मधुमक्खीपालकों के लिए यह खबर बुरी हो सकती है

Sanjay Srivastava | Mar 06, 2018, 16:23 IST
agriculture
नयी दिल्ली। मौनपालन किसानों के लिए यह खबर कुछ बुरी हो सकती है। विदेशों में शहद की मांग कुछ कम हो सकती है। चालू वित्तवर्ष में देश का शहद निर्यात कम हो सकता है क्योंकि प्रमुख आयातक अमेरिका में मांग नरम है वहीं दूसरे शहद निर्यातक देशों ने अमेरिका को सस्ती दरों माल देना शुरू किया है।

देश में लगभग 30 लाख मधुमक्खियों की कालोनी हैं जिससे 94.5 मैट्रिक टन शहद का वार्षिक उत्पादन हो रहा है। भारत अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, इटली और स्पेन को शहद निर्यात करता है।

राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य देवव्रत शर्मा ने बताया, चालू वित्तवर्ष में देश में शहद का उत्पादन कम हुआ है क्योंकि कम बरसात की वजह से फुलों में पुष्प रस (नेक्टर) का कम रहा और फूल जल्दी सूख गए। इसके अलावा अंतराष्ट्रीय बाजार में शहद की कीमतें टूट गई हैं और अंतत: इसका खमियाजा मधुमक्खीपालकों को उठाना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि निर्यात के आर्डर कम होने से मधुमक्खीपालक किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं क्योंकि निर्यात माल को घरेलू बाजार में खपाने में खास तरह की दिक्कत है। आम धारणा है कि शहद जमता नहीं जिसके कारण निर्यात के लिए तैयार खेप को घरेलू बाजार में खपाने में मुश्किलें आ सकती हैं।

उन्होंने सरकार से मांग की कि शहद के उपभोग को बढ़ावा देने के लिए संडे हो या मंडे खूब खाओ अंडे वाले अंडे के जैसा विज्ञापन अभियान चलाया जाना चाहिए। उनकी राय में इस प्रचार का सूत्र वाक्य हो सकता है... शुक्र हो या शनि, रोज खाओ हनी।

राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के अधिशाषी निदेशक डा. बी एल सारस्वत ने कहा, निर्यात के संदर्भ में ऐसी कोई समस्या नहीं है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत कम जरूर है जिससे यहां मधुमक्खीपालक किसानों को दाम कम मिल रहे हैं।

उन्होंने कहा, वित्तवर्ष 2016-17 में 46,000 टन शहद का निर्यात हुआ था और उत्पादन लगभग 94,400 टन का हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत कम (इस बार 1,700 से 1,800 डॉलर प्रति टन) होने की वजह से निर्यातकों को वह कीमत नहीं मिल रही जो पिछले वर्ष मिली थी। लेकिन कीमतों को तय करना अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति निर्भर करता है जिसमें हम दखल नहीं दे सकते।

उन्होंने बताया, देश के अधिकतम शहद उत्पादन का निर्यात अमेरिका को होता है जहां लगभग कुल उत्पादन के 80 प्रतिशत भाग का निर्यात होता है। लेकिन अमेरिका ने पिछले वित्तवर्ष में दाम कम होने की वजह से इसका भंडारण कर लिया जिससे वहां मांग प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अर्जेन्टीना ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया है और वहां उत्पादन अच्छा हुआ है इसलिए वह देश शहद सस्ती कीमत पर बेच रहा है जिससे हमारी मांग कुछ प्रभावित हुई है।

उन्होंने कहा, हमने राज्यों को जरूर लिखा था कि मधुमक्खीपालक किसानों की दिक्क्तों को दूर करने का प्रयास करें लेकिन इस दिशा में राज्यों की ओर से कोई सकारात्मक पहल नहीं दिखी है।

राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के पूर्व अधिशासी निदेशक योगेश्वर सिंह ने कहा, इस बार शहद उत्पादक किसानों की हालत ठीक नहीं है। उनका उत्पादन मौसम से प्रभावित हुआ है। अंतरराष्ट्रीय कीमतें उन्हें आर्डर कम मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने के बावजूद इस क्षेत्र में लगी एजेसिंयों की तैयारियां कम हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र के लिए कोई भी सशक्त राष्ट्रीय समन्वय करने वाली एजेंसी नहीं है।

राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड को मंत्रिपरिषद के अनुमोदन से एक पूर्ण स्वायत्त निकाय बनाया जाना चाहिए और ऐसा होने पर यह संस्था मधुमक्खीपालकों की जरुरतों के अनुरूप समर्थन देने की स्थिति में होगा।

इनपुट भाषा

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