोषित किया गया है।

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"बाघ, तेंदुए हिंसक जानवरो के बाहर आने पर पूरी जिम्मेदारी वन विभाग की होती थी लेकिन इस सरकारी आदेश के जारी होने के बाद इसमें जिला प्रशासन का भी रोल शामिल कर दिया गया है साथ ही आपदा प्रंबधन फंड को भी डाइवर्ट किया जा सकेगा।" दुधवा नेशनल पार्क के उपनिदेशक महावीर कौजलगि ने गाँव कनेक्शन को बताया।

कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने उच्च सदन में पेश रिपोर्ट में आबादी क्षेत्रों में वन्यजीवों के प्रवेश की बढ़ती घटनाओं के पीछे वनक्षेत्र की सघनता के मुताबिक वन्यजीवों की आबादी में असंतुलन को मुख्य वजह बताया था। समिति का मानना है कि हिंसक पशुओं को अधिक संख्या में रखने की क्षमता वाले वनक्षेत्रों में इन जानवरों की संख्या कम है जबकि कम क्षमता वाले वन क्षेत्रों में क्षमता से काफी अधिक पशु रहने को मजबूर है, जिससे मनुष्य एवं कृषि संपदा को नुकसान पहुंचाने वाले बाघ, हाथी और नीलगाय जैसे जानवर वनक्षेत्र के तटीय इलाकों के आबादी क्षेत्रों में घुस जाते हैं।

इसके अलावा समिति ने यह भी पाया था कि हिंसक जानवरों के हमले उन इलाकों में बढ़े हैं जिनमें पिछले दो साल में वनक्षेत्र कम हुआ है। इसके मद्देनजर समिति ने हिंसक वन्यजीवों के पर्यावास का संतुलन बनाये रखते हुये सरकार को इन्हें इजाफे वाले सघन वनक्षेत्रों में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया है। हिंसक जानवरों के हमलों को रोकने के लिये सरकार के जारी प्रयासों को नाकाफी बताते हुए समिति ने वन्य जीवों के सघन वनक्षेत्रों में स्थानांतरण की समुचित कार्ययोजना बना कर इसके कार्यान्वयन की सिफारिश की थी।

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"वन्य जीवों और इंसानों के बीच बढ़ते संघर्ष की घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है इंसानों का वन्य जीवों के क्षेत्र में बढ़ता हस्तक्षेप।" बलिया जिले की वन क्षेत्रीय अधिकारी श्रृद्धा यादव ने बताया, "जानवरों के बाहर आने की जब कोई घटना होती है तो भीड़ को काबू करना मुश्किल होता है वो उस समय चिल्ला रहे होते है जिससे जानवर और अक्रामक होता है और दिक्कतें बढ़ती है। पुलिस भी नहीं कंट्रोल कर पाती है।" श्रृद्धा आगे बताती हैं, "इन घटनाओं पर काबू पाने के लिए राज्य आपदा टीम और आर्मी को सहयोग मिलने में भी आसानी होगी।" 


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