नये कृषि कानूनों के बाद भी दूसरे प्रदेश में फसल नहीं बेच पाये किसान, मंडियों में नहीं मिल रही MSP, औने-पौने रेट पर बेचने को मजबूर

कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए केंद्र सरकार के तीनों बिल अब कानून बन चुके हैं। लोकसभा में विधेयक पेश होने के साथ ही किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था जो अभी तक कई राज्यों में चल रहा है। कानून बने 10 दिन बीत चुके हैं, इतने दिनों में किसानों के लिए क्या कुछ बदला, आइये देखते हैं...

Update: 2020-10-07 10:15 GMT
देशभर की मंडियों में अभी भी धान की खरीदी हो रही है। ( फाइल फोटो- गांव कनेक्शन )

"कोई भी व्यक्ति अपना उत्पाद, दुनिया में कहीं भी बेच सकता है। जहां चाहे वहां बेच सकता है, लेकिन केवल मेरे किसान भाई-बहनों को इस अधिकार से वंचित रखा गया था। अब नये प्रावधान लागू होने के कारण, किसान अपनी फसल को देश के किसी भी बाजार में किसी भी कीमत पर बेच सकेगा।" देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 सितंबर को अपने एक ट्वीट ये तब कहा जब लोकसभा और राज्यसभा में सरकार कृषि सुधार से जुड़े बिल पेश कर रही थी।

केंद्र सरकार के कृषि सुधारों से संबंधित तीन नये कृषि कानूनों में किसानों को अपनी फसल कहीं भी, किसी को भी, किसी भी मात्रा में बेचने की छूट दी गई है। 27 सितंबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद तीनों कृषि बिल कानून बन गये और इसके ठीक दो दिन बाद 28 सितंबर को हरियाणा बॉर्डर से सटे उत्तर प्रदेश के कुछ किसान जब हरियाणा मंडी में धान बेचने गये तो उनसे धान नहीं खरीदा गया।

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के ब्लॉक मुजफ्फराबाद, गांव मनयान के किसान गुरदीप सिंह (38 वर्ष) 29 सितंबर को हरियाणा के जिला यमुनानगर के खिरजाबाद मंडी में 85 कुंतल 6466 किस्म की धान लेकर गये थे। गैर बासमती श्रेणी का यह धान दूसरी किस्मों की अपेक्षा मोटा होता है जिस कारण उत्तर प्रदेश में इसकी खरीद एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर नहीं होती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान।

"हम पहले भी इस मंडी में धान बेचते आये हैं। हरियाणा की सरकार इस धान को भी एमएसपी पर खरीदती है, लेकिन इस बार मंडी में किसी ने हमसे धान खरीदा ही नहीं। पहले तो हम मंडी के बाहर भी एमएसपी से ज्यादा कीमत पर धान बेच देते थे, लेकिन इस बार तो कोई व्यापारी बाहर मिला ही नहीं। मजबूरी में हम वहीं एक जानने वाले के यहां रखकर चले आये।" गुरदीप कहते हैं।

गुरदीप ने इस साल पांच एकड़ में धान लगाया था। "हमारे यहां यही धान 1,000 से 1,200 रुपए कुंतल में बिकता है। हरियाणा की मंडियों में हमें अच्छी कीमत मिलती थी। धान ज्यादा दिन घर रखेंगे तो वजन कम होने लगता है, खराब होने लगता है, ऐसे में हमें बेचकर दूसरी फसल भी तो लगानी होती है।" वे आगे कहते हैं।

किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू है। अगर कभी फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाती है, तब भी केंद्र सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके।

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किसानों को देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की आजादी देने वाली कृषि विधेयकों के कानून बनने के बावजूद उत्तर प्रदेश के किसान हरियाणा में अपनी फसल नहीं बेच पाये। कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून के तहत किसानों को अपनी फसल कहीं भी, किसी को भी बेचने की आजादी मिली है।

देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी 22 सितंबर को एक ट्वीट करके कहा, "किसान भाई, विपक्ष द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार से रहें सावधान... कृषि विधेयक ने किया है तरक्की का प्रावधान...'वन नेशन-वन मार्केट' से अब किसान अपनी फसल कहीं भी, किसी को भी बेच सकते हैं।"

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी कहा कि किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सकते हैं।

इन वादों और नये कानून में किये गये प्रावधानों का असर जानने के लिए गांव कनेक्शन ने अलग-अलग प्रदेशों के किसानों से बात की। यह भी जानने की कोशिश की क्या नये कानून बनने के बाद क्या किसानों को इससे फायदा हो रहा है?

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के तहसील भेट के गांव भोगपुर के युवा किसान अंकित कंबोज (27 वर्ष ) भी 29 सितंबर को हरियाणा के यमुनानगर मंडी में धान बेचने गये थे। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "मैं 40 कुंतल मोटा धान लेकर गया था। हरियाणा में हमें अच्छी कीमत मिलती थी, लेकिन इस साल कृषि कानूनों के कारण वहां हमारा धान किसी ने खरीदा ही नहीं। 50 किलोमीटर ट्रैक्टर से फसल ले गया था तो उसे वापस नहीं ला सकता था।"

"अभी तो वहीं एक व्यापारी के यहां रखकर आया हूं। हमने मंडी के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि आपके मोबाइल जब तक मैसेज नहीं आयेगा, तब तक यहां धान नहीं खरीदा जायेगा। जबकि पिछले साल तो कोई ऐसा नियम नहीं था।" वे आगे कहते हैं।

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सहारनपुर की ही तरह उत्तर प्रदेश के दूसरे जिले मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, बागपत, हापुर आदि जिले के किसान हरियाणा के यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत और सोनीपत की मंडियों में धान बेचने जाते हैं।

कृषि विधेयकों को कानूनी दर्जा मिलने के बाद अगले ही दिन 28 सितंबर को करनाल की सीमा पर उत्तर प्रदेश के 50 से ज्यादा किसानों को जिले की सीमा में घुसने से रोक दिया गया। ये किसान करनाल की मंडियों में धान बेचने जा रहे थे। हरियाणा के कई किसान उत्तर प्रदेश में लीज पर खेत लेकर भी धान की खेती करते हैं।

हरियाणा के बॉर्डर पर ट्रैक्टर-ट्रॉली में धान लेकर खड़े किसान। (फोटो सोशल मीडिया से साभार)

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार करनाल के डिप्टी कमिश्नर निशांत यादव ने आदेश दिया था कि दूसरे प्रदेश से गैरबासमती धान लेकर आ रहे किसानों को सीमा पार न करने दिया जाये। 

इस मामले पर जब विवाद बढ़ा तब अतिरिक्त मुख्य सचिव (खाद्य व नागरिक आपूर्ति) हरियाणा पीके दास ने पत्रकारों से बातचीत में कहा था, "ऐसा कोई कानून नहीं है, जो दूसरे राज्यों के किसानों पर हरियाणा में आकर अपनी उपज बेचने से रोकता है, लेकिन हमारा एक पोर्टल है, जहां किसान अपनी डिटेल भर सकते हैं। इससे हमारे लिए उनसे उपज खरीदना आसान हो जाता है।"

"कोविड की वजह से खरीद प्रभावित हुई। हर पंजीकृत किसान को बाजार में आने के लिए एक मैसेज भेजा जाता है। हमने उत्तर प्रदेश से आये किसानों से उस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने को कहा है। जब वो रजिस्टर कर लेते हैं, तो उन्हें भी वैसा एक मैसेज भेजा जाएगा। फिर वो तय तारीख पर बाजार में अपनी उपज बेचने आ सकते हैं।" वे आगे कहते हैं।

देश की मंडियों में धान आवक शुरू हो गयी है।

करनाल के डिप्टी कमिश्नर निशांत यादव से गांव कनेक्शन ने कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उनके कार्यालय का फोन नहीं उठा, हालांकि एक स्थानीय टीवी को दिये इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए पांच अक्टूबर से ऑनलाइन रजिस्टेशन शुरू होगा, इसके बाद वे भी अपनी फसल यहां की मंडियों में बेच सकते हैं।

इस बीच हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो हुआ जिसमें वे कह रहे थे, "पंजाब और राजस्थान की सरकार मक्का और बाजरे की खरीद क्यों नहीं करती। इन राज्यों के किसान हमारे यहां आकर फसल बेचते हैं। ऐसे में हमने अब थोड़ी सख्ती बरती है कि दूसरे राज्यों का मक्का या बाजरा हम नहीं खरीदेंगे क्योंकि उसका नुकसान हमारे राज्य के किसान उठाते हैं।"

"पहले अपने राज्य के किसानों की फसल खरीदेंगे। दूसरे राज्य के किसान हमारे यहां का लाभ उठालकर ले जाये, इसे हम नहीं होने देंगे।" वे आगे कहते हैं। गांव कनेक्शऩ इस वीडियो की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।

लेकिन अगर ये वीडियो सही है तो मनोहर लाल खट्टर का ये बयान केंद्र सरकार के 'वन नेशन-वन मार्केट' और कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून के खिलाफ है।

करनाल के डिप्टी कमिश्नर निशांत यादव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (खाद्य व नागरिक आपूर्ति) पीके दास के अनुसार उत्तर प्रदेश के किसानों का रजिस्ट्रेशन पांच अक्टूबर से शुरू होना था जिसके बाद उन्हें मैसेज भेजकर बुलाया जाता। इसके बाद क्या हुआ, जानने के लिए किसानों से गांव कनेक्शन ने फोन पर बात की।

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के ब्लॉक मुजफ्फराबाद, गांव मनयान के किसान गुरदीप सिंह जो 29 सितंबर को हरियाणा के जिला यमुनानगर, खिरजाबाद मंडी में 85 कुंतल धान लेकर गये थे, उन्होंने आठ नवंबर को गांव कनेक्शन को बताया, "मैंने सात अक्टूबर को रजिस्ट्रेशन कराया था तो मेरा 28 कुंतल धान (6466 किस्म की धान) तय एमएसपी पर दो नवंबर को बिका, हालांकि अभी तक पूरी फसल नहीं बिक पायी।"

हरियाणा की दूसरी और मंडियों में क्या स्थिति है, इसके लिए हमने कुरुक्षेत्र जिले के पिपली मंडी के मंडी प्रधान बनारसी दास से बात की तो उन्होंने फोन पर बताया, "उत्तर प्रदेश के जिन किसानों ने पांच अक्टूबर के बाद रजिस्ट्रेशन कराया था उनसे खरीद की गयी है, हालांकि अभी हमारे यहां धान खरीद बंद हो गयी है।"

नये कानून के बाद फसलों की कीमत कैसी है?

केंद्र सरकार की वेबसाइट https://agmarknet.gov.in/ के अनुसार एक अक्टूबर को देशभर की मंडियों में कुल 5,979 टन सोयाबीन की आवक हुई जिसकी औसतन मॉडल प्राइस 3,463 रही जबकि सोयाबीन की एमएसपी 3,880 रुपए प्रति कुंतल है। इसी तरह एक अक्टूबर को देशभर की मंडियों में 5,355 मक्के की आवक हुई और इसकी खरीद का मॉडल प्राइस महज 1,163 रुपए रहा जबकि मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,850 रुपए प्रति कुंतल है। कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून लागू से दो दिन पहले 25 सितंबर को देशभर की मंडियों में मक्के की औसतन कीमत 1,287 रुपए प्रति कुंतल थी। मतलब नया कानून लागू होने के बाद मक्के की कीमत 550 रुपए से ज्यादा की गिरावट आयी।

उज्जैन मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक जिला है। जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी नागदा के ढेलनपुर गांव के नारायाण पाटीदार ने कहते हैं, "हमारे यहां तो मंडियों में सोयाबीन की कीमत मुश्किल से 2,000 रुपए प्रति कुंतल मिल रही है। हमें तो लगा था कि नये कानून के बाद हालात बदलेंगे, लेकिन कुछ भी नहीं बदला।"

इसी तरह 25 सितंबर को देश की मंडियों में 1,050 टन कपास की खरीद हुई जिसकी औसतन कीमत 3,964 रुपए प्रति कुंतल थी, जबकि लॉंग स्टेपल कॉटन की एमएसपी 5,825 रुपए और मीडियम स्टेपल कॉटन की एमएसपी 5,515 रुपए प्रति कुंतल है।

धान उत्पादन में देश में दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश में एक अक्टूबर के कुछ जिलों (पश्चिमी यूपी) में धान की सरकारी खरीद शुरू हो गयी है। यूपी सरकार के मुताबिक उ.प्र. राज्य खाद्य एवं आवश्यक वस्तु निगम, पीसीएफ, पीएसयू, मंडी परिषद, भारतीय खाद्य निगम समेत 11 एजेंसियां धान की खरीद कर रही हैं। इसके अलावा रजिस्टर्ड सहकारी समितियां, कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ और एससीपी), मल्टी स्टेट कॉपरेटिव सोसायटी आदि के जरिए खरीद की जाएगी।

देश के धान उत्पादन में राज्यावार हिस्सेदारी।

कृषि बिलों को लेकर सबसे ज्यादा हंगामा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं-धान और दूसरी फसलों की खरीद को लेकर था, जिस पर केंद्र सरकार लगातार कहती रही कि किसान से अनाज की एमएसपी पर खरीद धड़ल्ले से जारी रहेगी और इस बार भी खरीफ के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, किसानों को ज्यादा से ज्यादा एमएसपी का लाभ मिलेगा। लेकिन सितंबर से लेकर अक्टूबर के पहले हफ्ते (आज तक) गांव कनेक्शन को यूपी समेत दूसरे राज्यों के जिलों से जो ग्राउंड रिपोर्ट मिली है वो सरकारी खरीद पर सवाल खड़े करती है। संबंधित खबर यहां पढ़ें

लखीमपुर जिले में गोला तहसील में लखरावां गांव गुरुचरन सिंह के पास 15 एकड़ धान था, जिसमें से वो आधा काटकर बेच चुके हैं। गुरुचरन कहते हैं, "मंडी में धान की कोई खरीद नहीं है। सरकार ने एमएसपी बोल तो दिया लेकिन उसे खरीद कर भी तो दिखाओ, किसान को पैसे की जरूरत अब है, गेहूं, सरसों, आलू बोना है। लेकिन खरीद केंद्रों पर सिर्फ बैनर लगे हैं, मिसर्स (धान मिल मालिक) अपनी अलग मनमानी कर रहे हैं। सरकार ने हम किसानों को पानी में डुबा कर मार दिया है।"

उत्तर प्रदेश में अच्छे धान का अधिकतम सरकारी रेट 1888 रुपए प्रति कुंतल है, लेकिन ज्यादातर जिलों में किसान 1000 रुपए से लेकर 1300 प्रति कुंतल बेचने को मजबूर हैं।

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उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर-सीतापुर के अलावा पश्चिमी यूपी के जिलों में एक अक्टूबर से धान की खरीद शुरू हो चुकी है। लखीमपुर के किसान मेवालाल बताते हैं, "1,000 रुपए में धान बेच दिया है, क्योंकि हमें आलू बोना है अब घर में इतने पैसे नहीं है कि ये फसल भी रखी रहे और दूसरी की बुवाई का इंतजाम हो जाए। सरकारी खरीद कब होगी, कैसे होगी, इसकी जानकारी नहीं।"

इस बीच केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ने रविवार (4 अक्टूबर) को एक रिपोर्ट जारी करके बताया कि चालू खरीफ सीजन में 2020-21 में तीन अक्टूबर तक 5,73,339 टन धान की खरीद हो गई है। मंत्रालय ने बताया कि एमएसपी पर 1082.4654 करोड़ रुपए की खरीद हुई है जिससे 41,084 किसानों को लाभ मिला है।

किसानों का कहना है उन्हें अभी पैसे की जरूरत है तो उन्हें धान बेचना ही होगा अब सरकार खरीदे या व्यापारी। एक मोटे अनुमान के मुताबिक में अक्टूबर के पहले हफ्ते तक किसानों को प्रति कुंतल 500 रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है।

(इस खबर के कुछ हिस्से को आठ नवंबर 2020 को नई रिपोर्ट के लिए अपडेट किया गया है।)

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