बंगलौर की महिला बदल रही यूपी के सरकारी स्कूलों की तस्वीर

Ajay Mishra | Nov 20, 2018, 08:29 IST
कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय छिबरामऊ में पहुंचने पर पता चला कि वहां की छात्राओं को सेनेटरी पैड नहीं मिल रहे हैं। वार्डेन ने कहा कि डॉक्टर से समस्या बताई लेकिन हल नहीं हुई। इसके बाद हमने अपने ड्राइवर को भेजकर सेनेटरी पैड मंगाए और वितरण किए।
#goverment primary school
कन्नौज। सरकारी स्कूलों की सूरत अब बदलने लगी है, कहीं शिक्षक तो कहीं समाजसेवी मदद को हाथ बढ़ा रहे हैं। बंगलौर की एक महिला यहां के सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल रहीं हैं।

RDESController-1672
RDESController-1672


बंगलौर की रहने वाली प्रतिभा मिश्रा (43 वर्ष) बताती हैं, "मेरे पति अनूप कुमार मिश्र एयर फोर्स से रिटायर हैं। अब वह कॉन्ट्रक्टर का काम कर रहे हैं। हम उनका सहयोग करते हैं। कन्नौज के तहसील छिबरामऊ क्षेत्र के गाँव कल्यानपुर में मेरी ससुराल है, लेकिन करीब 13 सालों से बंगलौर में ही रहना हो रहा है।''

वो आगे बताती हैं, "पति की पोस्टिंग बंगलौर में ही थी। बहुत कम ही अपने गाँव जाना हो पाता है। गांव पहुंचने पर एक बार देखा कि महिलाएं बीड़ी बना रही थीं। पास में उनके बच्चे भी बैठे थे। वह स्कूल नहीं पहुंचते थे। स्कूल में बेहतर सुविधाएं भी नहीं थीं। लेकिन विद्यालय में हेड टीचर पूजा पाण्डेय के आने के बाद बच्चों को घर-घर से बुलाने की मुहिम शुरू हुई।"

प्रतिभा आगे कहती हैं, "छोटे बच्चों को स्कूल में बिठाना मुश्किल काम होता है। इसके लिए नई-नई चीजें सिखानी होती हैं। गांव की बहू थी तो सोचा कम्प्यूटर दे दिए। बैठने के लिए फर्नीचर भी दिया। दिसम्बर में गांव आना है तो प्रोजेक्टर लेकर आऊंगी।"

''कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय छिबरामऊ में पहुंचने पर पता चला कि वहां की छात्राओं को सेनेटरी पैड नहीं मिल रहे हैं। वार्डेन ने कहा कि डॉक्टर से समस्या बताई लेकिन हल नहीं हुई। इसके बाद हमने अपने ड्राइवर को भेजकर सेनेटरी पैड मंगाए और वितरण किए। वहां अब हर महीने पैड दिया करूंगी।''

प्रतिभा आगे कहती हैं, ''गांव के बच्चे भी अपने ही बच्चे हैं। अगर उनको अपना नहीं मानेंगे तो उनकी मदद नहीं कर पाएंगे और न ही वह आगे बढ़ पाएंगे। आगे से कई गांव और वहां के स्कूल घूमने हैं। जहां शिक्षक अच्छा कर रहे होंगे या जरूरत होगी तो मदद करूंगी।''

प्रतिभा मिश्रा ने बताया कि विद्यालय प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाया गया है तो सभी सदस्यों और गांव के लोगों के साथ बैठककर समिति को ज्यादा सक्रिय करूंगी। सभी को अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने को कहूंगी। इससे बच्चों का भविष्य बनेगा और स्कूल का भी नाम होगा।

बच्चों के अलावा निरक्षर महिलाओं को भी पढ़ाती हैं हेड टीचर

RDESController-1673
RDESController-1673
गाँव की निरक्षर महिलाओंं को साक्षर बना रहीं हेड मास्टर


प्राथमिक विद्यालय कल्यानपुर की हेड टीचर पूजा पाण्डेय बताती हैं, ''बच्चों के अलावा हम गांव की निरक्षर महिलाओं को पढ़ाते हैं। विद्यालय में दो सहायक अध्यापक और एक शिक्षामित्र भी तैनात हैं। वर्ष 2013 में हम यहां आए थे तो 76 बच्चों के पंजीकरण ही थे, जो अब बढ़कर 202 हो गए हैं।''

पूजा आगे कहती हैं, ''100 छात्र और 102 छात्राएं यहां पढ़ने के लिए नाम लिखा चुके हैं। हाजिरी 90 फीसदी से ऊपर ही रहती है। हमने अपने पास से करीब डेढ़ लाख रूपए स्कूल के लिए खर्च कर दिया है। इसमें 48 हजार की पेंटिंग, 42 हजार की रंगीन पुट्टी और डेकोरशन में भी खर्च किया है। स्कूल की चहारदीवारी नहीं है वहां तार भी लगवाए हैं, जिससे सुरक्षा बनी रहे। जल्द ही चहारदीवारी भी बन जाएगी।''

बिजनेसमैन और धनाढ्य लोग आगे आएंगे तो बच्चों को भौतिक परिवेश अच्छा मिलेगा। शैक्षिक स्तर की जिम्मेदारी टीचर की होती है। प्रतिभा मिश्रा ने जो सहयोग किया है उन्हें विभाग की ओर से धन्यवाद। एसएमसी के गठन से कर्तव्य और अधिकार का बोध होता है। गांव के अभिभावक इसमें होते हैं और बच्चों की उपस्थिति बढ़ती है। चोरी और गंदगी भी रूकती है। टीचर बाहर के होते हैं जो चले आते हैं लेकिन एसएमसी के सदस्य आदि देखरेख करते हैं। जो बच्चे खेतों में काम करते हैं या आलू खोदने जाते हैं उनको भी यही लोग समझाकर स्कूल जाते हैं।'' दीपिका चतुर्वेदी, बीएसए- कन्नौज
उन्होंने आगे बताया कि ''प्रतिभा जी ने भी एक से डेढ़ लाख यहां खर्च किया है। फर्नीचर डोनेट के अलावा दो कम्प्यूटर दिए हैं। शुभारंभ उन्हीं के हाथों से कराऊंगी।''

गांव की 30 वर्षीय महिला पूनम बताती हैं, ''स्कूल में दो-ढाई महीने से पढ़ने आ रही हूं। अपने पति का नाम, बच्चों का नाम और अपना नाम लिखना सीख लिया है। किताब पढ़ना भी सीख लिया है। गांव की 30 से 40 महिलाएं पढ़ने आती हैं। दीदी के स्कूल आने से फायदा है।''

एसएमसी का पुनर्गठन किया

पूजा पाण्डेय बताती हैं कि विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष पद पर पहले रंजीत थे, लेकिन अब प्रतिभा मिश्रा को अध्यक्ष बना दिया गया है। स्कूल कोई भी सरकारी या निजी नहीं बल्कि गांव के बच्चों का होता है। जो भावनाओं को न समझे तो अध्यक्ष बेकार है। स्कूल की तरक्की और पढ़ाई के माहौल के लिए एसएमसी होना जरूरी है।

निजी स्कूल में नहीं मिलता था होमवर्क

RDESController-1674
RDESController-1674
कम्यूटर की मदद से पढ़ाई को बनाती हैं रोचक

कक्षा पांच की छात्रा लक्ष्मी बताती हैं, ''कक्षा तीन तक प्राइवेट स्कूल में पढ़ी। बाद में मेरे पापा ने गांव के इस स्कूल में एडमीशन करा दिया। वहां पैसे भी लगते थे और पढ़ाई भी नहीं होती थी। होमवर्क भी नहीं दिया जाता था। पिताजी मेरे खेती करते हैं। यहां की पढ़ाई से हम संतुष्ट हैं।''

लक्ष्मी ने आगे कहा, ''स्कूल में बहुत सारे व्यायाम और पीटी भी होती है। लैप टॉप से पढ़ाई होती है। महापुरूषों के जन्मदिन होते हैं तो हम लोगों को केक भी मिलती है। बहुत सारी चीजें होती हैं।''

कक्षा तीन की छात्रा शिवांशी बताती हैं, ''पहले दिल्ली में नाम लिखाया गया था। अब यहां सरकारी में पढ़ती हूं। यहां पूरी यूनिफार्म फ्री में मिलती हैं। खाना भी मिलता है। पढ़ाई भी अच्छी होती है कोई पैसा भी नहीं देना पड़ता।''

''गांव की महिलाएं अब बैंक से रूपए निकालने के लिए अपने हाथों से बिड्राल भरती हैं। हमने बैंक से बिड्राल लाकर भरना सिखाया। निरक्षर महिलाएं अब निरक्षर नहीं रहीं। अब अंगूठा नहीं लगातीं बल्कि हस्ताक्षर करती हैं।''

पूजा पाण्डेय आगे बताती हैं, ''बेटी पैदा होने पर पहले लोगों का मुंह बन जाता था। हमने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के तहत सगुन और फल की टोकरी घर में देने का अभियान शुरू कर दिया है।''

Tags:
  • goverment primary school
  • goverment school
  • kannauj school
  • प्राथमिक विद्यालय
  • सरकारी स्कूल

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.