बच्चों को कुपोषण से बचाने को अधिक प्रोटीन वाला धान खोजा

Update: 2016-10-21 22:29 GMT
प्रतीकात्मक फोटो

रायपुर (भाषा)। छत्तीसगढ़ में कुपोषण की समस्या से जूझ रहे बच्चों के लिए अच्छी खबर है। राज्य के एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय ने ऐसे धान की किस्म को विकसित किया है जिसमें प्रोटीन और जस्ता की मात्रा काफी बेहतर है।

छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित आदिवासी इलाका बस्तर, दंतेवाडा, नारायणपुर और राजनांदगांव नक्सलवाद की समस्या से तो जूझ ही रहा है, साथ ही इन इलाकों के बच्चे कुपोषण का शिकार भी अधिक हैं। इन क्षेत्रों के बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के लिए राज्य के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का प्रयोग कारगर साबित हो सकता है।

विश्वविद्यालय में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्राध्यापक गिरीश चंदेल ने बताया कि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सात साल की कड़ी मेहनत के बाद चावल की एक ऐसी किस्म को विकसित किया है जिसमें अन्य किस्मों के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन और जस्ता है। जो राज्य में कुपोषण से लडने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

चंदेल ने बताया कि राज्य के जनजातीय समुदाय के बच्चों में कुपोषण का दर अधिक है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य के आदिवासी इलाकों के पांच लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। हांलकि, राज्य सरकार इस समस्या से लड़ने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, और राज्य में पौष्टिक भोजन सप्ताह समेत कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। लेकिन कुपोषण की इस समस्या से लड़ने के लिए अन्य प्रयास भी किए जाने की आवश्कता है।

उन्होंने बताया कि राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (वजन आधारित) में राज्य में कुपोषण की दर 47.1 फीसदी थी जो अब 29.8 फीसदी रह गई है।

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