स्कूलों में धुएं में आंखें खपा रहे रसोइये 

Update: 2017-03-24 19:26 GMT
मिड डे मील के लिए इस्तेमाल की जाती हैं लकड़ियां।

संदीप कुमार, स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

रायबरेली। जहां एक तरफ केन्द्र की मोदी सरकार उज्जवाला योजना अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में फ्री गैस, चूल्हा और सेलेण्डर वितरित कर धुआं रहित वातावरण बनाने का प्रयास कर रही है, वहीं आज भी लकड़ियों के उपयोग से ही खाना बनाया जा रहा है।

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प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय के अध्यापकों की तानाशाही और मनमानी के चलते मिड-डे मील योजना (मध्याह्न बनने वाला भोजन) के लिए रसोईयां लकड़ियों के इस्तेमाल कर भोजन बनाने को बेबस हैं। विशनुपुर प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाचार्य नीलू सिंह ने बताया, “उनके यहां एक भी सिलेण्डर नहीं मिला है इसलिये लकड़ी में ही खाना बनवाना पड़ता है।”

विशनुपुर ही नहीं, बल्कि आसपास की ग्रामसभा जैसे देवपुरी, गूजरपुर, पस्तौर, राजामऊ, ठकुराइन खेड़ा, कुसैली खेड़ा, बन्नावां, कन्नावां, समोधा, टान्डा, इंचैली, शिवबंस खेड़ा, नींवा, मदाखेड़ा, रानीखेड़ा आदि पूरे विकास क्षेत्र में लकड़ियों से ही भोजन बनाने का भोजन बनाने के लिये रसोईयाँ लकड़ियों के कारण विवश हैं। जिले में मिड-डे मिल टास्क फोर्स भी बनाई जाती है जिसके अध्ययक्ष खण्ड विकास अधिकारी होते हैं। इस फोर्स में एसडीएम खण्ड शिक्षा अधिकारी बीएसए आदि सदस्य होते हैं।


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