इस फिल्म को देखकर बेटी को बना दिया राष्ट्रीय स्तर का पहलवान

राष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती प्रतियोगिताओं में शामिल हो चुकी निर्जला कुमारी की राह इतनी आसान नहीं थी, दंगल फिल्म से प्रेरित होकर उनके पिता ने जब उन्हें ये सिखाना शुरू किया तमाम मुश्किलें आईं बावजूद इसके निर्जला ने कभी हार नहीं मानी।

Update: 2023-09-26 10:35 GMT

जब गाँव के सारे बच्चे स्कूल जाते थे तब निर्जला और उनकी बहन शालिनी अखाड़े में पसीना बहाती थीं , इसके लिए वो सुबह तीन बजे उठ जाती थीं, जिससे आगे जाकर जब मैदान में उतरे तो कोई भी दोनों बहनों को पीछे न कर पाए। तभी तो 17 साल की निर्जला ने कुश्ती प्रतियोगिताओं में कई मेडल जीते हैं।

बिहार के बेगूसराय जिले के बखरी गाँव की निर्जला की इस यात्रा में उनके साथ खड़े रहने वाले और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाले उनके पिता मुकेश स्वर्णकार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "बचपन से मुझे र्स्पोट्स बहुत अच्छा लगता था, मेरा मन इन्हीं चीजों में लगता था, लेकिन परिवार का सपोर्ट नहीं मिल पाया, क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। इसलिए मैं आगे नहीं बढ़ पाया।"

और जब मुकेश ने दंगल फिल्म देखी तो उन्हें लगा कि जो वो नहीं कर पाए वो उनकी बेटियाँ कर सकती हैं। वो कहते हैं, "साल 2016 में जब दंगल फिल्म देखी तब मुझे हौसला मिला और मैंने सोचा मैं नहीं कर पाया लेकिन मेरी बच्चियाँ कर सकती हैं।"

बस फिर क्या था मुकेश ने घर में ही अखाड़ा तैयार किया और खुद ही दोनों बेटियों को ट्रेनिंग देने लगे। "दोनों को सुबह जल्दी उठकर दौड़ने ले जाना, कसरत कराना शुरू किया, पहले तो दोनों बहुत थक जाती थीं, कहती पैरों में दर्द हो रहा है, हमें ये नहीं करना है। तब मैं उन्हें समझाता कि पहलवानी इतनी आसान नहीं। धीरे-धीरे उन्हें भी अच्छा लगने लगा और उन्हें दंगल ले जाने लगा। " मुकेश ने आगे कहा।

जब मुकेश ने दंगल फिल्म देखी तो उन्हें लगा कि जो वो नहीं कर पाए वो उनकी बेटियाँ कर सकती हैं।

आज निर्जला प्रदेश स्तर पर चार गोल्ड और राष्ट्रीय स्तर पर सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं और आगे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहीं हैं। वो गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "पहले हमारा भी मन नहीं लगता था, फिर धीरे-धीरे लगने लगा। लेकिन हमारा सफर अभी शुरू नहीं हुआ था, हमनें कुश्ती करना शुरू कर दिया और दंगल में जाने लगे।"

वो आगे कहती हैं, "स्टेट लेवल की प्रतियोगिताओं में शामिल होने के बाद सबसे पहले खेलो इंडिया की प्रतियोगिता के लिए भोपाल जाना हुआ। उसके बाद नंदिनी नगर में राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में अंडर-17 में खेलने का मौका मिला, जिसमें मुझे सिल्वर मेडल भी मिला।"

लेकिन निर्जला और उनके परिवार के लिए भी ये सब इतना आसान नहीं था। परिस्थिति हमेशा समान नहीं होती, पहले लॉकडाउन की वजह से सब बंद हो गया और फिर 2021 में हमारे बड़े भाई की एक दुर्घटना में जान चली गई। इसके बाद हमारा पूरा परिवार सदमे में चला गया, हमें लगा कि अब हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे। " निर्जला ने आगे कहा।

कोविड में लॉकडाउन के चलते मुकेश का ज्वेलरी का काम भी बंद हो गया था, जिसके बाद आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण दो साल तक पहलवानी लगभग बंद ही हो गई थी। शालिनी को खेलो इंडिया की प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका मिला, लेकिन बीमारी के कारण अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी।

अब पैसों की तंगी के चलते दोनों बहनों को पहलवानी कराना मुकेश के लिए संभव नहीं था, इसलिए शालिनी को कुश्ती छोड़नी पड़ी। 18 साल की शालिनी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मैंने अपने पापा के सपने को अपना सपना बना लिया था और कुश्ती में मेरा मन लग गया था, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति सही न होने की वजह से मुझे कुश्ती छोड़ी पड़ी। मैं खेलो इंडिया में जीत तो नहीं पायी, लेकिन मैंने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखी थी।"


"हमारे पापा को लोग बहुत कुछ कहते थे, पागल हो गया है, बेटियों से कौन पहलवानी करवाता है। हमारे गाँव में क्या हमारे आस-पास दूर-दूर तक भी कोई लड़की कभी पहलवानी के लिए नहीं गई थी। " निर्जला ने आगे कहा।

निर्जला आगे कहती हैं, "कुश्ती बिल्कुल भी आसान नहीं है, जितनी अच्छी डाइट होगी उतनी अच्छी फाइट होगी, लेकिन हमारे पास चीजें बहुत लिमिटेड हैं, मेरी डाइट अभी सही नहीं है, हमें कहीं से किसी प्रकार की मदद आज तक नहीं मिली।"

निर्जला इस साल 11वीं कक्षा में हैं, पढ़ाई का समय नहीं मिल पाता, बस एग्जाम देने के लिए कुछ समय निकालकर पढ़ती हैं। वो कहती हैं, "प्रैक्टिस के बाद बहुत थकान हो जाती है, तो पढ़ाई के लिए समय नहीं मिलता।"

निर्जला अभी बनारस के निवेदिता शिक्षा सदन बालिका इंटर कॉलेज तुलसीपुर में कुश्ती की प्रैक्टिस कर रहीं हैं, जिसमें निर्जला का चुनाव कुश्ती में जीतने के बाद हुआ था।

नेशनल लेवल कुश्ती के दौरान निर्जला को काफी चोट आ गयी थी, इसलिए प्रैक्टिस अभी बंद है।

निर्जला के परिवार में माता पिता और तीन बहनें और उनके दो भाई हैं निर्जला अपनी बहनों में सबसे छोटी हैं। निर्जला कहती हैं, " मेडल मिलने के बाद अब सब कहते हैं हमें तो पता था बच्ची मेहनत कर रही है, कुछ अच्छा करेगी, लेकिन जब मैं स्कूल जाती थी छोटे बाल होने के कारण लोग कमेन्ट करते थे लड़कों जैसे बाल कर लिया है, लड़की होकर लड़कों वाले खेल खेलती है, बहुत कुछ सुनने को मिला।"

निर्जला आगे कहती हैं, "हमें आगे बढ़ने में सोसाइटी से लड़ाई करनी पड़ी, घर में आर्थिक और मानसिक परेशानियाँ बहुत आईं, लेकिन हम ऐसे ही आगे बढते रहेंगे। संर्घष काफी लम्बा रहा है और अभी चल ही रहा है।"  

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