लॉकडाउन में नौकरी छोड़कर गाँव लौटे युवा यहाँ कर रहे हैं कमाल

हाल के दिनों तक बिहार के हुसैनपुर गाँव की लगभग आधी युवा आबादी काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन कर गई थी। लेकिन कोविड 19 महामारी के दिनों में मज़बूरन उन्हें घर लौटना पड़ा। आज ये युवा अपने दम पर अब यहाँ रेस्टोरेंट या साइबर कैफ़े जैसा काम शुरू कर बड़े शहरों की तुलना में बेहतर कमाई कर रहे हैं।

Update: 2023-05-12 06:11 GMT

हुसैनपुर (नालंदा), बिहार। मार्च 2020 में जब कोविड-19 महामारी को देखते हुए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई, तब सोनू साव के सामने पटना के बाढ़ कस्बे से अपने गाँव लौटने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं था। वहाँ वे दोपहिया गाड़ी के स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर काम करते थे। महामारी की चपेट में अपनी रोज़ी रोटी गवाँ चुके करोड़ों लोगों की तरह सोनू के सामने भी तब भविष्य अंधकारमय था। बावज़ूद इसके बेरोज़गारी और भूख से संघर्ष में जीत सोनू के हाथ लगी। कई दिनों की कड़ी मशक़्क़त के बाद वह बिहार के नालंदा ज़िले में अपने गाँव हुसैनपुर लौटने में कामयाब रहे। हुसैनपुर राज्य की राजधानी पटना से 80 किलोमीटर दूर है।

तीन साल पहले अपने इस गाँव लौटा सोनू साव खाली ज़ेब एक टूटे इंसान थे। लेकिन बुरे दौर में भी फिर उठने की उनकी चाह ने क़ामयाबी की नई राह दिखा दी। 35 साल के सोनू ने कम बज़ट में हुसैनपुर में चाइनीज़ रेस्टोरेंट खोला और अपनी किस्मत अपने हाथों से बदल दी। अब वे रेस्टोरेंट से जमा पैसों की मदद से दोपहिया गाड़ियों के पुर्ज़ों की दुकान खोलने की योजना बना रहे हैं। दस साल के बेटे के पिता सोनू ने गाँव कनेक्शन को बताया कि रेस्टोरेंट से हुई अच्छी कमाई से उनका आत्मविशास काफी बढ़ गया है।

सोनू ने कम बज़ट में हुसैनपुर में चाइनीज़ रेस्टोरेंट खोला और अपनी किस्मत अपने हाथों से बदल दी।

"मेरे जन्म स्थान ने मुझे ऐसे समय सहारा दिया जब मैंने कमाई की सारी उम्मीद खो दी थी। मैं बड़े शहरों में पैसा कमाने की ख़ातिर हुसैनपुर को फिर कभी नहीं छोड़ूंगा, ”नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई कर चुके सोनू ने कहा।

हुसैनपुर गाँव के रिटायर्ड स्कूल टीचर गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हमारे गाँव में 400 से अधिक परिवार हैं, जिनके करीब 50 फीसदी युवा काम की तलाश में अलग अलग सूबों के बड़े शहरों में पलायन कर जाते हैं। लेकिन लॉकडाउन के दौरान बदले हालात में तमाम युवा अपने गाँव लौटने को मज़बूर हो गए।" वो आगे कहते हैं, "तीन साल बाद, उनमें से कई ने हुसैनपुर में अपना छोटा व्यवसाय शुरू किया है। उनका दावा है कि दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों की तुलना में वे यहाँ अधिक पैसा कमा रहे हैं।

अविनाश कुमार चौधरी एक ऐसे ही युवा हैं जो हमेशा के लिए हुसैनपुर लौट आए हैं। बीसीए (कंप्यूटर एप्लीकेशन में स्नातक) कर चुके अविनाश लॉकडाउन के समय पटना में काम करते थे। हालात ख़राब होते ही वे गाँव लौट आए। उन्होंने यहाँ के लोगों की मदद करने के साथ पैसा कमाने के लिए कंप्यूटर और डिजिटल दुनिया के अपने ज्ञान का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

अविनाश कुमार चौधरी एक ऐसे ही युवा हैं जो हमेशा के लिए हुसैनपुर लौट आए हैं।

हुसैनपुर में कम पढ़ी-लिखी महिलाओं, किसानों और गाँव के दूसरे लोगों को सरकार से संबंधित ऑनलाइन काग़ज़ी काम में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता था। मामूली शुल्क पर अविनाश उनकी मदद करने लगे। शुरुआत में, वह अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए काम करते थे, लेकिन जल्द ही उन्होंने एक लैपटॉप खरीदने के लिए पैसा जमा कर लिया। यही नहीं उन्होंने नियमित रूप से पैसे के लेन-देन के लिए लाइसेंस भी लिया, जिससे स्थानीय लोगों को उनके दरवाज़े पर अब बेहतर डिजिटल सुविधाएं मिलने लगी है।

“महामारी से पहले मैं 15,000 रुपये हर महीने कमाता था, लेकिन मुझे पटना या किसी अन्य शहर में काम करने में अब कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं अपने गाँव में पैसे बचा रहा हूँ, क्योंकि मैं अपने परिवार के साथ घर पर रह रहा हूँ।" 31 साल के अविनाश ने गाँव कनेक्शन को बताया। उन्होंने कहा, "डिजिटल सुविधा ने मुझे अपने गाँव में पैसे कमाने का मौका दिया है जो पहले संभव नहीं था।"

शुरुआत में, अविनाश चौधरी अपनी भाभी के ब्यूटी पार्लर की दुकान के एक कोने से डिजिटल से जुड़ी सुविधाएँ देते थे। वे कहते हैं, “उन्होंने मुझे मेरा काम शुरू करने के लिए जगह देने में मदद की। अपनी कमाई से अब मैंने खुद की दुकान बना ली है और अच्छी कमाई कर रहा हूँ।"

अपने गाँव में नए सिरे से इन युवाओं को काम शुरू करने में इन्हें इनके परिवार का भी भरपूर सहयोग मिला।

सोनू साव अपने सफल कैटरिंग बिजनेस का श्रेय अपनी पत्नी को भी देते हैं। “लॉकडाउन के दौरान, मेरे परिवार को दो वक़्त का भोजन जुटाना मुश्किल हो गया था। लॉकडाउन के बाद कई महीनों तक मेरे पास कोई काम नहीं था। तब मेरी पत्नी गुड़िया ने मुझे अपने गाँव में ही खाने से जुड़ा काम शुरू करने की सलाह दी, ”उन्होंने बताया।

“गुड़िया चाइनीज़ खाना पकाने में माहिर हैं और मैंने अपने घर से खाना बनाना शुरू किया। तब से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और थोड़ी बचत करने के साथ-साथ पैसा भी कमाया, ”वह मुस्कुराते हुए ये कहते हैं।

साइबर कैफ़े हुसैनपुर

भुवनेश्वर पासवान ने अपने गाँव हुसैनपुर में इंटरनेट कैफे शुरू किया है। कोविड महामारी से पहले, पासवान झारखंड की राजधानी रांची में एक निजी फर्म में डेटा ऑपरेटर के तौर पर काम करते थे। हुसैनपुर के रहने वाले, 34 साल के भुवनेश्वर 2011 में एडवांस डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (एडीसीए) पूरा करने के बाद झारखंड और बिहार के अलग अलग हिस्सों में काम कर रहे थे।

महामारी ने उन्हें अपने गाँव लौटने पर मज़बूर कर दिया और तभी उन्होंने यहाँ एक साइबर कैफ़े खोलने का फैसला किया। उनका कैफ़े बहुत हिट रहा, क्योंकि यहाँ के लोगों को ऑनलाइन किसी काम के लिए हुसैनपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर अस्थावां ब्लॉक जाना पड़ता था। देर रात ऑनलाइन फॉर्म भरकर घर लौटने में स्कूल, कॉलेज की छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता था।

भुवनेश्वर पासवान ने अपने गाँव हुसैनपुर में इंटरनेट कैफे शुरू किया है।

पासवान के साइबर कैफ़े की बदौलत गाँव के लोगों का अब समय और पैसा दोनों बचता है।

वे कहते हैं, “हुसैनपुर में कैफ़े खुलने के साथ, यहाँ के लोग सरकारी और शिक्षा से जुड़े कामों के लिए ऑनलाइन आवेदन आसानी से कर लेते हैं। उन्हें दूर जाने के लिए एक दिन की तनख़्वाह कटवाने या ज़रूरी काम रोकने की अब ज़रूरत नहीं है। मुझे खुशी है मैं अपने लोगों की मदद कर पा रहा हूँ।"

सोनू कुमार के पास सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा है। पिछले दो साल से हुसैनपुर में एक दुकान चला रहे हैं। महामारी से पहले, वह पंजाब के गुरदासपुर में पर्यवेक्षक के तौर पर काम करते थे, लेकिन घर वापस आकर खुश हैं।

“दो साल से अधिक समय से मैं हुसैनपुर में मुनाफे के साथ अपनी दुकान चला रहा हूँ। गुरदासपुर में सुपरवाइजर के तौर पर काम करते हुए मेरी आमदनी मौज़ूदा आमदनी से कम थी।" उन्होंने बताया कि वह अपने गाँव में एक मसाला फैक्ट्री लगाने पर भी काम कर रहे थे जिसमें करीब 10 युवाओं को काम मिलता।

गाँव के बुजुर्ग युवाओं को हुसैनपुर में अपना छोटा व्यवसाय स्थापित करने में मदद कर रहे हैं। “हम अपनी युवा पीढ़ी को अपना काम शुरू करने में मदद कर रहे हैं। शहरों में, वे पैसे बचाने में असमर्थ हैं, ”नरेश कुमार ने कहा।

"मेरे दो बेटे दिल्ली में काम करते हैं लेकिन वे पैसे नहीं बचा सकते। वे अपने परिवारों को खर्च के लिए पैसा नहीं भेजते हैं। बल्कि, मैं अपनी बहुओं और पोते-पोतियों की आर्थिक ज़रूरतों का ध्यान रख रहा हूँ, यह अच्छा है कि क़ाबिल युवाओं ने अपने गाँव में कमाई करना शुरू कर दिया है और उन्हें अवसरों के लिए बड़े शहरों में जाने की ज़रूरत नहीं है। 60 साल के नरेश कहते हैं।

“हमें उम्मीद है कि हुसैनपुर में कृषि आधारित इकाइयाँ जल्द ही शुरू की जाएँगी, क्योंकि नए लड़के गाँवों में कमाई के मौक़े तलाश रहे हैं। सरकार को उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक और दूसरी सुविधाएं देनी चाहिए, ”हुसैनपुर के एक किसान श्रवण चौधरी ने कहा।

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