ओडिशा का एक मंदिर, जहां 500 सालों से दलित महिला पुजारी कराती आ रही हैं अनुष्ठान

मां पंचुबरही मंदिर, ओडिशा का शायद एकमात्र मंदिर होगा जहां सैंकड़ों वर्षों से दलित महिला पुजारी सभी अनुष्ठान और पूजा-पाठ कराती आ रही हैं। इसके लिए उन्हें मासिक वेतन नहीं मिलता है, बल्कि स्थानीय लोग बदले में उन्हें अनाज, सब्जियां, और फल आदि देते हैं। सदियों पुराने इस मंदिर को समुद्र का स्तर बढ़ने के बाद, 2018 में इसकी मूल जगह से स्थानांतरित कर दिया गया था।

Update: 2021-12-10 07:41 GMT
मां पंचूबरही मंदिर में पूजा करती पूजारी। सभी फोटो: आशीष सेनापति

बागपतिया (ओडिशा)। ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले में स्थित मां पंचुबरही का मंदिर सदियों से एक असाधारण प्रथा के लिए जाना जाता है। यहां के लोग इसका पालन आज भी बड़ी श्रद्धा के साथ करते हैं। पांच शताब्दियों से, काले ग्रेनाइट में तराशी गई पांच देवियों की पूजा दलित समुदाय की महिला पुजारियों द्वारा की जाती रही है।

मां पंचुबरही पूर्वी राज्य में शायद एकमात्र मंदिर है जहां दलित महिला पुजारी अनुष्ठान करती हैं। इसके लिए उन्हें मासिक वेतन नहीं मिलता है, बल्कि बागपतिया के स्थानीय समुदाय के लोग, जहां मंदिर स्थित है, इन पुजारियों को अनाज, सब्जियां और फल आदि देते हैं।

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सतभाया ग्राम पंचायत की सरपंच रश्मिता साहनी ने बड़े गर्व के साथ गांव कनेक्शन को बताया, "लिंग भेदभाव तो हमेशा से रहा है। फिर भी लगभग 500 साल पहले, हमारे गांव ने इस मंदिर में महिलाओं को पुजारी बनाया, जिस पर पारंपरिक रूप से पुरुषों का एकाधिकार माना जाता रहा है।"

बागपतिया में नवनिर्मित पंचुबरही मंदिर। 

फिलहाल, दलित समुदाय की चार महिला पुजारी- सुजाता दलाई, बनलता दलाई, रानी दलाई और सबित्री दलाई मंदिर में अनुष्ठान करने के लिए बारी-बारी से आती हैं। सतभाया की पूर्व सरपंच सस्मिता राउत ने गांव कनेक्शन से कहा, "केवल दलित समुदाय की विवाहित महिलाएं ही यहां पूजा कर सकती हैं।" उनके अनुसार, किसी भी पुरुष या विधवा महिला को यहां पूजा करने का अधिकार नहीं है।

पुजारी सबिता दलेई गांव कनेक्शन से कहती हैं," आठ साल पहले जब मेरी सास सीता दलाई विधवा हो गईं थीं, तब मैंने उनसे पुजारी के रूप में पदभार संभाला था। "

मंदिर में महिला पुजारियों द्वारा पूजा-पाठ करवाने की प्रथा काफी पुरानी है। बासुदेव दास के अनुसार, कहा जाता है कि पहले पुरुष पुजारी ही मंदिर में काम करते थे। लेकिन जब उनमें से किसी एक ने नशे की हालत में मंदिर आकर पूजा की, तो देवी-देवता उनसे नाराज हो गए। केंद्रपाड़ा में शोधकर्ता बासुदेव दास ने गांव कनेक्शन को बताया, "देवताओं ने पुरुष पुजारियों को श्राप दिया और तब से केवल महिलाएं ही मंदिर में अनुष्ठान करने का काम संभालती आ रही हैं।"

सतभाया ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच निगमानंद राउत कहते हैं,"हमारे गांव में दलित पुजारियों का बहुत सम्मान किया जाता है। हम मंदिर में प्रवेश करने से पहले उनके पैर छूते हैं। पुरुषों के रूप में, हमें देवताओं को छूने की अनुमति नहीं है। "

इस समय, दलित समुदाय की चार महिला पुजारी मंदिर में अनुष्ठान करने के लिए बारी-बारी से आती हैं। 

जब सतभाया का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में समा गया

समुद्र से लगभग 12 किलोमीटर दूर बागपतिया में आज जो मां पंचुबरही मंदिर है, वह मूल रूप से ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के सतभाया के समुद्र तटीय गांव में स्थित था। पंचुबरही मंदिर की स्थापना लगभग 500 साल पहले रजकनिका के राजा ने की थी। जब इसे बनाया गया था, तब यह तट से करीब 15 किलोमीटर दूर था। लेकिन, समय के साथ समुद्र का स्तर लगातार बढ़ता गया और अंततः सतभाया का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में समा गया।

जब समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण पूरे गांव और मंदिर के डूब जाने का खतरा बढ़ने लगा, तो सरकार ने इसी पंचायत में बागपतिया में मंदिर को स्थानांतरित करने का फैसला किया। 2018 में ऐसा पहली बार हुआ था, जब महिला पुजारियों की अनुमति के बाद, देवियों की मूर्तियों को नए स्थान पर ले जाने वाले दल में पुरुषों को भी शामिल किया गया।

सतभाया के पूर्व निवासी सुदर्शन राउत, जो अब बागपतिया की पुनर्वास कॉलोनी में रहते हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया, "मंदिर के साथ-साथ, 571 परिवारों को भी सतभाया से बागपतिया स्थानांतरित कर दिया गया था।"

समय के साथ समुद्र का स्तर लगातार बढ़ता गया और अंततः सतभाया का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में समा गया।

पुराना मंदिर आज भी वहीं खड़ा है। इसकी नमक से सनी, ढहती पुरानी दीवारों पर अभी भी भित्ति चित्रों के निशान बाकी हैं। समुद्र के किनारे खड़ा ये मंदिर अब एक खंडहर में तब्दील हो चुका है। स्थानीय लोगों को लगता है कि बस कुछ समय की बात है, ये खंडहर भी हमेशा के लिए यहां से गायब हो जाएगा।

सतभाया के एक मछुआरे अरखिता बेहरा कहते हैं, "दो महीने पहले सतभाया में पुराने मंदिर का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में डूब गया था। मेरी आंखों के सामने, इसका एक हिस्सा ढहकर, समुद्र के आगोश में समा गया था।"

इस बीच बागपतिया में पूजा-अर्चना जोर-शोर से जारी है। क्या मां पंचुबरही मंदिर हमेशा के लिए बागपतिया में आया है? ये तो बस देवी-देवता ही बता सकते हैं...

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