मशरूम की खेती बनी आमदनी का जरिया

Update: 2017-04-23 13:15 GMT
मशरूम की खेती के प्रति बढ़ा लोगों का रुझान। 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पूर्वांचल के जिलों में लोग काम के सिलसिले में दूसरे प्रदेशों में पलायन करते हैं, जबकि यहीं के कई गाँव के दर्जनों किसान सीमित संसाधन में मशरूम की खेती कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं। कम जगह में अधिक से अधिक फायदा देने वाली यह खेती कई किसानों के आय का जरिया बन रही है।

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अंबेडकर नगर जिले के भीटी ब्लॉक के पांच गाँवों में कृषि विज्ञान केन्द्र, पांती द्वारा किसानों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया है। यहां के दर्जनों किसानों ने मशरूम उत्पादन शुरु भी कर दिया है।

ग्रामीणों को घर बैठे आमदनी हो रही है।

सेनपुर गाँव के दुर्गा प्रसाद यादव (45 वर्ष) मशरूम उत्पादन के बारे में बताते हैं, “मैंने अपने घर में ही मशरूम उत्पादन शुरु कर दिया है, हफ्ते में दस से पंद्रह किलो तक मशरूम पैदा हो जाता है, जिसे 100 से 120 रुपए किलो में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहा हूं।” इस मशरूम उत्पादन में 20-25 दिन लगते हैं।

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रविप्रकाश मौर्य कहते हैं, “पूर्वांचल के जिलों के लोग दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में नौकरी की तलाश में जाते हैं, जबकि लोग यहीं पर सीमित संसाधन में ही बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं। केवीके की तरफ से अभी पांच गाँवों में प्रशिक्षण दिया गया है, परिणाम भी बेहतर आए हैं, एक दर्जन से अधिक किसान मशरूम अपने घर में ही मशरूम उगा रहे हैं।”

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डॉ. रविप्रकाश मौर्य बताते हैं, “भूसे को 12-14 घंटे तक पानी में भिगोगा जाता है। उसमें कीटनाशक, फफूंदनाशक दवा (बावेस्टीन, फार्मोलिन) मिलाकर रखा जाता है। फिर भूसे का लकड़ी की तख्त या फर्श पर बिछाकर पानी को निथार देते हैं। भीगे हुए भूसे में एक किलो मशरूम के बीज पालीथिन में भर देते हैं।

ऐसे ही एक पॉलीथिन में पांच परत में भूसा भरा जाता है। हवा जाने के लिए उसमें 15 से 20 छेद कर देते हैं। पॉलीथिन को 10 से 12 दिन जमीन से ऊपर कमरे में रखते हैं और फिर पॉलीथिन को हटा देते हैं। जब भी नमी की मात्रा कम हो तो स्प्रे से पानी का छिड़काव करते हैं। पांच से सात दिन बाद अंकुरण होने लगता है, फिर 10 से 15 दिन में मशरूम तैयार होने लगता हैं।

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