वी के शशिकला को दोषी ठहराये जाने तक का घटनाक्रम

Update: 2017-02-14 13:38 GMT
आय से अधिक संपत्ति मामले में SC ने शशिकला को 4 साल की जेल, दस करोड़ का जुर्माना

नई दिल्ली (भाषा)। आय के ज्ञात स्रोत से अधिक सम्पत्ति के उस मामले में घटनाक्रम निम्नलिखित है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने अन्नाद्रमुक की महासचिव वी के शशिकला को आज दोषी ठहराया। इस मामले में दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता भी शामिल थीं।

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1996: जनता पार्टी के तत्कालीन प्रमुख सुब्रमण्यम स्वामी ने जयललिता पर मामला दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि वर्ष 1991 से वर्ष 1996 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रुप में अपने कार्यकाल में उन्होंने 66.65 करोड रपए की आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति एकत्र की। सात दिसंबर, 1996: जयललिता को गिरफ्तार किया गया। अवैध संपत्ति एकत्र करने समेत कई आरोप लगाए गए।

1997: आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के मामले में चेन्नई की सत्र अदालत में जयललिता और तीन अन्य के खिलाफ मुकदमा शुरु हुआ। चार जून, 1997: उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, भ्रष्टाचार की रोकथाम कानून, 1988 की धारा 13:2: के साथ :13:1::ई: के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।

एक अक्तूबर: मद्रास उच्च न्यायालय ने जयललिता की तीन याचिकाएं खारिज कीं। इन याचिकाओं में से एक में उन पर अभियोग चलाने के लिए तत्कालीन राज्यपाल एम फातिमा बीवी द्वारा दी गई मंजूरी को चुनौती दी गई थी।

मुकदमा आगे बढा। अगस्त 2000 तक अभियोजन पक्ष के 250 गवाहों से पूछताछ की गई और केवल 10 और शेष बचे।

मई 2001 में हुए विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक को पूर्ण बहुमत मिला और जयललिता मुख्यमंत्री बनीं। अक्तूबर 2000 में टीएएनएसआई (तमिलनाडु लघु उद्योग निगम) मामले में जयललिता को दोषी ठहराए जाने के कारण उनकी नियुक्ति को चुनौती दी गई। उच्चतम न्यायालय ने उनकी नियुक्ति को अमान्य करार दिया।

21 सितंबर, 2001: जयललिता मुख्यमंत्री पद से हटीं।

जयललिता की दोषसिद्धि को दरकिनार किए जाने के बाद उन्हें 21 फरवरी, 2002 को एक उपचुनाव में अंदिपट्टी निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा में चुना गया। उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ग्रहण की।

2003: द्रमुक महासचिव के अनबाझगन ने इस आधार पर कर्नाटक में मामला स्थानांतरित करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि जयललिता के मुख्यमंत्री होने के मद्देनजर तमिलनाडु में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है।

18 नवंबर, 2003: उच्चतम न्यायालय ने मामला बेंगलूरु में स्थानांतरित किया।

19 फरवरी, 2005: कर्नाटक सरकार ने पूर्व महाधिवक्ता बी वी आचार्य को अभियोग चलाने के लिए विशेष सरकारी अभियोजक नियुक्त किया।

अक्तूबर: नवंबर 2011: जयललिता ने विशेष अदालत में गवाही और 1,339 प्रश्नों के उत्तर दिए।

12 अगस्त, 2012: आचार्य ने एसपीपी का कार्यभार संभालने में असमर्थता व्यक्त की। कर्नाटक सरकार ने जनवरी 2013 में उनका इस्तीफा स्वीकार किया।

दो फरवरी, 2013: कर्नाटक सरकार ने जी भवानी सिंह को एसपीपी नियुक्त किया।

26 अगस्त, 2013: कर्नाटक सरकार ने बिना कोई कारण बताए और कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से विचार विमर्श किए बिना एसपीपी के तौर पर भवानी सिंह की नियुक्ति वापस लेने की अधिसूचना जारी की।

30 सितंबर, 2013: न्यायालय ने सीपीपी के तौर पर भवानी सिंह की नियुक्ति वापस लेने की अधिसूचना खारिज की।

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