संसद में कृषि कानूनों की वापसी की प्रक्रिया क्या होगी? विस्तार से जानिए

तीनों विवादित कृषि कानून की वापसी की प्रक्रिया शुरु हो गई है। लेकिन संसद में उसकी प्रक्रिया होगी?, किसी कानून को वापस करने का संवैधानिक रास्ता क्या है?, गांव कनेक्शन ने देश के वरिष्ठ पत्रकार और संसदीय मामलों के जानकार अरविंद कुमार सिंह से बात की।

Update: 2021-11-29 04:57 GMT

"जिस तरह से ये कानून बने और वापस लिए जा रहे हैं वो भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की अनूठी घटना है। अनूठी इसलिए क्योंकि कोई अपने बनने के एक साल 2 महीने मं वापस हो रहा है। संसदीय इतिहास में ये पहला घटना है।" अरविंद कुमार सिंह कृषि कानूनों के वापस लेने के मुद्दे पर कहते हैं।

भारत में किसान संगठनों के भारी विरोध के बाद कृषि सुधारों के नाम पर लाए गए तीनों कृषि कानून वापस हो रहे हैं। पीएम मोदी ने कानून वापसी का ऐलान करते हुए कहा कि संसद के मानसून के सत्र में कानूनों को विधिवत वापस ले लिया जाएगा।

भारत में कोई कानून कैसे बनता है और कैसे वापस लिया जाता है? राज्यसभा का इसमें क्या रोल है? पीएम मोदी के ऐलान के साथ ही कानून रद्द क्यों नहीं हो गए? भारतीय संविधान में किसी मौजूदा कानून को निरस्त करने के दो तरीके हैं: एक अध्यादेश लाकर या दूसरा कानून बनाकर जो मौजूदा कानूनों की वैधता को खत्म कर देता है। अगर सरकार अध्यादेश का रास्ता अपनाती है, तो कानूनों को छह महीने की अवधि के भीतर तीन कानूनों के दूसरे कानूनों से बदलना होगा। लेकिन इस दौरान अगर अध्यादेश की सीमा समाप्त हो गई और नए कानून पारित नहीं हो सके तो निरस्त कानून फिर से मान्य हो जाएंगे। ऐसे में सरकार के सामने सबसे बेहतर विधायी विकल्प है कि वो एक नया बिल लाकर तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की प्रक्रिया अपनाए। देश के वरिष्ठ पत्रकार और संसदीय मामलों के जानकार अरविंद कुमार सिंह ने गांव कनेक्शन को कानूनों की वापसी की प्रक्रिया पर विस्तार से बात की। अरविंद सिंह उन 4 पत्रकारों में भी है जो इन तीनों कृषि कानूनों के पास होने के दौरान सदन के अंदर मौजूद थे।

"तीनों कानूनों को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही शुरु हो जाएगी। भारत में कानून बनाने का अधिकार संसद को ही है। संसद ही उसे बनाती है और संसद ही उन्हें निरस्त कर सकती है। किसी कानून को बनाने की प्रक्रिया जितनी जटिल है उसे निरस्त करने की प्रक्रिया भी उतनी ही जटिल है।" अरविंद कुमार सिंह कहते हैं।

19 नवंबर को प्रधानमंत्री के कृषि कानूनों की वापसी खे ऐलान के बाद 24 नवंबर को केंद्रीय कैबिनेट ने वापसी पर मुहर पर लगाकर औपचारिकताएं पूरी की हैं। अब सदन में एक बिल लाया जाएगा कि सरकार ये कानून वापस ले रही है। जिसे संसद में पेश किया जाएगा। वो पास होगा फिर राष्ट्रपति की मुहर लगेगी जिसके बाद कानून औपचारिक रुप से वापस होंगे।

अरविंद कुमार सिंह आगे कहते हैं, " विधि एवं न्याय मंत्रालय इस मामले में संबंधित मंत्रालयों से कॉर्डिनेट कर बिल तैयार करेगा, क्योंकि सरकार को संसद में ये बताना होगा कि वो ये कानून वापस क्यों ले रहे हैं। इस बात की संभावना है कि विपक्ष मांग करे कि इस पर चर्चा कराइए, क्योंकि जिस तरह से बिल आए हैं और जिस तरह से बने हैं। जिस तरह से वापस हो रहे हैं भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की अनूठी घटना है।"

1700 कानून वापस ले चुकी है मोदी सरकार

हालांकि ये कोई पहली घटना नहीं है जब सरकार कोई कानून वापस ले रही है। खुद पीएम मोदी 1700 कानून वापस ले चुके हैं लेकिन तीन कृषि कानून उन 1700 से बिल्कुल अलग है।

राज्यसभा टीवी में राजनीतिक मामलों के संपादक होने के नाते लंबे समय तक संसद के गलियारों में रहने वाले अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि कोई कानून वापस नहीं लिए, मोदी प्रधानमंत्री बने तो इन्होंने 1700 कानूनों को छांटकर खत्म कराया क्योंकि वो अप्रासंगिक हो गए थे। इससे पहले भी ऐसा होता रहा है। नेहरु के कार्यकाल में भी हुआ था। एक कानून था criminal tribes act आपराधिक जनजाति अधिनियम। अंग्रेजों ने अपने हितों के लिए भारत की तमाम जनजातियों को अपराधिक प्रवृत्ति वाला घोषित कर रखा था, थानों में उनकी फोटो लगाई जाती थी, नेहरू ने आते ही पहला काम किया, तो ऐसे कानून वापस लिए जाते रहे हैं जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधक थे।"

जून 2020 में अध्यादेश के रुप में आए और सिंतबर 2020 में पास हुए थे कृषि कानून

कृषि सुधार, निवेश बढ़ाने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के नाम पर केंद्र सरकार जून 2020 में अध्यादेश के रुप में तीन कृषि बिल, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 और आवश्यक संसोधन बिल, लेकर आई थी, जिन्हें सितंबर 2020 में संसद ने पास किया। जिसके साथ ही पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसानों ने विरोध शुरु कर दिया था। किसानों के भारी विरोध के चलते मोदी सरकार 19 नवंबर को तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। सरकार की कोशिश रहेगी कि प्राथमिकता के साथ कानून निरस्त हों।

Farm Laws पर संसद में विपक्ष पूछ सकता है सरकार से सवाल 

अरविंद कुमार कहते हैं, "सरकार की कोशिश रहेगी कि कानून जल्द से जल्द निरस्त हों लेकिन विपक्ष इस बात की कोशिश रहेगा कि संसद में कानून के निरस्त होने पर डिबेट (चर्चा) हो। अब सवाल ये है कि डिबेट में क्या होगा? मुझे लगता है कि सवाल होगा कि कोविड-19 (covid-19) की इतनी भयानक लहर में जब देश गुजर रहा था तो कृषि अध्यादेश लाने की क्या जरुरत थी, क्योंकि ऐसे कानूनों के मामलों में अध्यादेश की जरुरत नहीं होती है। अध्यादेश लाने की भी एक प्रकिया है।"

वो आगे बताते हैं, "सरकारों को अध्यादेश लाने का अधिकार है। लेकिन जब उसके बिना काम नहीं चलता। संसद में विपक्ष सवाल कर सकता है जब संसद में आप इसे लाए तो स्टैंडिंग कमेटियों को क्यों नहीं भेजा। आपने देखा होगा कि इस कानून प्रक्रिया में लचरता को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भी सवाल उठाये थे। उन्होंने पूछा कि कोर्ट को इन कानूनों पर हुई डिबेट दिखाएइ, कानूनी प्रक्रिया में क्वालिटी नहीं है।"

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कानून बनाने और निरस्त करने में राज्यसभा की अहमियत

अपना बात विस्तार देते हुए वो कहते हैं, " कानूनों में क्वालिटी आती है स्क्रीनिंग से। स्क्रीनिंग होती है राज्यसभा में। संसद का जो दूसरा हाउस है राज्यसभा, उसका काम ही है कि जल्दबादी में लाए जाने वाले कानूनों को रोकना। क्योंकि संविधान में जो बहस चली तो उसका निचोड यही था कि ये हाउस बना क्यों रहे हैं। आज की तारीख मे अगर किसी सरकारी आदमी को तनख्वाह देनी होती है तो वो मिलती है बजट से बजट लोकसभा में पास होता है लेकिन राज्यसभा का तकनीकी रोल उस तरह का नहीं है लेकिन राज्यसभा काफी अहम है। जिनती वित्तीय समितिया हैं और पीएसी है उनमें राज्यसभा के नुमाइंदे हैं। संविधान बनाने वालों ने इस बात का ध्यान रखा था कि अगर चुनी गई सरकार ये जल्दबादी में कोई कानून ले आती है, जिस पर चर्चा की जरुरत है या रोकने की जरुरत है तो उसे रोक सकती है।"

संसद में जब कृषि कानून पास हुए थे तो काफी हंगामा हुआ था विपक्ष ने नियमों को दरकिनार कर कानूनों को पास करने का अरोप लगाया था। अरविंद सिंह कहते हैं, " इन कानूनों को जल्दबाजी में लाया गया था इसलिए वापस लेना पड़ा। क्या कोई दूसरा कानून है जिसका इस तरह विरोध हुआ हो, लोग एक साल तक प्रदर्शन किए हों। इसमें कश्मीर से कन्या कुमारी तक के लोग शामिल हैं।"

संसद में कृषि कानूनों के रद्द करने में कोई अड़चन नजर नहीं आती हैं कि पीएम एलान कर चुके हैं, कैबिनेट मुहर लगा चुकी है और विपक्ष भी वापसी की मांग कर रही रहा था इसलिए ये कानून आसानी से वापस हो जाए चाहिए।

"कानून सदन में बहुत सरलता से वापस हो जांगे। लेकिन ये संभव है कि नए रुप में कानून लाने की बात हो हो सकता है एमएसपी मुद्दा बने क्योंकि सरकार एमएसपी पर कमेटी बनाने की बात कर चुकी है।

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