गोरखपुर जिले में रह रहे इस वनटांगिया समाज के लोगों को बुनियादी सुविधाओं का इंतजार

Chandrakant Mishra | Jun 03, 2017, 10:24 IST
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जितेंद्र तिवारी, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

गोरखपुर। गोरखपुर व महराजगंज में वनटांगिया समाज की करीब पचास हजार आबादी वन्य क्षेत्र में निवास करती है। इनमें तीस हजार के करीब मतदाता हैं। अकेले गोरखपुर के चरगावां ब्लॉक में पांच हजार के करीब वनटांगिया समाज के लोग रहते हैं।

यहां पर करीब तीन हजार से ऊपर मतदाता हैं। चरगावां ब्लॉक में इनके पांच गाँव हैं पर यहां बुनियादी सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यहां के लोगों में कुछ आस जगी है कि शायद अब इनके समाज का कुछ भला हो क्योंकि सांसद रहते उन्होंने इस समाज के लिए काफी कुछ किया था।

चरगावां ब्लॉक के जंगल तिनकोनिया नंबर-तीन के रहने वाले राम गनेश गौड़ (45 वर्ष) ने बताया, “पीढ़ी दर पीढ़ी गुजरती चली गई पर कोई खास बदलाव नजर नहीं आया। सीएम योगी आदित्यनाथ ही हम सभी के ईश्वर हैं, उनका जो आदेश होगा। वही हम सभी को मान्य होगा, वही हम सभी के साथ न्याय कर सकते हैं।”

चरगावां ब्लॉक के रजहीं खाले टोला निवासी बलराम राजभर (42 वर्ष) ने बताया, “मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ हम सभी के अभिभावक हैं। उन्हीं की बदौलत हम सभी का अस्तित्व बरकरार है। पहले यहां कोई अधिकारी या कर्मचारी नहीं आता था। हां, मीडिया ने हम सभी की आवाज को हमेशा ही बुलंद किया है।”

रजही ग्रामसभा के नरसल्ली टोला निवासी मालती (40 वर्ष) ने बताया, “सड़क, बिजली, पानी और सिंचाई की व्यवस्था हो जाती तो हम लोगों के लिए काफी फायदेमंद रहता।”वहीं नरसल्ली टोला की ही रहने वाली बादामी देवी (50 वर्ष) ने बताया, “योगी आदित्यानाथ अब प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं। हमें उनसे बहुत उम्मीद है। शायद हम लोगों को सड़क, पानी और बिजली मिलने लगे।”

सड़क, पानी और शौचालय का अभाव

वनटांगिया में रहने वाले लोग मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। रहजी के नरसल्ली टोला में करीब पांच सौ आबादी रहती है, लेकिन यहां पर न तो सड़क है और न पीने का शुद्ध पानी है। इसके साथ ही यहां पर शौचालय भी नहीं बने हैं। लोग शौच के लिए जंगल में जाते हैं, जिससे किसी भी अनहोनी का डर बना रहता है। पक्की सड़क न होने के कारण बरसात के दिनों में यहां की स्थित बहुत ही दयनीय हो जाती है।

जननेता दिवाकर सिंह ने पहले उठाई थी आवाज

क्षेत्र में एक जननेता के रूप में मशहूर रहे दिवाकर सिंह ने सबसे वनटांगिया समाज की आवाज को वर्ष 1994 में उठाई, इनके भला के लिए उन्होंने इस पर खोज कर इनका नाम दिया वनटांगिया। उन्होंने शासन व प्रशासन तक आवाज पहुंचे के लिए किसान सेना नाम से एक अराजनैतिक दल का गठन किया। जब तक जिवित रहे सड़क पर संघर्ष करते रहे। छह वर्ष पूर्व दिवाकर सिंह का निधन हो गया।

क्या है वनटांगिया समाज का इतिहास

टांगिया शब्द मूलत: बर्मा देश के टोंगिया से बना है। वहां की स्थानीय भाषा के टोंग्ग का अर्थ होता है पहाड़ और या का अर्थ होता है खेत। वहां पहाड़ों पर खेती करने वाले पेड़-पौधे लगाकर पहाड़ियों का संरक्षण करने वाले टांगिया कहलाते थे। पेड़-पौधे लगाने का एक विशेष तरीका टांगिया पद्धति के नाम से प्रसिद्ध है। गोरखपुर जिले में टांगिया पद्धति वर्ष 1922 से 1930 के बीच लाई गई थी।

इस पद्धति से वन लगाने का कार्य 1984 तक और कुछ जगहों पर 1999 तक चला। वन लगाने के दौरान इन्हें जंगलों के बीच अनाज उगाने के लिए पौधों के बीच नौ फीट जमीन मिलती रही। दरअसल जिले के जंगल तिनकोनिया नंबर तीन, जंगल रामगढ़ रजही, रजही खाले, रजहीं आमबाग और जंगल चिलबिलवा में इस समाज के लोग निवास करते हैं।

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