बिहार: 28 साल पहले बंद हुई वारिसलीगंज चीनी मिल से कर्मचारियों को सैलरी और किसानों को बकाए का इंतजार

पूरे देश में पूरे देश में 756 सरकारी चीनी मिले हैं, जिसमें से 250 बंद पड़ी हैं। बंद पड़ी मिलों में 18 चीनी मिलें बिहार की हैं। लालू यादव की सरकार में 28 साल पहले नवादा जिले के वारिसलीगंज चीनी मिल बंद की गई थी। मिल दोबारा चालू होने की बात तो दूर आजतक कर्मचारियों के 26 करोड़ और किसानों के 11 करोड़ रुपए का भुगतान तक नहीं हुआ है।

Update: 2021-12-31 12:05 GMT

28 साल से बंद पड़ी वारिसलीगंज शुगर मिल का ताला खुलेगा कि नहीं? फोटो सुमन शेखर

नवादा (बिहार)। बिहार के नवादा ज़िले में स्थित वारिसलीगंज चीनी मिल पिछले 28 वर्षों से धूल फांक रही है, कभी मशीनों के शोरगुल से आसपास के इलाकों को गुलजार रखने वाली इमारत आज वीरान सन्नाटा ओढ़े हुए है। 78 एकड़ का यह कैम्पस, आज जंगल का रूप ले चुका है। आसपास के किसानों और कर्मचारियों को इंतजार है कि कोई रहनुमा आएगा और इसे फिर से गुलजार कर देगा।

फूस के छप्पर के नीचे पहरा देना वाला चौकीदार सुरेश महतो भी इस आस में हैं कि कोई तो ऐसा आ जाए, जो उनके बकाए का भुगतान करवा दे। चीनी मिल के बारे में पूछने पर वो कहते हैं, "ये चीनी मिल लालू यादव के ही शासनकाल से बंद पड़ी है। जबसे यह चीनी मिल बंद हुई है, लोगों ने इसे चालू करवाने के लिए कई आंदोलन किए, कई राजनेताओं ने इसे चालू करने की बात अपने चुनावी घोषणा पत्रों में की थी, लेकिन चुनाव जीतने के बाद इसे आज तक देखने के लिए भी कोई दोबारा पलटकर नहीं आया।"

1952 में बिहार के पहले मुख्यमंत्री ने इस चीनी मिल की स्थापना की

आधुनिक बिहार के निर्माता कहे जाने वाले बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने इस चीनी मिल को वर्ष 1952 में स्थापित करवाया था उस वक्त मिल के स्थापना के लिए स्थानीय लोगों ने अपनी जमीनें दान में दी थी बाद में 1954 में इस मिल को 'मोहिनी सुगर वर्क्स' नामक निजी कम्पनी ने इसे अपने हाथों में ले लिया। वर्ष 1976 में सबसे ज़्यादा चीनी के उत्पादन के लिए इस चीनी मिल को भारत सरकार ने स्वर्ण पदक से भी नवाजा था, लेकिन अगले ही वर्ष बिहार सरकार ने बिहार राज्य चीनी निगम की स्थापना कर राज्य के कई चीनी मिलों का अधिग्रहण कर लिया, लगभग 16 वर्षों तक राज्य सरकार के अधीन चीनी मिल का संचालन हुआ। लेकिन 1993 में तत्कालीन लालू सरकार ने घाटे का सौदा बतलाकर इस पर ताला जड़ दिया और तब से ही यह चीनी मिल फिर से शुरू होने की बाट जोह रही है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां लगभग 1200 की संख्या में कर्मचारी काम किया करते थे और लगभग सैकड़ों गांवों के किसान, गन्ना सप्लाई किया करते थे।

नवादा ज़िले में स्थित वारिसलीगंज चीनी मिल 28 साल पहले लालू यादव की सरकार में बंद हो गी थी। 

चीनी मिल पर ताला जड़े 28 साल हो गए हैं लेकिन अब तक यहां काम करने वाले हजारों कर्मचारियों की बकाया सैलरी और दूसरे भत्ते नहीं मिले हैं तो गन्ना सप्लाई करने वाले हजारों किसानों के भी करोड़ों रुपए बाकी हैं। बकाए के भुगतान के लिए कर्मचारियों ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक का भी दरवाज़ा खटखटाया लेकिन उन्हें निराशा के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ।

चीनी मिल में टर्नर के पद पर काम करने वाले कर्मचारी मोहम्मद शमीर के करीब 3.50 लाख रुपए बाकी थे थे, पैसे के इंतजार करते-करते मई 2021 में उनकी मौत हो गई।

दिवंगत कर्मी के पुत्र आदिल गांव कनेक्शन को बताते हैं, "हमारे पिता का लगभग साढ़े तीन लाख रुपया चीनी मिल प्रबंधन के पास आज भी बकाया है। पिता जबतक मिल में कार्यरत थे तब तक सब अच्छा ख़ासा चल रहा था, चीनी मिल बंद हुई तो घर में आर्थिक तंगी शुरु हो गयी, रोजी-रोटी चलाने के लिए 1995 में उनके पिता ने वारिसलीगंज मुख्य चौक के पास फुटपाथ पर रेडिमेड कपड़े की दुकान लगाने लगें लेकिन लॉकडाउन में उनके कपड़े का दुकान भी बंद हो गई थी। जिसके बाद तंगी ही चल रही है।"

चीनी मिल मजदूर संघ के महासचिव रहे श्रद्धानंद सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं, "मिल प्रबंधन के ऊपर कर्मचारियों एवं मजदूरों का 26 करोड़ बकाया है जबकि किसानों के 11 करोड़ 9 लाख रुपए गन्ने के आज भी बाकी हैं।"

श्रद्धानंद आगे बताते हैं, "जबतक मिल मोहिनी शुगर वर्क्स के हाथों में था तब तक किसानों और मजदूरों को ऑन द स्पॉट भुगतान कर दिया जाता था, लेकिन जैसे ही मिल स्टेट शुगर निगम (सरकारी निकाय) के अधीन हुई किसान और मजदूरों के भुगतान में देरी होने लगी, लेकिन मिल के द्वारा दिया गया रसीद स्थानीय बाजारों में करेंसी के रूप में काम करता था। किसान मिल से मिलने वाले रसीद देकर व्यापारियों से अपने सामान खरीद लेते थे।"

नीतीश से लेकर मोदी तक सबने किया था चालू करवाने का वादा

बीते 28 वर्षों में ऐसा कोई भी चुनाव नहीं रहा, जिसमें इस चीनी मिल के जीर्णोद्धार का मुद्दा नहीं उछला हो। विधानसभा, लोकसभा प्रत्याशियों से लेकर मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री प्रत्याशियों ने भी इस चीनी मिल को फिर से चालू करने का वादा किया, लेकिन ये कागजी घोषणाएं कभी धरातल पर नहीं उतरीं।

2014 में नवादा के आईटीआई मैदान में चुनावी जनसभा में नरेंद्र मोदी

अप्रैल, 2014 में वर्तमान में सत्तारूढ़ सरकार की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, जब ज़िला मुख्यालय के आईटीआई ग्राउंड में चुनावी जनसभा को संबोधित करने आए थे, तब उन्होंने भी सवाल किया था कि आखिर वारिसलीगंज चीनी मिल से दशकों से धुंआ क्यों नहीं निकला है? तब लोगों में इसको लेकर कुछ आस जगी थी कि शायद मोदी जी प्रधानमंत्री बनें तो वारिसलीगंज चीनी मील पर जड़े ताले टूट जाएंगे, लेकिन स्थानीय लोगों की उम्मीदों पर इस सरकार ने भी पानी ही फेर दिया।

सरकार ने कहा, गन्ने से चीनी नहीं सीधे एथेनॉल बनाएं

स्थानीय सांसद चंदन सिंह ने भी 4 जुलाई 2019 को संसद के मौनसून सत्र में इस चीन मिल को दोबारा चालू करवाने के लिए मांग उठाई थी और केंद्र सरकार से मांग की थी कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस नीति लाकर इस तरह के बंद सभी चीनी मिलों को फिर से पुनर्जीवित किया जाए, लेकिन केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने चीनी उद्योग को घाटे का सौदा बतलाकर स्थानीय सांसद की इस मांग को खारिज कर दिया था और यह सुझाव दिया था कि चीनी मिल में चीनी उत्पादन की जगह गन्ने से सीधे एथनॉल बनाने का कार्य शुरू करें। 

चीनी मिल के बंद होने के बाद कई वर्षों तक गन्ना किसान इस आस में ही गन्ने उपजाते रहें कि आज ना तो कल मिल फिर से चालू होगी और उनके गन्ने का दाम उन्हें जरूर मिलेगा। लेकिन कुछ साल बाद उन्होंने गन्ना उगाना छोड़ दिया।

नवादा जिले में ही माफी गाँव में रहने वाले 62 वर्षीय रविंद्र सिंह बताते हैं, "अब गाँव में कुछ गिने - चुने लोग ही गन्ने की खेती करते हैं, बाकी किसान गन्ने की जगह अब धान और गेहूं उपजाने लगे हैं लेकिन उन्हें इन फसलों का भी वाजिब दाम नहीं मिल पाता है।" बिहार में 2006 में ही एपीएमसी एक्ट खत्म हो गया था, जिसके बाद वहां धान, गेहूं और मक्का समेत दूसरी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से बेहद कम दाम पर अपनी उपज बेचनी होती है। इस साल भी धान की एमएसपी 1940 रुपए की जगह ज्यादातर किसानों ने 1000-1200 रुपए कुंटल में अपनी उपज बेची है।

वारिसलीगंज चीनी मिल के अवशेष

गन्ना था जब तक पलायन कम था

माफी गांव के ही 77 वर्षीय राधेश्याम कहते हैं, "बस इतना समझ लीजिए हमारा एक सुंदर सा सपना बर्बाद हो गया। गन्ने लगाते थे तो हरे चारे से गाय-भैंस पल जाती थी। शादी हो या श्राद्ध सब निपट जाता था, कभी किसी महाजन के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था, हमारे पिताजी मदन यादव चीनी मिल में मज़दूरी करते थे और हम खेती का काम संभालते थे, लेकिन अब तो हमारे बाल-बच्चे भी रोजी-रोटी के जुगाड़ में परदेशी ही बन गए।"

कोरोना महामारी की पहली लहर के बाद देश के महानगरों से बिहारी मज़दूरों का वापस बिहार की तरफ पलायन शुरू हुआ था, तब नीतीश कुमार ने यह घोषणा की थी कि बिहार के लोगों को सरकार बिहार में ही रोज़गार मुहैया करवाएगी तब एक आस जगी थी कि शायद वारिसलीगंज चीनी मिल का जीर्णोद्धार कर सरकार स्थानीय लोगों को रोज़गार देने के लिए कुछ कवायद करेगी, लेकिन विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद नीतीश सरकार का यह वादा भी ठंडे बस्ते में चला गया।

वारिसलीगंज चीनी मिल बिहार का कोई इकलौता उदाहरण नहीं है, 1960-70 के दशक में 40 फीसद चीनी का उत्पादन बिहार के 33 चीनी मिलों में हुआ करता था जिनमे से 23 पर आज ताला जड़ा हुआ है। गया जिले की गुरारू, समस्तीपुर की हसनपुर चीनी मिल, मुजफ्फरपुर की मोतीपुर, गोपालगंज की हथुआ, सिवान की एस केजी, दरभंगा की सकरी, रैयाम व लोहट चीनी मिल, वैशाली की गोरौल व पूर्णिया की बनमनखी चीनी मिल जैसी कई अन्य ऐसी चीनी मिलें थीं, जो एक-एक कर बंद कर दी गयी। देश में चीनी उत्पादन में अव्वल रहने वाले बिहार की भागीदारी आज घटकर केवल 2 फीसद ही रह गयी है।

10 अगस्त 2021 को संसद में सरकार ने बताया कि देश में कितनी चीनी मिल बंद हैं। साभार- लोकसभा के सवाल 

देश में 250 चीनी मिलें बंद, जिसमें 18 बिहार की

इसी साल मॉनसून सत्र के दौरान संसद में पूछे एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री ने बताया कि पूरे देश में पूरे देश में 756 चीनी मिले स्थापित हैं जिसमें से 250 बंद पड़ी हैं। बंद पड़ी मिलों में 18 चीनी मिलें बिहार की हैं।

बिहार में बंद पड़ी मिलों के चालू करने के सवाल के संबंध में सरकार ने कहा कि बिहार राज्य चीनी मिल निगम लिमिटेड ने बोली प्रक्रिया प्रबंधन के माध्यम से दीर्धअवधि पट्टे पर निजी या सार्वजनिक क्षेत्र के उद्मियों को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया शुरु की है। बंद पड़ी मिलों मे से 2 लौरिया (पश्चिमी चंपारण) सुगौली (पूर्वी चंपारण) को एचपीसीएल बॉयोफ्यूल के द्वारा फिर से चालू किया गया है। अन्य पांच मिलों बिहटा, मोतीपुर, रैयाम, समस्तीपुर और साक्री की भी बोली प्रक्रिया हो चुकी है। इनमें से मोतीपुर और रैयाम फिर चीनी मिल बनेंगी बाकी में दूसरे उद्यम लगाने की कवायद जारी है। हालांकि इस बयान में वारसलीगंज चीनी मिल का कहीं नाम था था, यानि नवादा के इलाके को लोगों को अभी और इंतजार करना होगा।

बिहार की चीनी मिलों के दोबारा चालू करने के सवाल पर सरकार का जवाब



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