"बाँस को हॉकी स्टिक और शरीफे को बनाया था बॉल" संघर्ष के दिनों में हॉकी खेलने की कुछ यूँ की थी शुरुआत

राँची में आयोजित महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी 2023 में, भारतीय महिला हॉकी टीम लगातार जीत के बाद खिताब अपने नाम करने में कामयाब रही है। यहाँ तक पहुँचने के लिए टीम को कड़ी मेहनत और संघर्ष से गुजरना पड़ा है। झारखंड के तीन महिला खिलाड़ियों की ज़िंदगी और भी मुश्किल भरी थी, जिन्होंने यहाँ तक पहुंचने के लिए काफी मशक्कत की है। गाँव कनेक्शन ने उनके परिजनों से बात की।

Update: 2023-11-06 10:48 GMT

संगीता ने जब हॉकी खेलना शुरू किया था, तब वह दूसरी क्लास में पढ़ती थीं। अब वह टीम में एक फॉरवर्ड खिलाड़ी हैं और जूनियर एशियन कप (2021 ) खेल चुकी है। सभी तस्वीरें- मनोज चौधरी

राँची, झारखंड। झारखंड के राँची में आयोजित महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी 2023 में, एक के बाद एक मैच जीतने के बाद भारतीय टीम ने जापान को रौंद कर विजेता का खिताब अपने नाम कर लिया। टीम की इस कामयाबी के पीछे खिलाड़ियों की मेहनत को तो हम सब जानते हैं लेकिन यहाँ तक पहुँचने के लिए उन्हें किन संघर्षों से जूझना पड़ा है, शायद ही हम इससे वाकिफ हों।

संगीता कुमारी, सलीमा टेटे और निक्की प्रधान भारतीय महिला हॉकी टीम के कुछ ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपने शानदार खेल के दम पर लोगों के बीच अपनी एक खास जगह बनाई है। ये तीनों ही खिलाड़ी झारखंड के दूरदराज के गाँवों और तंग परिस्थितियों से आई हैं।

और तीनो ही छोटे किसानों की बेटियाँ हैं। आज उनका खेल उनकी पहचान है। राँची के मारँग गोमके जयपाल सिंह एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम में हॉकी मैदान पर ब्लॉक, ड्रिबल और चार्ज खेलते हुए उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया।

संगीता कुमारी के पिता रंजीत माँझी ने गाँव कनेक्शन से गर्व से कहा, "मेरी बेटी पूरे भारत की बेटी है।" वह एक किसान हैं और उनके पाँच बेटियाँ और एक बेटा हैं। सिमडेगा जिले के करंगागुड़ी नवाटोली गाँव में रहने वाले रंजीत के पास सिर्फ एक एकड़ जमीन है, जो परिवार की आमदनी का जरिया है।

सँगीता कुमारी, सलीमा टेटे और निक्की प्रधान। ये तीनों खिलाड़ी उन परिवारों से आती हैं जो आर्थिक रूप से भले ही पिछड़े हुए हों, लेकिन उन्हें अपनी लड़कियों पर बेहद गर्व है।

यह बताते हुए कि उनकी बेटी ने हॉकी खेलना कैसे शुरू किया, रंजीत माँझी ने कहा, “संगीता ने जब हॉकी खेलना शुरू किया तब वह दूसरी कक्षा में पढ़ती थीं। मेरे पास उसके जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। वह नंगे पैर खेलती थी। वह बाँस को अपनी हॉकी स्टिक और शरीफा को गेंद बनाकर खेला करती थी।” उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी 21 साल की बेटी पर बेहद गर्व है जो अपने देश का नाम रोशन कर रही है।

इक्कीस वर्षीय सलीमा टेटे ने भी बाँस को हॉकी और शरीफा को गेंद बनाकर खेलना शुरू किया था। उनके पिता और उनके सबसे पहले कोच सुलक्सन टेटे ने बताया कि जब वह सिर्फ आठ साल की थी, तब से उसने हॉकी को अपना पसंदीदा खेल बना लिया था।

सुलक्सन टेटे ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं उसे और अपने परिवार के पाँच अन्य बच्चों को हॉकी खेलना सिखा रहा था। मुझे लगता था कि मैं तो अपना सपना कभी पूरा नहीं कर पाया लेकिन ये बच्चे अपना सपना जरूर पूरा करेंगे। मैं भी अपने राज्य और देश के लिए खेलना चाहता था, लेकिन पैसे की कमी के कारण मुझे अपना सपना छोड़ना पड़ा।” वह सिमडेगा जिले के सदर ब्लॉक के बड़कीछापर गाँव में 24 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले किसान हैं।

भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी निक्की प्रधान झारखंड की पहली खिलाड़ी हैं जिन्होंने दो ओलंपिक खेले हैं। 29 वर्षीय निक्की के पिता सोमा प्रधान एक किसान हैं, उन्होंने कहा, "वह भारतीय टीम को खेलते हुए देखा करती थी और तभी से उसने उन खिलाड़ियों में से एक बनने की चाह दिल में पाल ली थी।" सोमा प्रधान खूँटी जिले के मुरहू प्रखंड के हेसेल गाँव में रहते हैं।

भले ही ये युवा खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रही हैं। लेकिन आज भी उनका परिवार गरीबी में दिन काट रहा हैं, जहाँ बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

इन तीनों हॉकी खिलाड़ियों के खाते में पहले से ही कई सफलताएँ हैं। फारवर्ड संगीता कुमारी जूनियर एशियन कप (2021) खेल चुकी हैं। भारतीय टीम की मिडफील्डर सलीमा टेटे ने यूथ ओलंपिक गेम्स (2018), टोक्यो ओलंपिक (2020), जूनियर विश्व कप 2021 में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

इनमें से सबसे अनुभवी और सबसे उम्रदराज डिफेंडर निक्की प्रधान एशियाई खेलों (2018), महिला विश्व कप (2018), कॉमनवेल्थ गेम्स (2018), रियो ओलंपिक (2016), टोक्यो ओलंपिक (2020) और अन्य जाने-माने आयोजनों में खेल चुकी हैं।

जहाँ ये युवा खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रही हैं, वहीं उनका परिवार आज भी गरीबी में दिन काट रहा है, जहाँ बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है।

संगीता कुमारी की माँ लखमनी देवी अपनी बेटी की उपलब्धियों से खुश तो हैं, लेकिन सरकार की उदासीनता को लेकर उनके मन में काफी गुस्सा भी है।

ओलंपिक में खेलने के कारण सलीमा टेटे को सरकार से लगभग 50 लाख रुपये मिले हैं।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “प्रशासन ने हमें आश्वासन दिया था कि वे हमें एक घर, पानी, गाय उपलब्ध कराएँगे। गाँव के लिए एक पक्की सड़क और एक तालाब बनाया जाएगा। लेकिन एक राष्ट्रीय खिलाड़ी का परिवार आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में, गरीबी की हालात में जी रहा है।”

संगीता कुमारी का परिवार एक कच्चे घर में रहता है और वे जो पानी व पीते हैं वह गाँव के एक आम हैंडपंप से आता है। इस हैंडपंप पर गाँव के 12 परिवार निर्भर हैं।

संगीता के भाई संजय माँझी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बरसात के समय गाँव तक पहुँचने का रास्ता पूरी तरह से खराब हो जाता है। यह सिर्फ कीचड़ भरा रास्ता है। जब मेरी बहन घर पर होती हैं, तो वह नहाने के लिए पास के तालाब में जाती हैं क्योंकि हमारे घर में कोई बाथरूम नहीं है।” उनके मुताबिक, राज्य सरकार ने संगीता को 5 लाख रुपये दिए हैं लेकिन ये पैसे उनकी कोचिंग और ट्रेनिंग में खर्च हो रहे हैं।

ओलंपिक में खेलने के कारण सलीमा टेटे को सरकार से लगभग 50 लाख रुपये मिले हैं। उनके पिता ने कहा, “केंद्रीय सरकार ने सलीमा को 50 लाख रुपये दिए हैं लेकिन यह पैसा उनके निजी खर्च के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, क्योंकि उन्हें अपना स्वास्थ्य बनाए रखना है। मुझे खुशी है कि अपने समर्पण और कड़ी मेहनत से वह आगे बढ़ रही है। उसके कोचों ने भी उसके प्रदर्शन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”

ओलंपिक में खेलने के कारण सलीमा टेटे को सरकार से लगभग 50 लाख रुपये मिले हैं।

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