मज़दूरों के बच्चों के लिए प्रदेश में नहीं पर्याप्त स्कूल

Update: 2017-05-01 02:16 GMT
प्रदेश में नहीं हैं पर्याप्त स्कूल मज़दूरों के बच्चों के लिए।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कानपुर/लखनऊ। निर्माण श्रमिकों के बच्चों के पढ़ने के लिए प्रदेश श्रम विभाग की तरफ से सिर्फ 24 विहान आवासीय स्कूल संचालित किए जा रहे हैं, जो कि मजदूरों के बच्चों की संख्या के हिसाब से बहुत कम हैं। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद मजदूरों के बच्चों में पढ़ने की उम्मीद जगी है।

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“मेरे पापा की मौत हो चुकी है। मम्मी और मेरी दीदी दूसरे के खेतों में मजदूरी करके हम सबका पेट भरती हैं। आठवीं के बाद पढ़ाई करने के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते।” ये कहना है कानपुर के विहान आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाली मजदूर श्रमिक की बेटी लबली देवी (13 वर्ष) का। ये चिंता सिर्फ लबली की नहीं है बल्कि प्रदेश में काम कर रहे लाखों मजदूरों के बच्चों की चिंता है। जो पर्याप्त संसाधन न मिलने की वजह से शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद इन बच्चों में पढ़ने की एक नई उम्मीद जरूर जगी है।

अभी हाल ही मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि प्रदेश के 20 जिलों में इन श्रमिक बच्चों के लिए नए आवासीय स्कूल खोले जाएं। कानपुर देहात के ही मुक्तापुर गाँव की रहने वाली रिचा पाल आठवीं में पढ़ती हैं। रिचा बताती हैं, “मेरी मां दूसरों के घरों में बर्तन मांजती हैं। आवासीय विद्यालयों की संख्या बहुत कम है, अगर इन स्कूलों की संख्या बढ़ जाए और 12वीं तक हो जाए हमारी आगे की पढ़ाई तभी पूरी हो सकती हैं।”

मम्मी और मेरी दीदी दूसरे के खेतों में मजदूरी करके हम सबका पेट भरती हैं। आठवीं के बाद पढ़ाई करने के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते।
लबली देवी, कक्षा-8, कानपुर

आवासीय विद्यालयों की संख्या बहुत कम है, अगर इन स्कूलों की संख्या बढ़ जाए और 12वीं तक हो जाए हमारी आगे की पढ़ाई तभी पूरी हो सकती हैं।
रिचा पाल, कक्षा-8, कानपुर देहात

ईंट-भट‍्ठों पर काम करते हैं 80 लाख मजदूर

उत्तर प्रदेश में 1800 ईंट-भट्ठे हैं, जिसपर 80 लाख मजदूर काम करते हैं। केवल कानपुर में 280 ईंट-भट्टे हैं। ईंट-भट्टों पर काम करने की वजह से मजदूरों के बच्चे पूरे साल की पढ़ाई एक जगह रहकर नहीं कर पाते हैं। इसलिए इनके लिए आवासीय विद्यालय की जरूरत है। पूरे प्रदेश में 12 बालक और 12 बालिकाओं के विहान आवासीय विद्यालय हैं। एक विद्यालय में 100 बच्चे ही पढ़ सकते हैं जो कि 80 लाख मजदूर के बच्चों के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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