Gaon Connection Logo

यहां पर माहवारी से जुड़ी अजीबोगरीब प्रथा ले रही महिलाओं व लड़कियों की जान

Nepal

लखनऊ। एक ओर जहां माहवारी को लेकर टैबू तोड़े जा रहे हैं और मेंस्ट्रुएशन हाइजीन के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। वहीं कहीं-कहीं आज भी माहवारी महिलाओं के लिए किसी कठिन चुनौती से कम नहीं है। इस दौरान वो खुद शारीरिक और मानसिक परेशानियां झेल रही होती हैं वहीं समाज द्वारा बनाए गए रीति-रिवाज उनके लिए और ज्यादा कष्टकारी होती

आज भी कुछ जगहों पर महिलाएं व लड़कियां परिवार से अलग माहवारी के दिनों में गाय के बाड़े में रहने को मजबूर हैं। पड़ोसी देश नेपाल में यह प्रथा काफी प्रचलित है।

पिछले दिनों बाड़े में ही रहते हुए एक 19 साल की लड़की की मौत हो गई। वजह सांप के काटने से बताई गई। तुलसी शाही नाम की लड़की नेपाल के दैलेख जिले की रहने वाली थी और छौपडी में भाग ले रही है। दरअसल नेपाल के पश्चिमी हिस्सों में महिलाओं को आज भी माहवारी के दौरान अस्वच्छ माना जाता है और परिवार से उसका निष्कासन कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को छौपडी कहा जाता है और बाड़े को माहवारी झोपड़ी कहा जाता है।

पढ़ें जेटली जी, काजल-लिपस्टिक से ज्यादा जरूरी था सेनेटरी नैपकिन टैक्स फ्री रखते

शाही इससे पहले भी इस रिवाज़ के तहत बाड़े में जाती रही लेकिन बीते गुरुवार रात वह अपने अंकल के गाय के बाड़े में फर्श में सो रही थी, तभी उसे एक सांप ने काट लिया। वहां के लोकल डिस्ट्रिक्ट मेयर सूर्य बहादुर शाही ने सीएनएन से बातचीत में बताया, ‘सांप ने लड़की को उसके सिर और पैर पर काटा। इस वजह से उसकी मौत हो गई।

पढ़ें माहवारी का दर्द : जहां महीने के ‘उन दिनों’ में गायों के बाड़े में रहती हैं महिलाएं

दो महीनों से भी कम समय में शाही छौपडी के दौरान मरने वाली दैलेख जिले की दूसरी लड़की है। इससे पहले 22 मई को 14 साल की ललसारा बीका नाम की लड़की को सर्दी से जुड़ी गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया और उसकी मौत हो गई। पिछले साल आखिर में अच्छाम जिले की दो लड़कियों की भी कुछ इसी परिस्थितियों में मौत हुई थी।

नेपाल की इस प्रथा के इस बारे में गांव कनेक्शन ने नेपाली लेखक व माहवारी अधिकारों की कार्यकर्ता राधा पौडेल से बात की। राधा नेपाल में माहवारी अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली पहली महिला मानी जाती है। वह राधा पौडेल फाउंडेशन के तहत लोगों में इसके प्रति जागरुकता फैला रही हैं। राधा ने बताया, ‘नेपाल में महिलाओं को माहवारी के दौरान अज्ञानता, धर्म, लिंगभेद, पितृसत्तात्मक, गरीबी और सैनिटरी नैपकिन को धोने की सुविधा न होने के कारण गाय के बाड़े में रहना पड़ता है। इसके बारे में वे अपने बड़ों जैसे बहन, मां, धार्मिक लोग, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और अध्यापक से सीखती हैं लेकिन उन्हें कभी वैज्ञानिक कारण नहीं बताए जाते हैं। महिलाएं व लड़कियां खुद मानती हैं कि इस तरह की पाबंदियां धर्म-संस्कृति का हिस्सा है और यह रक्त गंदा और दूषित होता है।’

पढ़ें महिलाओं की उन दिनों की समस्याओं को आसान करेगा ‘माहवारी कप’

अपराध होने पर सामने आते हैं मामले

राधा बताती हैं कि यह प्रैक्टिस कई शताब्दी पुरानी है। हालांकि कुछ धार्मिक किताब जैसे गरुण पुराण में भी मासिक धर्म के रक्त को गंदा और प्रदूषित माना गया है। राधा आगे कहती हैं, ‘गाय के बाड़े में रहने के साथ महिलाओं व लड़कियों पर 40 से ज्यादा तरह की पाबंदियां भी लगाई जाती हैं। काठमांडू या उत्तराखंड के कुछ इलाकों में भी लड़कियों को माहवारी के दौरान घर में सभी घरवालों से अलग एक कमरे में रहना पड़ता है और सभी तरह की पाबंदियों का पालन करना होता है जो मानव अधिकारों का हनन हैं। अक्सर इस तरह के मामले तभी सामने आते हैं जब मौत या रेप या कोई पुलिस केस सामने आता है लेकिन गाय के बाड़े या कमरे में अलग रहने के साथ महिलाओं पर अत्याचार भी होता है।

पढ़ें #MenstrualHygieneDay: सिर्फ सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराना ही लक्ष्य नहीं, इन मुश्किलों पर भी बात हो

सरकार की तरफ से कोई योजना लागू नहीं

राधा कहती हैं कि सरकार ने भी इस पर पूरी तरह आंख मूंद रखी है। 2008 में केवल छौपडी पर ही गाइडलाइन लागू की थी जो कि उपयुक्त नहीं था। थोड़े समय बाद सरकार की ये पॉलिसी फेल हो गई। इसकी गाइडलाइन के आधार पर कोई केस भी दर्ज नहीं करा सकता था। 30 जनवरी 2017 में एक प्रपोजल पास हुआ जिसके अनुसार छौपड़ी के लिए 30,000 नेपाली रुपए और तीन महीने की सजा निर्धारित हुई लेकिन ये अभी तक लागू नहीं हुआ है। इस तरह अभी तक नेपाल सरकार की इस पर कोई विशेष योजना नहीं है। हाल ही में अप्रैल 2017 में नेपाल की मिनिस्ट्री ऑफ वाटर सप्लाई और सैनिटाइजेशन ने एक कमेटी बनाकर योजना बनाई और फिलहाल उस पर काम जारी है। यह अक्टूबर 2017 तक पूरी तरह तैयार होने की उम्मीद जताई जा रही है।

पढ़ें आप भी जानिए, कैसा लगता है हमें माहवारी के दिनों में

रिवाज से जुड़ी कई तरह की भ्रांतियां हैं

2011 की यूनाइटेड नेशंस रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएं और लड़कियां इस दौरान दूसरे लोगों को, पशुओं को, हरी सब्जियां और पौधे और फल वगैरह नहीं छू सकती हैं। उन्हें इस दौरान दूध और दूध के बने उत्पाद का सेवन करने के लिए मना होता है। साथ ही कुएं और नलों से पानी लेने को भू सीमित कर दिया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल के दूर पश्चिमी इलाकों के लोग ऐसा मानते हैं कि अगर इस अभ्यास को हटाया जाता है तो देवी-देवता नाराज भी हो जाते हैं। इससे लोगों अल्पायु हो जाते हैं, पशुओं की मौत और फसलें भी खराब हो जाती हैं।

ये भी पढ़ें-

‘प्रिय मीडिया, किसान को ऐसे चुटकुला मत बनाइए’

वायरल वीडियो : गांव में भैंस चराने वाले इस बच्चे के स्टंट आपको हैरत में डाल देंगे

डकैत ददुआ से लोहा लेने वाली ‘शेरनी’ छोड़ना चाहती है चंबल, वजह ये है

More Posts