बदलाव की बयार... इस स्कूल में छुट्टी के दिन भी पहुंचते हैं बच्चे

ग्राम प्रधान व एसएमसी के सहयोग से मुजफ्फरनगर चरथावल ब्लॉक के सैदपुर प्राथमिक विद्यालय में बढ़ी बच्चों की संख्या, विद्यालय परिसर में बच्चों ने लगाए पेड़-पौधे, खुद ही करते हैं देखभाल

Update: 2018-08-14 08:01 GMT

चरथावल (मुजफ्फरनगर): रात से हो रही बारिश, सड़क पर भरा पानी, लेकिन दस साल की नूर फातिमा को स्कूल जाने की जल्दी है, घर वाले मना भी करते हैं लेकिन नूर कहां रुकने वाली। उसे समय पर स्कूल पहुंचकर अपने लगाए पौधे जो देखना है।

नूर फातिमा मुजफ्फरनगर जिले के चरथावल ब्लॉक के सैदपुर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती है। वह कक्षा पांच की छात्रा है। नूर ही नहीं विद्यालय में पढ़ने वाला कोई भी बच्चा शायद ही अनुपस्थित होता हो। दो साल पहले तक ऐसा नहीं था। यहां पर बमुश्किल पचास बच्चे पढ़ने आते थे, लेकिन आज यह संख्या 179 हो गई है। यह सब इतना आसान नहीं था।

बच्चों ने बनाया स्कूल हरा-भरा


स्कूल में नूर फातिमा, मो. सलमान जैसे कई बच्चों ने गुलाब, चमेली, गुड़हल जैसे सैकड़ों पौधे लगाए हैं। यह सब इतना आसान नहीं था। प्रधानाध्यापिक दीपा त्यागी बताती हैं, 'शुरू में तो बहुत दिक्कतें आईं। पहले जब हम पौधे लगाते थे तो बच्चे ही सब उखाड़ देते थे। हम अगले दिन आकर फिर उसे ठीक करते। गाँव के लोग कैंपस को भी गंदा कर जाते थे, धीरे-धीरे हमने उन्हें प्रेरित किया। उन्हें समझाया कि यह उनका ही विद्यालय है। उनके ही बच्चे पढ़ते हैं, इसे साफ रखिए, धीरे-धीरे लोगों ने मदद करनी शुरू की। अब बच्चे ही पेड़-पौधे लगाते हैं। यहां सभी पौधे बच्चों ने ही लगाए हैं, उनकी देखभाल भी वही करते हैं।

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"हम बच्चों को इंग्लिश में बात करना और गुड मैनर्स भी सिखाते हैं। इसमें स्टाफ का भी पूरा सहयोग मिलता है। आज हमारे यहां शायद ही कोई बच्चा अनुपस्थित होता हो। इस बार तो गर्मी की छुट्टियों में भी बच्चे आते रहे।"
दीपा त्यागी, प्रधानाध्यापिका

अभिभावकों ने दान किए फर्नीचर


आज इस प्राथमिक विद्यालय में कक्षा एक से पांच तक के सभी बच्चे फर्नीचर पर बैठते हैं। ऐसा संभव हो पाया विद्यालय प्रबंधन समित के सदस्यों व ग्राम प्रधान के सहयोग से। प्रधानाध्यापिका बताती हैं, 'हमें लगा कि हम बच्चों को इतना समझा रहे हैं। उन्हें बदलने की कोशिश कर रहे हैं तो उनके बैठने के लिए भी सही व्यवस्था होनी चाहिए। हमने एसएमसी व पैरेंट्स टीचर मीटिंग बुलाई। उनके सामने फर्नीचर की व्यवस्था करने का प्रस्ताव रखा और मदद मांगी। सभी ने मदद भी की और उसी दिन सात-आठ हजार रुपये का कलेक्शन हो गया। उसके बाद हमने एक समिति बनाई और अभिभावकों के ही जिम्मे फर्नीचर का काम सौंप दिया। उसके बाद करीब एक लाख के फर्नीचर अभिभावकों ने ही दान दिए।

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 "स्कूल में कोई भी जरूरत हो अब हम बजट का इंतजार नहीं करते। गाँववालों के सहयोग से सब हो जाता है, अब लोगों को भी समझ में आने लगा है कि यह स्कूल उन्हीं का है। स्कूल तक आने के लिए सड़क कच्ची थी, जहां पानी भरा रहता बच्चों को आने में बहुत परेशानी होती, आपसी सहयोग से वो सड़क भी पक्की हो गई। जिले के ज्यादातर जिलों में यूनिसेफ व एक्शन ऐड के सहयोग से शिक्षा के स्तर में सुधार आ रहा है। अब अध्यापकों के साथ अभिभावक भी अपनी जिम्मेदारियां समझ रहे हैं।" 

नफीस अहमद, ग्राम प्रधान

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मजदूरी छोड़ पकड़ी पढ़ाई की राह

प्रधानाध्यापिका दीपा त्यागी कहती हैं,' गाँव में कई ऐसे परिवार हैं जो मजदूरी करते हैं, उनके बच्चे भी गेहूं व गन्ने की कटाई के समय व ईंट भट्ठों पर काम करते हैं। लेकिन अब वो भी स्कूल आने लगे हैं। हमने एसएमसी की मदद ली तो उन्होंने हमारा पूरा सहयोग किया, खेती के टाइम भी बच्चे कम हो जाते थे, लेकिन अभिभावक खुद भी समझ रहे हैं कि बच्चों को पढ़ना कितना जरूरी है। हमारी भी यही कोशिश रहती है कि हम बच्चों को बेहतर शिक्षा दे पाएं। आज हाल यह है कि यहां निजी स्कूल होने के बावजूद लोग बच्चों को हमारे स्कूल भेज रहे हैं। '



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