केला के फल ही नहीं तना से भी पैसा कमा रही हैं बिहार के इस गाँव की औरतें

बिहार के वैशाली में केला के तना से बैग, कागज, राखी सहित तमाम हस्तशिल्प वस्तुएँ बनाकर कुछ महिलाएँ न सिर्फ अपना परिवार चला रही हैं बल्कि दूसरे घरों को भी आमदनी का ज़रिया दे दिया है।

Update: 2023-07-25 13:28 GMT

हाजीपुर (वैशाली), बिहार। केला तो आपने ज़रूर खाया होगा और उसके पत्ते पर खाना भी, लेकिन केला का तना भी बड़े काम का होता है ये शायद सभी लोग नहीं जानते होंगे। जी हाँ, केला के तना को ऐसा वैसा मत समझिए। ऐसी- ऐसी चीजें इससे बन रही हैं कि यकीन नहीं होता।

वैशाली ज़िले की छह महिलाओं ने इस फल के तना से धागा तैयार कर उससे बैग, सैनिटरी पैड, कागज और सजावटी सामान बना डाला है जो दूसरों को भी ख़ुद का काम करने की सीख देता है। हाजीपुर गाँव की इन औरतों ने एफपीओ नाम से एक किसान उत्पादक संगठन बनाया है, जिसकी मदद से वे अपना सामान बेचती हैं।

इस संगठन में आशा देवी, रेणु देवी, कुमारी कृष्णा सिन्हा, सुशील कुमारी, सोनम कुमारी और ललिता कुमारी की संस्था का पूरा नाम 'केरा जीविका महिला केला रेशा किसान उत्पाद कंपनी ' है। ये राज्य सरकार की 'जीविका' के सहयोग से खोली गई पहली केला से जुड़ी चीजें बनाने की इकाई है।

बिहार के वैशाली जिला स्थित बिदूपुर ब्लॉक के कुशीयारी गाँव की आशा देवी और वैशाली जिला स्थित खिलवत गाँव की रहने वाली रेणु देवी

'जीविका' महिलाओं को सशक्त बना रही है, जिन्हें जीविका दीदी कहा जाता है, ताकि वे केले की फसल का सही इस्तेमाल कर ख़ुद का व्यवसाय शुरू कर सकें।

एफपीओ के छह सह-संस्थापकों में से एक आशा देवी, 2017 से जीविका का हिस्सा हैं। “तब मेरा काम दूसरी महिलाओं को जीविका में शामिल करना और ऐसा करने के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाना था। अब मैं हमारी संस्था के संस्थापक सदस्यों में से एक हूँ, ''आशा देवी, जो लगभग 40 वर्ष की हैं, ने गाँव कनेक्शन को बताया।

आशा देवी ने कहा, "वर्तमान में, हम कंपनी से केवल 6,000 रुपये से 7,000 रुपये प्रति माह कमा रहे हैं, लेकिन हमें यकीन ज़ल्द ही हमारी कमाई बहुत अधिक हो जाएगी।"

कंपनी को कच्चा माल, केले के तने, किसानों से मुफ़्त मिलते हैं अभी तक किसान इसे ऐसे ही फेंक देते थे।


उद्यम चलाने वाली छह जीविका दीदियों के अलावा, अन्य 15 से 20 महिलाएँ, जीविका की सदस्य हैं, वो भी प्रसंस्करण इकाई में श्रमिक के रूप में काम करती हैं। इकाई में कुछ पुरुष कर्मचारी भी हैं जो खेतों से केले के तने लाने का काम करते हैं।

महिला श्रमिक इकाई में विशेष मशीन की मदद से रेशे निकालती हैं। जीविका समुदाय समन्वयक सविता देवी ने कहा, "अब तक हमने लगभग 1,200 किलोग्राम केले का फाइबर तैयार किया है और जैसे-जैसे इसकी माँग बढ़ेगी, हम उत्पादन बढ़ाएँगे।" महिलाओं ने कहा कि वे एक दिन में लगभग सात से आठ घंटे काम करती हैं और उन्हें रोज़ 250 रुपये का भुगतान किया जाता है।

केरा जीविका महिला केला रेशा किसान उत्पाद कंपनी में बने केले के रेशों की कीमत 150 रुपये से 200 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच है। अन्य निजी कंपनियाँ इन्हें 180 रुपये किलो बेचती हैं। एफपीओ के सदस्यों ने बताया कि चार से पाँच केले के तने से एक किलोग्राम केले के रेशे निकाले जा सकते हैं।

एफपीओ ने बदल दिया है जीवन

वैशाली के गोरौल गाँव स्थित राष्ट्रीय केला अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के अनुसार, बिहार में लगभग 32,000 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती है। इससे केले के तने से निकाले गए केले के रेशों के निर्माण में तेजी आई है, जिन्हें आमतौर पर फेंक दिया जाता है और राज्य में हज़ारों महिलाओं को इसके उत्पादन में लाभकारी रोज़गार मिला है। राज्य में सबसे अधिक केला वैशाली और मुजफ्फरपुर ज़िले में उगाया जाता है।

जीविका की सामुदायिक समन्वयक सविता कुमारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण ने प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिए हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र में 5,090 वर्ग फुट जगह दी है।"


मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के माध्यम से, छह महिलाओं को कंपनी में निवेश करने और इसे चलाने के लिए प्रत्येक को 10 लाख रुपये का ब्याज मुक्त ऋण दिया गया। इनका चयन जीविका के साथ ही पहले किए गए काम के आधार पर किया गया है। सभी छहों ने कई वर्षों तक जीविका के साथ काम किया था।

“10 लाख रुपये में से हमें पहले ही लगभग 4 लाख रुपये मिल चुके हैं। सरकार भरपूर सहयोग कर रही है। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि छह साल पहले , मेरी दुनिया मेरे घर की चार दीवारों तक ही सीमित थी और अब यह सब बहुत अलग है। ” एफपीओ की सदस्य रेणु देवी, जो 2018 से जीविका के साथ हैं ने कहा।

महिलाओं को केले के रेशे से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण

राज्य भर में सैकड़ों महिलाएँ केले के रेशों से उत्पाद बनाने में शामिल रही हैं, वे निजी उद्यमों से कच्चा माल खरीद रही थीं। हालाँकि, अब वे इसे केरा जीविका महिला केला रेशा किसान उत्पाद कंपनी, जो कि एक जीविका संस्था है, से आसानी से और एक निश्चित कीमत पर खरीद सकती हैं।

प्रसंस्करण इकाई के संचार प्रबंधक, मनीष कुमार ने कहा, केले के रेशे को पहले से ही राज्य में कई स्थानों पर आपूर्ति की जा रही है, जहाँ उनका उपयोग शिल्प के लिए किया जा रहा है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "राज्य में केले के भारी उत्पादन के कारण, गाँवों की कई महिलाएँ जीविका की मदद से इसके रेशे खरीदती हैं और उससे कपड़ा, कागज, सैनिटरी पैड और सजावटी सामान बनाती हैं।"

“हम इकाई में अपने काम का विस्तार करने की भी योजना बना रहे हैं। अभी हम केवल रेशे निकाल रहे हैं और धागा तैयार कर रहे हैं, अब रेशों से कपड़ा बनाने की भी योजना है। इससे हमें बहुत बड़ा फायदा मिलेगा।'' मनीष कुमार ने कहा।


मधुबनी ज़िले की जीविका सदस्य हेमलता पांडेय ने गाँव कनेक्शन को बताया कि 2020 से कई जगहों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें महिलाओं को सिखाया जा रहा है कि केले के पौधे से रेशे कैसे निकाले जाएँ और उसे किसी उपयोगी चीज में कैसे बदला जाए।

“गाँवों में कई महिलाएँ फाइबर के साथ काम कर रही हैं और आजीविका कमा रही हैं। जीविका उन्हें हस्तशिल्प और चिप्स और केले से खाद्य वस्तुएँ बनाने और उन्हें बेचने में मदद कर रही है। ”उन्होंने आगे कहा।

उनके मुताबिक सुपौल ज़िले में केले के तने से जैविक खाद बनाई जा रही है। हेमलता पांडेय ने कहा, "केले की ख़ेती से बहुत सारे नवाचार सामने आ रहे हैं और जीविका उन्हें बढ़ावा देने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है।"

उदाहरण के लिए, सन्नी कुमार अपनी पत्नी प्रज्ञा भारती के साथ फरवरी 2021 से केले के रेशे से हस्तशिल्प बना रहे हैं।

“हम रेशों से ग्रो-बैग, राखी और कई अन्य चीजें बनाते हैं। सुपौल ज़िले के गणपतगंज में रहने वाले सन्नी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "पहले केले के तने से रेशों को अलग किया जाता है और फिर मशीन की मदद से उन्हें सुखाकर एक समान बनाया जाता है।"

उनके अनुसार, केले के तने की बाहरी परत के रेशे अधिक मोटे होते हैं, लेकिन जो बाद में आते हैं वे महीन और अधिक चमकदार होते हैं। फिर रेशों को धागों में पिरोया जाता है।

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