ये पढ़कर एक मिनट मां-पिता के बारे में सोचिएगा

Update: 2016-03-29 05:30 GMT
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लखनऊ। कुछ सालों में विश्व का सबसे युवा देश बनने जा रहे भारत की एक सच्चाई यह भी है कि बेटे-बेटियों द्वारा बूढ़े माता-पिता को छोड़ देने व सम्पत्ति के लिए उनके साथ हिंसा जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ रहीं हैं। बच्चे अलग परिवार बसा रहे हैं और मां-बाप वृद्धाश्रमों में दिन काट रहे हैं।

पहले यह सच्चाई सिर्फ महानगरों तक सीमित मानी जाती थी लेकिन अब छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों की भी यही कहानी है।

लखनऊ ज़िले में बक्शी का तालाब थाना क्षेत्र के कोटवा गाँव की निवासी छेदाना (70 वर्ष) मुश्किल से ही चल पाती हैं लेकिन मजबूरी ऐसी कि कुछ दिन पहले जैसे-तैसे डरी हुईं वे पुलिस द्वारा संचालित ‘वरिष्ठ नागरिक प्रकोष्ठ कार्यालय’ पहुंचीं। छेदाना को कोई और नहीं बल्कि उनके बेटे से ही डर है। उन्होंने अधिकारियों को बताया कि पति हैं नहीं और बेटा केवलराम शराब के नशे में रोज़ मारता है। पुलिस ने उनकी मदद की।

उत्तर प्रदेश में पुलिस कार्यालयों से बुज़ुर्गों को मदद मिल पाए इसके लिए ‘वरिष्ठ नागरिक प्रकोष्ठ’ का गठन किया गया है।

इस प्रकोष्ठ द्वारा बुजुर्गों की शिकायत पर क्षेत्र के थाने से संपर्क कर पुलिस से उनको सहयता दिलाई जाती है। प्रकोष्ठ के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में बुज़ुर्गों के खिलाफ अत्याचार की 435 अर्जियां दर्ज की गईं। वर्ष 2016 में 25 मार्च तक ही 82 शिकायती पत्र आ चुके हैं।

हालांकि इन प्रकोष्ठों को भी अभी हर जि़ले में सही ढंग से संचालित नहीं किया जा सका है, इसलिए बहुत से बुज़ुर्ग अभी अपने खिलाफ घर में होने वाली हिंसा को किसी से कह नहीं पाते। 

हिंसा के साथ-साथ बुज़ुर्गों को परिवार द्वारा छोड़ दिए जाने के मामलों में भी पिछले कुछ सालों में वृद्धि हुई है। 

लखनऊ में नगर निगम की ज़मीन पर संचालित वृद्धाश्रम में रह रहे एक बुज़ुर्ग दम्पति अपने बच्चों द्वारा भुला दिए गए। “एक बेटा न्यूयार्क और दूसरा बेटा बंगलूरू में रहता है। सब लोग अपने परिवार में मगन हैं,” भावुक होते हुए दम्पति ने संवाददाता से नाम न छापने को कहा, वरना उनके बच्चों की बदनामी होगी। 

“अब कुछ मत पूछिये बस ये जानिये कि हमारे बेटों के पास हम ही लोगों के लिये समय नहीं है। मां-बाप हमेशा अपने बच्चों को खुश देखना चाहते हैं। हम लोग भी यही चाहते हैं, वह अपने परिवार में खुश रहें। जो हम लोगों का फर्ज था हम लोगों ने किया”, दम्पति ने यह कहकर अपनी बात खत्म कर दी।

देश भर में बुज़ुर्गों की सहायता और उन्हें आश्रय देने के लिए कार्यरत गैर सरकारी संगठन ‘हेल्पएज’ के निदेशक प्रकाश नारायण देशभर में वर्ष 2010 और 2015 में संगठन द्वारा कराए गए दो सर्वे रिपोर्टों की तुलना करते हुए बताते हैं कि पांच साल पहले तक संगठन के आश्रयघरों में 80 हज़ार बुज़ुर्ग रह रहे थे जो पांच साल में लगभग दो गुने बढ़कर, 1,50,000 हो गए। “कुल संख्या का 88 प्रतिशत बुज़ुर्ग वे हैं, जिन्हें पेंशन या कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती” नारायण ने कहा।

इसी सर्वे में यह आंकड़ा भी सामने आया कि पांच साल पहले तक हर पांच में से एक  बुज़ुर्ग परिवार द्वारा प्रताड़ित किया जाता था, लेकिन अब संस्था के पास आने वाला हर दूसरा बुज़ुर्ग अपने घर में प्रताड़ित होता था।

जानकार इस चलने के तेजी से बढ़ने का मुख्य कारण समाज और परिवारों का कमज़ोर होता ताना-बाना मानते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और समाजशास्त्री रूपरेखा वर्मा कहती हैं कि समाज में संवेदनाएं मरती जा रही हैं। 

“मां-बाप अपने बच्चों के लिये कितना कष्ट उठाते हैं यह बड़ा होने के बाद बच्चों के लिए महत्व नहीं रखता है। कुछ तो जानते हुये भी नज़रअंदाज करते हैं”। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के लिये सरकार को अच्छे आश्रयगृह खुलवाने चाहिए, उससे आश्रय गृहों में बुजुर्गों को अपमानित नहीं होना पड़ेगा।

नहीं बनी बुजुर्गों की सूची, सुरक्षा पर सवाल

लखनऊ। बुजुर्गों की समस्या को लेकर जनपद के हर थानों में बुजुर्गों की सूची बनाई जानी थी ताकि बुजुर्गों के बारे में पुलिस आंकड़ा रख कर उनकी जानकारी रखे और उनकी सुरक्षा करें, लेकिन यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। 

लखनऊ शहर के थाना गोमतीनगर में सिर्फ 82, चिनहट में 17, विभूतिखंड में 51, गाजीपुर में 21, महानगर में 29 ही बुजुर्गों का रजिस्ट्रेशन हो पाया। पूर्वी क्षेत्र में 323, पश्चिमी क्षेत्र में 169 जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 6 बुजुर्गों का ही रजिस्ट्रेशन हो पाया। 

प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी व एसपी सुरक्षा विधानसभा ज्ञान प्रकाश चतुर्वेदी बताते हैं, ‘’काफी संख्या में बुजुर्ग आ रहे हैं। जो आते हैं हम उनकी समस्या का समाधान करते हैं। बुजुर्गों का रजिस्ट्रेशन हो इसके लिये थानों को बार-बार पत्र लिखा जाता है। बुजुर्गों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है।’’

नगर निगम के भवन में आदिल नगर में संचालित हो रहा वृद्धा आश्रम की भी अपनी अलग कहानी है। कमला बोरल (72 वर्ष) राम त्रिवेदी इंटर कॉलेज इटौंजा से सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य हैं। कमला बोरल वृद्वा आश्रम में रहती है। कमला बोरल से बातचीत किया गया तो वह भावुक हो गईं। ढांढस बंधाने पर बताया कि उनके परिवार में कोई नहीं है, दूर के रिश्तेदार हैं लेकिन लोगों के नजर अंदाज करने के कारण वह कई वर्षों से रह रही है। हजारों विद्याथिर्यों को मां-बाप के बारे में ज्ञान देने वाली कमला बोरल के ही रिश्तेदार बुजुर्ग होने पर उनकी देखभाल करने से मूंह फेर लिया।

रिपोर्टर - गणेश जी वर्मा

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