जीएम फूड पर सरकार का रवैया ढुलमुल, नागरिकों की सेहत खतरे में

समय-समय पर स्वतंत्र संस्थाओं के मार्केट सर्वे में पाया गया है कि बहुत से पैकेटबंद खाने और बेबी फूड में जीमएम उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है जो कि अवैध है। नागरिक संगठनों का आरोप है कि एफएसएसएआई जीएम फूड पर नियम न होने का हवाला देकर ठोस कार्रवाई से बच रहा है।

Update: 2018-08-14 07:51 GMT

जीएम फूड के मसले पर सरकार के ढुलमुल रवैये से देश के नागरिकों का स्वास्थ्य बड़े जोखिम का सामना कर रहा है। समय-समय पर स्वतंत्र संस्थाओं के मार्केट सर्वे में पाया गया है कि बहुत से पैकेटबंद खाने और बेबी फूड में जीमएम उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है जो कि अवैध है। हाल ही में तमाम नागरिक संगठनों ने इस मुद्दे पर खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के उच्चाधिकारियों से मिलकर कार्रवाई की मांग की पर उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

स्वतंत्र संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने जुलाई 2018 में दिल्ली, पंजाब और गुजरात से लिए खाद्य पदार्थो की लैब टेस्टिंग की। इसमें पाया गया कि इनमें से एक तिहाई नमूनों में जीएम उत्पादों की मौजूदगी पाई। जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलें या आनुवंशिक तौर पर संशोधित फसलें ऐसी फसलें हैं जिनके जीन में किसी दूसरे जीव का जीन डालकर उनमें मनचाहे गुण पैदा किए जाते हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक मानव और दूसरे जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर इनके असर को लेकर एकमत नहीं हैं। एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि ये कैंसर सहित तमाम रोगों का कारण बनती हैं। भारत में जीएम फूड प्रतिबंधित है।

सीएसई ने पाया कि जिन सैंपलों में जीएम उत्पाद थे उनमें से 80 फीसदी आयात किए गए थे, जबकि बाकी भारत में ही बनाए गए थे। इसका मतलब है कि देश में अवैध रूप से जीएम उत्पाद आयात किए जा रहे हैं। आयातित जीएम फूड वाले अधिकतर सैंपलों के ऊपर लगे लेबल यह नहीं बताया गया था कि इन्हें बनाने में जीएम उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है। बाकी में जीएम फ्री होने का गलत दावा भी किया गया था। आयातित जीएम फूड में सोया, कपास के बीज, मक्के और कनोला के बीजों का इस्तेमाल किया गया था। देश में ही बने जीएम फूड वाले सैंपलों में कपास के बीजों का इस्तेमाल किया गया था।

जीएम फूड का विरोध करने वाले संगठन इंडिया फॉर सेफ फूड ने 7 अगस्त को दिल्ली में एफएसएसएआई के सीईओ पवन कुमार अग्रवाल से मुलाकात की। एफएसएसएआई की ओर से यह तो कहा गया कि हम जीएम फूड पर नियंत्रण से जुड़े कानून बना रहे हैं। पर उन्होंने मौजूदा खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत इस शिकायत पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया।

इंडिया फॉर सेफ फूड और दूसरे संगठनों का कहना है कि नियंत्रक संस्था एफएसएसएआई तो बरसों से यही रटारटाया जवाब दे रहे हैं। इनकी लापरवाही और देरी की का फायदा उठाकर जीएफ फूड बाजार में उतारा जा रहा है और नागरिक अनजाने ही इसे खा रहे हैं। इनमें बेबी फूड, खाद्य तेल और पैकेट बंद स्नैक्स शामिल हैं।

इंडिया फॉर सेफ फूड का एक प्रतिनिधिमंडल कर्नाटक के फूड सेफ्टी कमिश्नर पंकज कुमार पांडेय से भी मिला। उन्होंने माना कि जीएम फूड को सेहत के लिए सुरक्षित नहीं पाया गया है। पंकज कुमार पांडेय ने भरोसा दिलाया कि वह खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के अनुसार कर्नाटक में जीएम खाद्य उत्पादों को प्रतिबंधित करने की कोशिश करेंगे। पंकज कुमार 18 अगस्त को अधिकारियों की एक बैठक बुलाकर इस मसले पर फैसला लेने वाले हैं।

संगठन कोएलिशन फॉर जीएम फ्री इंडिया की कविता कुरुगंती का कहना है, "जीएम फूड को नियंत्रित करने के लिए नियम न होने की बात कहकर एफएसएसएआई अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। देश के हर नागरिक का अधिकार है कि उसे जानकारी हो कि वह क्या खा रहा है, सुरक्षित भोजन उसका अधिकार है।" कविता के मुताबिक, "जब एफएसएसएआई ने सुप्रीम कोर्ट में यह माना है कि उसने देश में जीएम फूड की बिक्री की अनुमति नहीं दी है तो उसका यही अर्थ कि उसे देश में जीएम फूड की बिक्री पर रोक लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत कदम उठाने चाहिए। अगर उन्हें सीएसई जैसी स्वतंत्र संस्थाओं के नतीजों पर भरोसा नहीं है तो उन्हें बहुत पहले ही खुद सर्वे करा लेना चाहिए था। वह अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।"

ग्रीन पीस इंडिया के शहर इकबाल का कहना है, "जीएफफूड हमारी थालियों में चुपचाप चला आया है। देश की जनता के साथ इतना बड़ा धोखा हो रहा है यह हमें नामंजूर है।"

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कितने नुकसानदेह हैं जीएम फूड

दुनिया भर में हुए तमाम अध्ययन बताते हैं कि जीएम फूड से ढ़ेरों स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां होती हैं। इंडिया फॉर सेफ फूड के मुताबिक, " जीएम फूड एलर्जी, शरीर के जरूरी अंगों को नुकसान, शरीर के विकास में रुकावट, प्रजनन संबंधी समस्याएं, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में गड़बड़ियां यहां तक कि कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसा इसलिए भी मुमकिन है क्योंकि जीएमफसलों को उगाने में ग्लाइफोसेट और ग्लूफॉसिनेट जैसे घातक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है।"

गौरतलब है कि 10 अगस्त को एक अमेरिकी अदालत ने एक अभूतपूर्व फैसले में कृषि रसायन बनाने वाली कंपनी मॉन्सेंटो को दोषी पाते हुए आदेश दिया है कि वह वादी को 289 मिलियन डॉलर (लगभग 21 अरब रुपए) का मुआवजा दे। अमेरिका के ड्वेन जॉनसन ने आरोप लगाया था कि मॉन्सेंटो के बनाए खरपतवार नाशक का इस्तेमाल करने से उन्हें जानलेवा कैंसर हो गया है।

26 देश उगाते हैं जीएम फसलें

दुनिया भर में 26 देश जीएम फसलें उगाते हैं। वहीं दर्जनों देश ऐसे भी हैं जहां जीएम फसलों की खेती प्रतिबंधित है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अपने यहां इन फसलों की खेती प्रतिबंधित करने वाले ये देश बड़ी मात्रा में इनका आयात करते हैं। इनमें यूरोप के बहुत से देश शामिल हैं। यूरोपियन देशों में हर साल 30 मिलियन टन जीएम अनाज आयात किया जाता है। रूस न अपने यहां जीएम फसलें उगाने की इजाजत देता है न उनका आयात करता है। भारत में जीएम कपास की खेती की अनुमति दी गई है। 

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