बांग्लादेश: बाढ़ तो चली गई, लेकिन पीछे छूट गए लाखों 'क्लाइमेट शरणार्थी'

इस साल मई-जून में बांग्लादेश का पूर्वोत्तर इलाका भारी मानसूनी बारिश और अचानक बाढ़ की चपेट में आ गया था। इससे लाखों लोग प्रभावित हुए और उनमें से कई तो अभी भी बिना रोजगार के विस्थापित जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। लोगों के सर पर कर्ज का बोझ और भुखमरी दोनों तेजी से बढ़ रहे हैं।

Update: 2022-08-24 06:12 GMT

इस साल मई-जून में बांग्लादेश का पूर्वोत्तर इलाका भारी मानसूनी बारिश और अचानक बाढ़ की चपेट में आ गया। लाखों लोग प्रभावित हुए और सैकड़ों-हजारों हेक्टेयर खेती की जमीन पानी में समा गई। फोटो: रफीकुल इस्लाम मोंटू

सिलहट, बांग्लादेश। बाढ़ आई और चली गई, लेकिन बांग्लादेश में बाढ़ प्रभावितों के लिए संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। बेरोजगारी, अपने घरों से विस्थापन, बढ़ते कर्ज और खाने के समान की कमी के चलते उत्तर-पूर्वी बांग्लादेश के सिलहट में आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने आपको जिंदा बनाए रखने लिए संघर्ष कर रहा है।

दक्षिण सुनामगंज उपजिला के नौगांव गाँव के रहने वाले हलाल उद्दीन का घर इसी साल जून में बाढ़ के पानी में बह गया था। उनका नौ लोगों का परिवार तब से हाईवे के किनारे रह रहा है।

हलाल उद्दीन ने बताया कि वह एक ड्राइवर के तौर पर काम करके अपने परिवार का गुजारा चलाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन काम कभी-कभार ही मिल पाता है। 40 साल के उद्दीन ने भारी निराशा के साथ कहा, "सिर्फ परिवार के लोग ही बच पाए। हमारे पास जो कुछ भी था वह सब बह गया। मुझे अपना घर फिर से बनाने और उसमें रहने के लिए कम से कम चार लाख टका (1 बांग्लादेशी टका = 0.83 भारतीय रुपया) की जरूरत होगी। मुझे इतना पैसा कहां से मिलेगा।"

इस साल मई-जून में बांग्लादेश का पूर्वोत्तर इलाका भारी मानसूनी बारिश और अचानक बाढ़ की चपेट में आ गया। लाखों लोग प्रभावित हुए और सैकड़ों-हजारों हेक्टेयर खेती की जमीन पानी में समा गई। इससे फसल का भारी नुकसान हुआ। सिलहट के प्रशासनिक विभाग के सूत्रों के मुताबिक, बाढ़ का पानी सिलहट जिले के बड़े हिस्से में घुस गया, जिसमें से 80 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया, जबकि सुनामगंज जिले के 90 फीसदी हिस्से में बाढ़ ने अपना तांडव दिखाया था।

हलाल उद्दीन का घर इसी साल जून में बाढ़ के पानी में बह गया था। उनका नौ लोगों का परिवार तब से हाईवे के किनारे रह रहा है।

इन दोनों जिलों में लोगों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। गोलापगंज उपजिला में भादेश्वर गाँव, फेनचुगंज उपजिला और हाजीगंज में क्रमशः सोनापुर और कटलपुर गाँव, दक्षिण सिलहट उपजिला में धरमपुर गांव, छतक उपजिला में सिद्धरचर गांव और दोअरबाजार उपजिला में बंगलाबाजार और आलमखली गाँव की हालत विशेष रूप से खराब हैं। वहां रहने वाले काफी सारे लोग विस्थापित हो गए हैं और अभी भी राजमार्ग के किनारे झोपड़ियों में रह रहे हैं।

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अब्दुल कुद्दुस और उनका परिवार भी उन्हीं विस्थापित लोगों से एक है। उन्होंने मनबेग गाँव के पास सिलहट-सुनमगंज राजमार्ग पर शरण ले रखी है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "जब बाढ़ के पानी ने हमारे घर को डुबो दिया, तो हम यहां आ गए।" 52 साल के कुद्दुस कहते हैं, "मैंने बाढ़ से हुए नुकसान से निपटने के लिए 10,000 टका का कर्ज लिया है। मुझे अभी भी अपने और अपने परिवार का पेट पालने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।"


जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल समय से पहले आई बाढ़ 'नुकसान और क्षति' का एक विशिष्ट उदाहरण है। "नुकसान और क्षति" संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता में इस्तेमाल किया जाने वाला एक सामान्य शब्द है. इनका इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के उन परिणामों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो लोगों के अनुकूल हो सकते हैं, या फिर विकल्प तो मौजूद हैं, लेकिन एक समुदाय के पास उन तक पहुंचने या उन्हें इस्तेमाल करने के लिए संसाधन नहीं हैं। नुकसान और क्षति कमजोर समुदायों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती है और आगे भी ऐसा करती रहेगी। इस मुद्दे को जलवायु न्याय का मामला बनाना होगा।

जहां डेल्टा देश का एक इलाका बाढ़ के बाद की मुश्किलों का सामना कर रहा है, वहीं दूसरी ओर इसके कई क्षेत्रों पर सूखे की मार है। इसकी वजह से खरीफ धान की बुवाई का नुकसान हो रहा है। इन जगहों पर मानसून की कमी के कारण बारिश में गिरावट दर्ज की गई है।

व्यापक नुकसान और विस्थापन

सुनामगंज जिले के छटक उपजिला का सिद्धरचर गाँव अभी भी बाढ़ के कहर से जूझ रहा है। यह गांव लगभग 120 परिवारों का घर था और एक सप्ताह से ज्यादा समय तक यह पूरी तरह से पानी में डूबा रहा।

सिद्धारचर गाँव के रहने वाले मनफर अली ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैंने अपने जीवन में इस तरह की बाढ़ कभी नहीं देखी। हमने बाढ़ में अपना सब कुछ खो दिया। अचानक आई बाढ़ ने हमे इतना समय भी नहीं दिया कि घर के अंदर से अपने साथ कुछ लेकर चल सकें। हम बस अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।" 65 साल के अली आगे कहते हैं, "बाढ़ का पानी कम होने के बाद जब मैं घर लौटा तो कुछ नहीं बचा था। सब कुछ फिर से खरीदना होगा।"

जहां डेल्टा देश का एक इलाका बाढ़ के बाद की मुश्किलों का सामना कर रहा है, वहीं दूसरी ओर इसके कई क्षेत्रों पर सूखे की मार है।

बाढ़ के पानी की वजह से मेन रोड से सिद्धरचर गाँव तक जाने वाला रास्ता खराब हो चुका है। गाँव के अंदर आते ही नजर आने वाला सामुदायिक क्लिनिक भी अभी तक पानी में डूबा हुआ है। वहां काम शुरू नहीं हुआ है। दि मा-मोनी आइडियल एकेडमी स्कूल भी पूरी तरह से तबाह हो गया।

दि मा-मोनी आदर्श एकेडमी के प्रधान शिक्षक शमीम अहमद ने गाँव कनेक्शन को बताया, "गांव अभी भी बहुत मुश्किल में है। कुछ आपातकालीन खाद्य सहायता बाढ़ के बाद यहां पहुंचाई गई थी। लेकिन गाँव के लोगों के पुनर्वास के लिए काफी काम करने की जरूरत है। और अभी तक ऐसा करने के लिए कोई पहल नहीं हुई है।"

सुनामगंज जिले के डोवाराबाजार उपजिला के बोगला यूनियन काउंसिल के वार्ड नंबर 6 के सदस्य उमर गनी ने कहा, 'नदी में पानी बढ़ने पर हमें डर लगता है। नदी तट टूटने के बाद बाढ़ के पानी में इस इलाके के कई घर बह गए। नदी के किनारे मजबूत तटबंध बनाए जाने चाहिए। लोग बाढ़ से प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया जाना चाहिए।

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आम जन और सरकारी खजाने, दोनों पर भारी खर्च का दबाव

आपदा प्रबंधन और राहत राज्य मंत्री इनामुर रहमान ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बांग्लादेश के उत्तर और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के 18 जिलों में भीषण बाढ़ से 86 हजार 811 करोड़ टका का नुकसान हुआ है।

मंत्री के मुताबिक, बाढ़ से 28 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। बाढ़ के कारण लगभग 1258.53 करोड़ टका की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई और 55957.21 करोड़ टका की फसल आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गई। उन्होंने कहा कि घरों को कुल और आंशिक रूप से 368.84 करोड़ टका और 1,355.03 करोड़ टका से अधिक का नुकसान हुआ है।

सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के लिए चावल, सूखा भोजन, शिशु आहार, पशुओं के लिए चारा और आठ हजार कोरगैटेड (नालीदार) आयरन शीट आवंटित की हैं।

सुनामगंज जिले के चातक उपजिला निर्बाही अधिकारी मामुनूर रहमान ने गांव कनेक्शन को बताया, "इस क्षेत्र के लोगों ने इतनी बड़ी बाढ़ पहले कभी नहीं देखी। मैं खुद इससे प्रभावित हुआ हूं। इस नुकसान की भरपाई के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए पहल की गई है।"

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जलवायु संकट से विस्थापित लोगों की संख्या बढ़ी

बर्लिन स्थित गैर-लाभकारी पर्यावरण थिंक टैंक जर्मनवाच द्वारा प्रकाशित ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (सीआरआई) 2021 के अनुसार, बांग्लादेश दुनिया के शीर्ष सात देशों में से है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट ने आने वाले सालों में बांग्लादेश सहित दुनिया के 11 देशों में वर्षा, चक्रवात, उच्च ज्वार और बाढ़ में वृद्धि की भविष्यवाणी की है।

सिलहट क्षेत्र में लोगों ने कहा कि उन्होंने अपनी याद में ऐसी तबाही पहले कभी नहीं देखी है। पिछली बार ऐसे हालात 122 साल पहले दर्ज किए गए थे। इस साल, सिलहट बाढ़ से 70 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं और लगभग 500,000 लोग अपने घर खो चुके हैं।

जलवायु संकट के कारण देश में विस्थापित लोगों की संख्या हर साल बढ़ रही है।

बांग्लादेश सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज (बीसीएएस) के कार्यकारी निदेशक और अल गोर के साथ 2007 में नोबेल शांति पुरस्कार के सह-प्राप्तकर्ता अतीक रहमान ने बताया, "जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ज्यादा बारिश और ज्यादा सूखा है। इस बार हमने देखा है कि भारत के चेरापूंजी में ज्यादा बारिश होने की वजह से बांग्लादेश के उत्तर पूर्वी सिलहट क्षेत्र में बाढ़ आ गई। इसके लिए जलवायु परिवर्तन और मानव निर्मित कारक, दोनों जिम्मेदार हैं। वैज्ञानिकों ने पहले ही इस तरह के संकेत दिए थे।"

जलवायु संकट के कारण देश में विस्थापित लोगों की संख्या हर साल बढ़ रही है। स्विट्जरलैंड के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर की इंटरनल डिस्प्लेसमेंट 2021 पर ग्लोबल रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में बांग्लादेश में 44 लाख लोग विस्थापित हुए थे। उनमें से लगभग सभी प्राकृतिक आपदाओं के कारण शरणार्थी बनने के लिए मजबूर हो गए।

पिछले साल सितंबर 2021 में प्रकाशित अपनी ग्राउंडवेल रिपोर्ट में, विश्व बैंक ने आशंका व्यक्त की,कि अगर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जरूरी उपाय नहीं किए गए तो 2050 तक दुनिया के छह क्षेत्रों में 21 करोड़ 60 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो जाएंगे। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चार करोड़ लोग विस्थापित होंगे, अकेले बांग्लादेश में एक करोड़ 99 लाख लोगों के विस्थापित होने की संभावना है।

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