भारतीय रेलवे ने रचा इतिहास, दुनिया की पहली सोलर ट्रेन चलाने का किया कमाल

Update: 2017-07-15 10:08 GMT
विश्व की पहली सोलर एनर्जी डीईएमयू ट्रेन।

नई दिल्ली। विश्व की पहली सोलर एनर्जी डीईएमयू (डीजल इलेक्ट्रिक मल्टी यूनिट) ट्रेन चलाने का गौरव भारतीय रेलवे को मिला है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने विश्व की पहली सोलर एनर्जी की ट्रेन को हरी झंडी दिखाई। ये ट्रेन दिल्ली के सराय रोहिल्ला से गुरुग्राम (पूर्व गुड़गांव) के फारुख नगर तक चलेगी। इसके साथ ही भारतीय रेलवे ने विश्व की पहली सोलर एनर्जी की ट्रेन चलाने की शुरुआत कर बड़ा मुकाम हासिल किया है।

रेलवे बोर्ड के रोलिंग ट्रैफिक मेम्बर, रवींद्र गुप्ता ने बताया, "सफदरगंज रेलवे स्टेशन से चलने वाली इस ट्रेन के हर कोच में 16 सोलर पैनल लगे हैं। ये पैनल दिन भर में 20 सोलर यूनिट बिजली बनाएंगे जो ट्रेन की बैट्रियों में स्टोर होगी। सोलर ट्रेन के प्रत्येक कोच में 300 वॉट के 16 सोलर पैनल लगाए गए हैं। इससे करीब 28 पंखे और 20 ट्यूबलाइट जल सकेंगी।" रवींद्र आगे बताते हैं, "स्टोर सोलर बिजली से ट्रेन का काम दो दिन तक चल सकता है लेकिन किसी भी आपात परिस्थिति में कोच का लोड अपने आप डीजल एनर्जी पे शिफ्ट हो जाएगा। इससे सलाना 9 टन कार्बन उत्सर्जन घटेगा और 21 हज़ार लीटर डीजल की बचत होगी।"

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हर साल 700 करोड़ रुपए की बचत

रेलवे बोर्ड के सदस्य (रॉलिंग स्टॉक) रवींद्र गुप्ता ने बताया कि सोलर पावर पहले शहरी ट्रेनों और फिर लंबी दूरी की ट्रेनों में लगाए जाएंगे। अगले कुछ दिनों में 50 अन्य कोचों में ऐसे ही सोलर पैनल्स लगाने की योजना है। पूरी परियोजना लागू हो जाने पर रेलवे को हर साल 700 करोड़ रुपए की बचत होगी।

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ये है सोलर ट्रेन की खासियत

  • पैनल दिन भर में 20 सोलर यूनिट बिजली बनाएंगे, जो 120 एंपीयर ऑवर (एएच) क्षमता की बैटरियों में सहेज ली जाएगी।
  • हर कोच पर 300-300 वॉट के 16-16 सौर पैनल लगे हैं, जिनकी कुल क्षमता 4.5 किलोवाट है। इससे करीब 28 पंखे और 20 ट्यूबलाइट जल सकेंगी। संरक्षित सोलर बिजली से ट्रेन का काम दो दिन तक चल सकता है। किसी भी आपात परिस्थिति में लोड अपने आप डीजल एनर्जी पर शिफ्ट हो जाएगा।
  • प्रति कोच के हिसाब से हर वर्ष नौ टन कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी।
  • अगले छह महीने में दिल्ली स्थित शकूर बस्ती वर्कशॉप में इस तरह के 24 और कोच तैयार किए जा रहे हैं।
  • ट्रेन की कुल लागत 13.54 करोड़ रुपए है। हर पैसेंजर कोच बनाने में 1 करोड़ जबकि मोटर कोच बनाने में 2.5 करोड़ खर्च हुए हैं। हर सोलर पैनल पर 9 लाख रुपए का खर्च आया है।
  • ट्रेन के एक कोच में 69 लोगों के बैठने की व्यवस्था है।
  • इस ट्रेन में दस कोच हैं जिसमें 2 मोटर, 8 पैसेंजर कोच हैं। अगले कुछ दिनों में 50 अन्य कोचों में ऐसे ही सोलर पैनल्स लगाने की योजना है। सोलर पावर पहले शहरी ट्रेनों और फिर लंबी दूरी की ट्रेनों में लगाए जाएंगे।
  • विश्व में पहली बार ऐसा हुआ है कि सोलर पैनलों का इस्तेमाल रेलवे में ग्रिड के रूप में किया गया। शिमला कालका टॉय ट्रेन की छोटी लाइन पर पहले से सौर ऊर्जा ट्रेन चल रही हैं और इसकी बड़ी लाइन की कई ट्रेनों के 1-2 कोच में सोलर पैनल लगे हैं। आपको बता दें कि राजस्थान में भी सोलर पैनल से वाली लोकल ट्रेन का ट्रायल हो गया है।

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