देश के कई हिस्सों से इस डॉक्टर के पास जानकारी लेने आते हैं मछली पालक

महाराजगंज जिला मुख्यालय से निचलौल ब्लॉक मुख्यालय तक जाने वाले मुुख्य मार्ग पर बरोहिया गाँव में मेधा मत्स्य प्रजनन केंद्र से सैकड़ों लीटर स्पान लेने मछली पालक मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान सहित पड़ोसी देश नेपाल तक से आते हैं

Update: 2018-11-22 02:30 GMT

महराजगंज। मछलियों की कौन सी प्रजाति का किस समय पालन करना चाहिए, कौन से तालाब में ज्यादा वृद्धि करेंगी और कितने दिन में तैयार होंगी, जानकारी लेने के लिए जिले ही नहीं मध्य प्रदेश और बिहार तक के मछली पालक पहुंचते हैं।


महाराजगंज जिला मुख्यालय से निचलौल ब्लॉक मुख्यालय तक जाने वाले मुुख्य मार्ग पर बरोहिया गाँव में मेधा मत्स्य प्रजनन केंद्र से सैकड़ों लीटर स्पान व फ्राई साइज बच्चे मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, झांसी, लखीमपुर खीरी, राजस्थान सहित पड़ोसी देश नेपाल तक भेजे जा रहे हैं। दूसरे प्रदेशों से आकर मछली पालक कामन, ग्रास सिलवर, भाकुर, नैनी व रोहू मछलियों के स्पान (बच्चे) पालन के लिए ले जाते हैं।

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बरोहिया गाँव के डॉ. संजय श्रीवास्तव मछलियों के डॉक्टर के नाम से आस-पास के जिलों में मशहूर हैं। संजय श्रीवास्तव ने पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से मछलियों के एक प्रजनन मौसम में एक से अधिक प्रजनन विषय पर शोध किया था। कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली से सीनियर रिसर्च फ़ेलोशिप पाए और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से वित्तीय सहायता भी हासिल किए। बैंकॉक के सेटसार्ट विश्वविद्यालय से मछली पालन में प्रशिक्षित हुए लेकिन अकादमिक उपलब्धियों से हटकर डॉ. संजय की कामयाबी की असली शुरुआत गाँव लौटने के बाद हुई। तब उन्होंने तीन सार्वजनिक पोखरे पट्टे पर लिया।

पट्टे पर करीब डेढ़ हेक्टेयर के सरकारी तालाब और 23,000 रुपए की सरकारी मदद के साथ साल 1990 में उन्होंने मछली पालन की शुरूआत की। इस समय उनके तालाबों में वियतनाम मूल की मशहूर फंगेशियस न सिर्फ पल-बढ़ रही है, बल्कि इसके बीज भी तैयार किये जा रहे हैं। जिले के मत्स्य विकास अभिकरण से इन्हें 23000 रुपए की सरकारी सहायता मिली। लेकिन बाद में पोखरों के पट्टे का नवीनीकरण नहीं हो सका। ऐसा इसलिए कि तबतक ऐसे पोखरों को मछुआरा समुदाय के लिए सरकार ने आरक्षित कर दिया।

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डॉ. संजय बताते हैं, "तब मेरे सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी, इसलिए मैंने खुद के चार हेक्टेयर जमीन में तालाब खुदवाया और मछली पालन शुरू किया। तब मेरे लिए मेरी पढ़ाई मददगार बनी और वैज्ञानिक ढंग से मछली पालन की शुरुआत की।"

उनके देखभाल और रखरखाव के लिए वह खुद कबिल थे। इस समय रोहू, भाकुर, सिल्वर कॉर्प, कॉमन कॉर्प और नैन जैसी बड़ी मछलियों का उत्पादन प्रति एकड़ 75 कुंतल कर रहे हैं और 50 करोड़ स्पान प्रति वर्ष पैदा कर रहे हैं। डॉ. संजय देश के तमाम हिस्सों में आयोजित वर्कशॉप में तो बतौर विशेषज्ञ जाते ही हैं, हर रोज़ उनसे सीखने दूसरे जिलों के लोग भी पहुंचते रहते हैं।

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डॉ. संजय अपने धान के खेत में भी मेड़बन्दी कर मछली का पालन करते हैं। डॉ. संजय बताते हैं, "हमारा तराई क्षेत्र है जहांं पर धान के खेत में पूरे समय पानी भरा रहता है, खेत में मछली पालन करने से पांच गुना अधिक मुनाफा कामाया जा सकता है।"

यूपी सबसे पहले की थी पंगेसियस किस्म की मछली पालन की शुरूआत

वियतनाम मूल की पंगेसियस मछली का उत्पादन यूपी में सबसे पहले साल 2011 में डॉ. संजय ही शुरू किया था। इस मछली को वह प्रति एकड़ 150-200 कुंतल मछली पैदा कर रहे हैं। साथ ही इसके बीज भी तैयार हो रहे हैं। इसका कम एरिया में अधिक उत्पादन होता है।

संजय बतातेे हैं, "यूपी में मांग के मुकाबले पांचवा हिस्सा भी मछली पालन भी यहां नहीं हाेता है, इस लिहाज से क्षेत्र में बड़ा स्कोप है, बस जरूरत है वैज्ञानिक तरीके से शुरूआत करने की, मैंने भी ऐसे ही शुरूआत की थी, आज अच्छा मुनाफा मिल रहा है। 

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