अगर GST नहीं हटाया गया तो चिकनकारी उद्योग को इतिहास ही समझें 

Update: 2017-07-21 23:38 GMT
चिकनकारी उद्योग 

लखनऊ (आईएएनएस)| पांच लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाली विश्व विख्यात लखनऊ का चिकनकारी उद्योग देशभर में लागू हो चुकी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लेकर असमंजस की हालत में है।

उद्योग से जुड़े अनेक लोगों का मानना है कि पहले से ही संकट से जूझ रहे इस कारोबार का जीएसटी आ जाने के बाद डूबना तय है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि चिकनकारी उद्योग में महंगे उत्पादों का कारोबार जीएसटी के चलते बुरी तरह प्रभावित होगा, जबकि छोटे कारोबारियों का दिमाग काम नहीं कर रहा कि वे जीएसटी से कैसे बचें, क्योंकि वे पहले से ही बढ़ी हुई लागत और बेहद कम आय से जूझ रहे हैं।

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2003 में भी वित्तमंत्री रहे जसवंत सिंह ने चिकनकारी उद्योग पर कर लगाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे ठुकरा दिया था। वाजपेयी ने तब कहा था कि चिकनकारी अवध की धरती की समृद्ध विरासत एवं संस्कृति का प्रतीक है और इसे कर प्रणाली से बाहर रखा जाना चाहिए। लेकिन आज 14 साल बाद मौजूदा केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली की सोच इससे बिल्कुल अलग है और उन्होंने चिकनकारी उद्योग को जीएसटी में शामिल कर दिया है। जीएसटी के तहत 1,000 रुपये से कम राशि की किसी भी बिक्री पर पांच फीसदी का कर लगेगा, जबकि 1,000 रुपये से अधिक की किसी भी बिक्री पर 12 फीसदी का कर निर्धारित किया गया है।

चिकनकारी उद्योग

कारोबारी और शिल्पकार जीएसटी के इस झटके से उबर नहीं पा रहे और जीएसटी के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शित करने के लिए बांह में पट्टी बांधकर दुकानें खोल रहे हैं। चिकनकारी उद्योग में 10,000 से अधिक कारोबारी संलिप्त हैं, जिनमें से अधिकतर लखनऊ के पुराने चौक इलाके में स्थित हैं। चिकनकारी को आगे बढ़ाने में 550,000 से अधिक कुशल एवं अकुशल कामगार लगे हुए हैं। चौक के छोटे कारोबारियों में से एक सलीम कहते हैं, "अब हम क्या करें।" सलीम ने आईएएनएस से कहा कि अगर आने वाले समय में ऐसा ही होने वाला है, तो हमें अपनी दुकानें बंद करनी पड़ेंगी। सलीम कहते हैं, "पहले से ही लागत काफी कम पड़ रही थी और अब जीएसटी से तो पूरा संतुलन ही बिगड़ जाएगा।"

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70 से अधिक गांवों में चिकनकारी का काम करने वाले 160,000 परिवार चाहते हैं कि चिकनकारी उद्योग से जीएसटी हटा लिया जाए। उल्लेखनीय है कि इनमें से 80 फीसदी कामगार महिलाएं हैं।

चिकनकारी का काम करने वाली मुन्नी कहती हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से अनुरोध करेंगी कि 'इस मौत के फरमान पर फिर से विचार करें।' चिकन उद्योग संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी सुरेश चाबलानी ने जीएसटी के कारण चिकनकारी उद्योग को पेश आने वाली कई व्यावहारिक दिक्कतों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया, "इस उद्योग में कपड़ा खरीदने से लेकर काटने, छापने, कढ़ाई करने, माड़ी देने और पैक करने तक बड़ी संख्या में अनपढ़ कामगार शामिल हैं, मोदी सरकार उनसे बही-खाता बनाने और बिक्री के आंकड़े रखने की उम्मीद कैसे कर सकती है? यह सरासर बकवास है।"

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जितेंद्र रस्तोगी का परिवार 50 वर्षो से चिकनकारी के काम से संबद्ध है और वह भी जीएसटी को लेकर उतने ही सशंकित हैं। चिकनकारी उद्योग से अगर जीएसटी नहीं हटाया गया तो चिकन को इतिहास ही समझें। वह कहते हैं पहले से चीन में मशीन निर्मित चिकन लखनऊ के चिकन के लिए चुनौती बना हुआ है। जितेंद्र कहते हैं, "यह सरकार की हस्तनिर्मित चिकन को खत्म करने की सुनियोजित रणनीति है।"

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