“यूपीकोका” पर लगी योगी कैबिनेट की मोहर

Update: 2017-12-13 18:37 GMT
अपराध रोकने की लिए उत्तर प्रदेश सरकार की पहल।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अपराध और अपराधियों पर अकुंश लगाने के लिए योगी सरकार ने विशेष कानून यूपीकोका (उत्तर प्रदेश कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) लागू करने का फैसला किया है। बुधवार को हुई कैबिनेट की अहम बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई। इतना ही नहीं गुरुवार से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में ही इसके लिए विधेयक भी लाया जाएगा, जिसे जल्द ही प्रदेश में लागू कर अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जायेगा।

प्रदेश सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि यूपी में सगंठित अपराध और अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने मकोका की तर्ज पर यूपीकोका विधेयक-2017 को विधानमंडल के इसी सत्र में पेश किया जाएगा। इस कानून के तहत बाहुबल से ठेके हथियाने, फिरौती के लिए अपहरण करने, अवैध खनन, वन उपज के गैर कानूनी ढंग से दोहन, वन्यजीवों की तस्करी, नकली दवाओं के निर्माण या बिक्री, सरकारी व गैर सरकारी संपत्ति को कब्जाने और रंगदारी या गुंडा टैक्स वसूलने सरीखे संगठित अपराधों में यूपीकोका को लागू किया जाएगा।

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इस कानून के लागू होने पर राज्य सरकार संगठित अपराधों से अर्जित की गई अपराधियों की संपत्ति को विवेचना के दौरान संबंधित न्यायालय की अनुमति लेकर अपने अधीन ले लेगी। ताकि, आपराधिक तत्व गैरकानूनी तरीके से अर्जित संपत्ति का लाभ नहीं उठा सकेंगे। अभियोग में न्यायालय से दंडित होने पर संगठित अपराधियों की संपत्ति राज्य के पक्ष में जब्त किए जाने का प्रावधान भी है।

प्रस्तावित अधिनियम में यह व्यवस्था भी की गई है कि, कोई भी संगठित अपराध करने वाला अपराधी सरकारी सुरक्षा तक नहीं पा सकेगा। बाहुबली व संगठित अपराध में लिप्त अपराधियों के विरुद्ध गवाही देने वालों को भी इस कानून के तहत सुरक्षा प्रदान करने और आवश्यकतानुसार उनकी गवाही बंद कमरे में लेने का प्रावधान भी रखा गया है, जिससे अपराधी अपने प्रभाव से गवाह को डरा-धमका नहीं सके। वहीं इस कानून के आने पर यूपी के पूर्व डीजीपी एमसी द्धिवेदी का कहना है कि, इस तरह का कानून बड़े अपराधों पर लगाम लगाने के लिए कारगर साबित होगा। जबकि उन्होंने कहा कि, सबसे महत्वपूर्ण होगा देखना कि, इस तरह के कानून का नजायज फायदा उठाकर किसी बेकसूर को न फंसाया जाये।

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दूसरी ओर डीजी सुब्रत त्रिपाठी का कहना है कि, अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए पुलिस के पास कई सख्त कानून है, लेकिन उसे वह ईमानदारी से लागू नहीं करती है। हालांकि देखने वाली बात होगी कि, यूपीकोका जैसे कानून को कितनी ईमानदारी से पुलिस भी लागू कर संगठित अपराध पर लगाम लगा पाती है। वहीं एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, पुलिस व्यवस्था में सुधार होना बहुत जरूरी है, जिससे थाना स्तर पर पनपे अपराधियों पर लगाम लगा पाने में संबंधित पुलिस अधिकारी संक्षम हो।

यूपीकोका कैसे होगा इस्तेमाल

प्रदेश में किसी भी जिले के बड़े अपराधी पर यूपीकोका कानून लगाने से पहले पुलिस को आईजी और कमिश्नर स्तर के अधिकारियों से संस्तृति लेनी पड़ेगी, जिसके बाद ही पुलिस संगठित अपराध करने वाले अपराधी को सलाखों के पीछे भेजने के लिए यूपीकोका का इस्तेमाल कर पायेगी। पुलिस सीधे तौर पर किसी आरोपी के खिलाफ यूपीकोका के तहत केस दर्ज नहीं कर सकती।

मकोका कानून क्या है

मकोका जैसा विशेष कानून 1999 में महाराष्ट्र सरकार ने बनाया था। इसके पीछे मकसद मुंबई जैसे शहर में अंडरवर्ल्ड के आतंक से निपटारा करना था। संगठित अपराध पर अंकुश लगाने के लिए ही इस कानून को बनाया गया था। 2002 में महाराष्ट्रा सरकार की तर्ज पर दिल्ली सरकार ने भी इसे लागू कर दिया। फिलहाल महाराष्ट्र के अलावा राजधानी दिल्ली में यह कानून लागू है।

इन अपराधों के चलते होता है विशेष कानून का प्रयोग

ऑर्गनाइज्ड क्राइम सिंडिकेट चलाने के लिए कम-से-कम दो शख्स होने चाहिए। मकोका कानून के तहत किसी आरोपी के खिलाफ केस तभी दर्ज होगा, जब 10 साल के दौरान उसने कम से कम दो संगठित अपराध किए हों और उसके खिलाफ एफआईआर के बाद चार्जशीट दाखिल हुई हो। आरोपी के खिलाफ ऐसा केस दर्ज हुआ हो, जिसमें कम-से-कम तीन साल कैद का प्रावधान हो। टाडा और पोटा की तरह ही मकोका में भी जमानत का प्रावधान नहीं है। छानबीन के बाद अगर पुलिस या जांच एजेंसी ने 180 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल नहीं की, तो आरोपी को जमानत दी जा सकती है। वहीं इस कानून के तहत अधिकतम सजा फांसी हो सकती है, जबकि कम-से-कम पांच साल कैद का प्रावधान है।

आतंकवाद के खात्मे के लिए आया था टाडा

टाडा कानून 1985 का सबसे पहला कानून था, जिसे विशेष रूप से आतंकी गतिविधियों के प्रतिरोध के लिए लागू किया गया था। इस कानून को पंजाब में खालिस्तान के अलगाववादी आन्दोलन की पृष्ठभूमि में लाया गया था।

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शुरुआत में, इसे केवल लागू किये जाने के दो वर्षों तक पंजाब और उसे सीमावर्ती राज्यों में जारी रहना था, बाद में टाडा को और अधिक कठोर और व्यापक बनाते हुए इसकी अवधि को 1987 और 1993 में बढ़ाया गया। इस कानून ने आतंकवाद से लड़ने के लिए शासनात्मक सत्ता की शक्तियों में वृद्धि की, इसने टाडा मामलों के संदिग्ध अपराधियों के मुकदमों के लिए विशेष मनोनीत न्यायालयों को बनाने के लिए प्रावधान बनाये गए। हालांकि टाडा जैसा कानून 1995 में ख़त्म कर दिया गया था।

1958 में बनी थी “अफ्सपा” कानून

सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) 1958 में संसद द्धारा पारित किया गया था और तब से यह कानून के रूप में काम कर रही है। आरंभ में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में भी यह कानून लागू किये गये थे लेकिन मणिपुर सरकार ने केंद्र सरकार के विरुध चलते हुए 2004 में राज्यी के कई हिस्सोंण से इस कानून को हटा दिया था। इस कानून को नक्सली, आतंकी और उग्रवाद से लड़ने के लिए केंद्र सरकार ले कर आईइ थी, जिसके तहत शक के आधार पर ही गिरफ्तार करने का प्रावधान किया गया था।

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