बजट 2019: स्वास्थ्य क्षेत्र को मिले 62,398 करोड़ रुपए, 19 प्रतिशत का इजाफा

केंद्र सरकार ने हमेशा स्वास्थ के क्षेत्र में कंजूसी दिखाई है, दूसरी बार सत्ता में आई भाजपा सरकार से आम जनता को बहुत उम्मीदें थीं

Update: 2019-07-05 09:13 GMT

लखनऊ। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को union budget 2019 पेश किया। उन्होंने इस बजट हो नए इंडिया का बजट बताया है। सरकार ने पूर्ण बजट को बही खाता कहा है। लेकिन बजट पेश करते समय उन्होंने स्वास्थ्य को लेकर कुछ नहीं बोला। भारत सरकार ने हमेशा स्वास्थ क्षेत्र में कंजूसी दिखाई है। इस बार लोगोंं को कुछ ज्यादा ही उम्मीदें थीं।

पिछले दिनों संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से करीब 150 से ज्यादा बच्चों की मौत पर दुख व्यक्त किया था। वर्तमान समय में भारत की स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं पूरी तरह से ध्वस्त हैं। उन्होंने कहा था कि अगर हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाएं और मजबूत होती तो चमकी बुखार से बच्चों की इतनी संख्या में मौतें न होती।

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इस समय देश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है।        फोटो गाँव कनेक्शन 

इस बजट से आम लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र को बड़ी उम्‍मीदें थीं। देश की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को और मजबूत बनाने के लिए सरकार इस बार बजट में कितना प्रावधान रखेगी सभी लोगों को इसका इंतजार था। पिछले अंतरिम बजट में पीयूष गोयल ने वर्ष 2019-20 के लिए 61,398.12 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया था। जो पिछले स्वास्थ्य बजट से करीब 16 फीसदी ज्यादा था, लेकिन पूरी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश जिसकी जनसंख्या 130 करोड़ है उस हिसाब से यह स्वास्थ्य बजट बहुत कम है। हालांकि इस बार भी स्वास्थ्य के लिए बजट में कुछ ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है।



 



केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को आगामी वित्त वर्ष 2019-2020 के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र को 62,659.12 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। यह धनराशि बीते दो वित्तीय वर्षों में दी गई धनराशि से कहीं अधिक है। साल 2018-2019 के लिए पेश बजट में इस क्षेत्र को 52,800 करोड़ रुपए दिये गए थे। यानी स्वास्थ्य के लिए बजटीय आवंटन में इस बार 19 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। बजट में कहा गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र सरकार की फ्लैगशिप योजना आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) को 6,400 करोड़ रुपए दिये गए हैं जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र का बजटीय आवंटन 60,908.22 करोड़ रुपए का है।

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पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का कहना है, " देश में सरकारी अस्पतालों की कमी, चिकित्सकों का अभाव, बिना प्रशिक्षण वाले मेडिकल कर्मचारी और मेडिकल उपकरणों की बहुत कमी चल रही है। स्वास्थ्य महकमा मूलभूत समस्याओं से जूझ रही है। इस क्षेत्र में सरकार को और काम करने की जरूरत है। डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी होगी, नए अस्पताल खोलने होंगे। जब तक देश के लोग स्वस्थ्य नहीं होंगे तब तक देश विकास नहीं कर सकता, देश में संपन्नता नहीं आ सकती। "

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जर्जर भवनों में संचालित हो रहे हैं अस्पताल।                       फोटो: गाँव कनेक्शन 

सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टर अरुण शाह का कहना है, " मौजूदा हालात की वजह से आम जनता का सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से विश्वास घटता जा रहा है। बीमार होने पर वे मजबूरी में प्राइवेट अस्पताल में जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हम बहुत कम पैसे खर्च करते हैं। जीडीपी का कम से कम पांच प्रतिशत खर्च करने पर ही हालात कुछ काबू में आ सकते हैं। देश में योग्य डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और संसाधनों की भारी कमी है। यह बस कहीं न कहीं पैसे के अभाव में हो रहा है। "

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वर्ष 2013-14 में सरकार सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.2 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करती थी जो कि 2016-17 में बढ़कर 1.4 प्रतिशत कर दिया गया। एनडीए सरकार ने वर्ष 2017-18 के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 48,878 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जो कि वर्ष 2013-14 में 37,330 करोड़ रुपये था। वर्तमान सरकार ने 2017 में नयी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति घोषित की जिसके तहत 2025 तक औसत आयु को 67.5 वर्ष से बढाकर 70 वर्ष करने का लक्ष्य है साथ ही जीडीपी का 2.5प्रतिशत भाग स्वास्थ्य सेवाओं पर करने का लक्ष्य रखा गया है। 2018-19 के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के लिए आवंटन 52,800 करोड़ रुपए है, जो 2017-18 के संशोधित अनुमान 51,550.85 रुपए से 2.5 प्रतिशत ही ज्यादा है। 

राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के तहत आयुष्मान भारत हेल्थ एडं वेलनेस सेंटर की स्थापना के लिए 249.96 करोड़ रुपए जबकि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत 1,349.97 करोड़ रुपयों का आवंटन किया गया है।इस कार्यक्रम के तहत करीब 1.5 लाख उपकेंद्रों और प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों को 2022 तक हेल्थ एडं वेलनेस सेंटर्स में रूपांतरित किया जाना है। इन केंद्रों पर रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर और जरावस्था से संबंधित बीमारियों का उपचार मुहैया कराया जायेगा।

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राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए 32,995 करोड़ रुपए दिये गए हैं जबकि बीते बजट में इस मद में 30,129.61 करोड़ रुपए दिये गए थे। इस मिशन के एक घटक राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए 156 करोड़ रूपये दिये गए हैं जबकि बीते साल इसमें 1,844 करोड़ रूपये दिये गए थे। यानी इस मद में कटौती की गई है।

सरकार ने राष्ट्रीय एड्स और यौन संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के लिए बीते साल के आवंटित 2,100 करोड़ रुपए में 400 करोड़ रुपए का इजाफा करते हुये इसे 2,500 करोड़ रुपए कर दिया है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) को 3,599.65 करोड़ रुपए दिये गए हैं और गत वित्त वर्ष में इस संस्थान को 3,018 करोड़ रुपए दिये गए थे।


राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में दस करोड़ रुपए की कमी की गई है। इसका बजट बीते साल के 50 करोड़ रुपए की तुलना में 40 करोड़ रुपए किया गया है। सरकार ने कैंसर, मधुमेह और कार्डियो-वस्कुलर बीमारी और दिल के दौरों की रोकथाम के लिए आवंटित राशि 175 करोड़ रुपए बताई है जबकि बीते साल यह आंकड़ा 295 करोड़ रुपए का था।

क्षेत्रीय देखभाल कार्यकम के कुल बजटीय आवंटन में 200 करोड़ रुपए की कमी की गई है। यह धनराशि बीते साल 750 करोड़ रुपए थी जिसे अब 550 करोड़ रुपए कर दिया गया है। नर्सिंग सेवाओं के उन्नयीकरण के लिए 64 करोड़ रुपए दिये गए हैं जबकि फार्मेसी स्कूल और कालेजों के उन्नयन को पांच करोड़ रुपए दिये गए हैं।

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जिला अस्पतालों और राज्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों (परास्नातक सीटें) के उन्नयन के लिए 800 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है। सरकार ने जिला अस्पतालों को नए मेडिकल कॉलेज में तब्दील करने के लिए दो हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया है। इसके अलावा 1,361 करोड़ रुपए सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए (स्नातक स्तर) दिये गए हैं साथ ही राज्य पैरामेडिकल साइंस संस्थान और पैरामेडिकल शिक्षा के कॉलेजों की स्थापना के लिए 20 करोड़ रुपए दिये गए हैं।

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