सिंगरौली पार्ट 1- बीस लाख लोगों की प्यास बुझाने वाली नदी में घुली जहरीली राख, कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा

Update: 2019-10-21 07:30 GMT
ऐश डैम टूटने के बाद रिहंद बांध की ओर जाती जहरीली राख

सिंगरौली/सोनभद्र(यूपी/एमपी)। चमकदार ज़िंदगी का सपना देख रहे लाखों लोगों के अरमानों पर दोतरफा मार पड़ी रही है, एक तरफ वातावरण की हवा पहले से ही दूषित थी, अब पीने का पानी भी जहरीला हो गया है।

नेताओं के बयानों में न्यूजीलैंड और सिंगापुर का दर्जा पा चुके सोनभद्र और सिंगरौली के 20 लाख से अधिक लोगों के पीने का पानी जहरीला हो चुका है। जिसका कारण है कि बिजली संयंत्र से निकलने वाली राख (फ्लाई ऐश) का बांध टूटने के बाद रिहन्द बांध में समा जाना। इस कारण नदी का पानी दूषित हो गया है।

रेणुका नदी पर बना रिहन्द बांध सोनभद्र और सिंगरौली के करीब 20 लाख लोगों के लिए पीने के पानी के लिए प्रमुख स्रोत है। इस दूषित पानी से कैंसर जैसी घातक बीमारियां भी हो सकती हैं। रिहंद बांध में एनटीपीसी संयंत्र से निकली करीब 35 मीट्रिक टन (सात करोड़ कुंतल से अधिक) राख समा गई है, जो नदी के पानी को जहरीला कर देगी।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के शक्तिनगर क्षेत्र स्थित भारत के सबसे बड़ी बिजली उत्पादन संयंत्र नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) विंध्याचल का शाहपुर स्थित विशालकाय ऐश डैम (राखड़ बांध) 6 अक्टूबर, 2019 को टूट गया था। इस डैम में बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने के बाद निकली राख जिसे फ्लाई ऐश कहा जाता है, को जमा किया जाता है।

राख का बांध (फ्लाई ऐश) ढहने के कारणों के बारे में स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता चितरंजन गिरी बताते हैं, "बांध पहले से ज़र्जर हो चुका था, लेकिन मरम्मत नहीं कराई गई। शाम चार बजे जब बांध टूटा तो आसपास के लोगों में अफरातफरी मच गई। कई मवेशी भी बह गये। ऐसा लगा कि जैसे किसी बहुत बड़ी नदी का बांध टूट गया हो।"

विंध्याचल का शाहपुर स्थित ऐश डैम जो अब टूट चुका है।

जहां पर यह घटना हुई आम लोगों की आवाजाही रोक दी गई है। गाँव कनेक्शन संवाददाता को भी बस देखकर तुरंत लौटने की शर्त पर जाने दिया गया। जहां डैम टूटा वहां अभी भी बड़ी मात्रा में राख मौजूद है जिसे मजदूर लगाकर हटवाया जा रहा है। यही नहीं, आसपास के कई खेतों में भी ये दूषित पानी अभी जमा है।

इससे पहले 13 अप्रैल 2014 को भी सिंगरौली के एस्सार पावर प्लांट का ऐश डैम टूट गया था। इसकी जद में आये खेत आज भी बंजर हैं।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थिति सिंगरौली-सोनभद्र पट्टी में कोयले पर आधारित 10 पावर प्लांट हैं, जो 21,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं।

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वर्ष 1954 में जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सोनभद्र आये तो यहां की सुंदरता देखकर वे इतने गदगद हुए कि उन्होंने कहा कि यह भारत का स्विट्जरलैंड है। 24 मई 2008 को जब सिंगरौली की स्थापना हुई तब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि वे इसे सिंगापुर बनाएंगे। 

देशभर में पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण से संबंधित मामलों के निपटारे के लिए बने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम (एनजीटी) के अधिनियम के अनुसार फ्लाई ऐश में भारी धातु जैसे-आर्सेनिक, सिलिका, एल्युमिनियम, पारा और आयरन होते हैं, जो दमा, फेफड़े में तकलीफ, टीबी और यहां तक कि कैंसर तक का कारण बनते हैं।


इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के वकील और पर्यावरणविद् अश्वनी कुमार दूबे कहते हैं, "देश भर के लिए बिजली पैदा करने वाले इस इलाके में कुल 21,000 मेगावॉट बिजली उत्पादित की जाती है। इसके लिए साल भर में 10.3 करोड़ टन कोयले की खपत होती है। इतनी बड़ी मात्रा में कोयले की खपत से हर साल तकरीबन 3.5 करोड़ टन फ्लाई ऐश (राख) पैदा होती है, जिसका पर्याप्त निस्तारण हो नहीं पा रहा।"

वे आगे बताते हैं, "एनटीपीसी के पास राख के निस्तारण के लिए कहीं जगह नहीं बची थी और उनके केस में दिए गए निर्णय के आधार पर राख को एनसीएल (नॉर्दर्न कोल फील्ड्स) की खाली पड़ी माइंस में ओबी (ओवर बर्डन) के साथ डालने की प्रक्रिया शुरू करनी थी, जो ये करना नहीं चाहते। ऐसे में जब राख की मात्रा बहुत ज्यादा हो गई तो डैम को टूटने दिया गया।"

इस घटना के बाद 'सेव सिंगरौली' (सिंगरौली बचाव) की मुहिम चलाई जा रही है और जिम्मेदारों पर कार्रवाई को लेकर रैलियां निकाली जा रही हैं। एनटीपीसी के जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई के लिए देश की सर्वोच्च अदालत में याचिका भी दाखिल कर दी गई है।

दोषियों पर कार्रवाई को लेकर नई दिल्ली में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया।

शक्तिनगर के युवा सामाजिक कार्यकर्ता चितरंजन गिरी बताते हैं, "सिंगरौली-सोनभद्र की हवा तो पहले से ही बहुत ज्यादा दूषित है। ऐसे में इस घटना के बाद रिहंद का पानी पीने वाले लोग भयभीत हैं। घटना के तुरंत बाद हमने एनटीपीसी के अधिकारियों को बताया कि ऐश डैम (राख का बांध) से निकली राख रिहंद बांध की ओर जा रही है, लेकिन उन लोगों ने मामने से इनकार कर दिया। इस हादसे को रोका जा सकता था, लेकिन लापरवाही बरती गई।"

एनटीपीसी विंध्याचल के सहायक प्रबंधक लालमणि पांडे का बयान कुछ और ही कहता है। घटना के तुरंत बाद उन्होंने मीडिया को बताया, "फ्लाई ऐश के बांध के टूटने से मलबा अचानक तेजी से बहने लगा। बीच में नाला होने की वजह से डैम की राख रिहंद जलाशय में समाहित हो गई। किसी जान-माल का नुकसान नहीं हुआ बल्कि एनटीपीसी विंध्याचल का ही नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि बांध की तकरीबन 50 प्रतिशत से अधिक फ्लाई ऐश रिहंद में बह गई है बाकी बची राख हटाई जा रही है।"

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भोपाल के क्षेत्रीय अधिकारी आरएस परिहार इस घटना को पर्यावरण के लिए बड़ा नुकसान मानते हैं, "एनटीपीसी विंध्याचल (सिंगरौली) की त्रासदी एस्सार की हुई घटना से बहुत बड़ी है और क्षेत्र का इकलौता पीने के पानी का स्रोत डैमेज हुआ है। प्लाई ऐश डैम का गड्ढा बहुत पुराना था जिस कारण यह दुर्घटना हुई।"

वह आगे बताते हैं, "यहां लगभग 35 लाख मीट्रिक टन प्लाई राख जमा थी जो नालों से होकर रिहंद बांध में चली गई। इससे पर्यावरण को कई तरह से नुकसान पहुंच सकता है। भू-जल दूषित हो सकता है। हमने प्राथमिक रिपोर्ट आगे भेज दी है।"


हालांकि, पर्यावरणविद् अश्वनी दूबे 35 लाख मीट्रिक टन वाली बात को झूठा मानते हुए कहा, "इतनी तो उनकी लिमिट है। सच कुछ और ही है। इस राख के बंधे को पांच बार ऊंचा किया गया है, जिससे एक करोड़ टन से अधिक राख रिहंद जलाशय में बहाई जा चुकी है। यह एक गंभीर अपराध के दायरे में आने वाला मामला है।"

"खतरनाक जहरीली राख को नालों के सहारे सीधे रिहंध में जाने दिया गया।यह बांध 20 लाख से ज्यादा लोगों के लिए पीने के पानी का प्रमुख स्त्रोत है। सोनभद्र-सिंगरौली के पीने के पानी का मुख्य स्रोत है रेणुका नदी पर बना रिहंद बांध। रेणुका नदी आगे चलकर सोन नदी में मिलती है और सोन नदी गंगा में। ऐसे में इसकी भयावहता का अनुमान लगा सकते हैं। सिंगरौली की आने वाली पूरी पीढ़ी बीमार हो जायेगी," वो आगे कहते हैं।

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एनजीटी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक मेगावाट बिजली के उत्पादन में 1800 टन फ्लाई ऐश(राख) निकलती है। इस राख में लगभग 20 प्रतिशत मोटी राख (बालू जैसी) और 80 प्रतिशत फ्लाई ऐश रहती है। भारत में राख उपयोग का स्तर 1991-1992 में मात्र 0.3 मिलियन टन की अल्प मात्रा से बढ़ कर 2010-11 में 26.03 मिलियन टन पहुंच गया था।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में फ्लाई ऐश का उत्पादन 2016 में लगभग 120 मिलियन मीट्रिक टन था, जो 2020 तक 150 मिलियन मीट्रिक टन तक हो सकता है।

नालों से होकर रिहंद बांध में पहुंचा जहरीला फ्लाई ऐश

पर्यावरण के मामलों पर लंबे समय से काम कर रहे 'पारदर्शी भारत सिविल सोसायटी' सिंगरौली के संस्थापक अजय चतुर्वेदी बताते हैं, "फ्लाई ऐश में मौजूद घटक पानी को विषैला कर देते हैं। इसमें भारी धातु, सिलिका, एल्यूमीनियम और कैल्शियम के ऑक्साइड, आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम और सीसा, पॉर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और ब्लैक कार्बन होते हैं, जो हवा के साथ उड़ते हुए 20 किमी तक फैल जाते हैं। नदी, नाले और तालाबों का पानी भी इससे जहरीला हो रहा है। इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट है।"

इसी साल 8 अगस्त को एस्सार पॉवर प्लांट का राखड़ डैम तेज बारिश की वजह से फूट गया था। इसकी चपेट में आने से सैकड़ों मवेशियों की मौत हो गई थी और कई एकड़ फसल चौपट हो गई थी।

सिंगरौली परिक्षेत्र में पिछले दो दशक से अवैध खनन, पेड़ों के कटान व प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे जगत नारायण विश्वकर्मा कहते हैं, " पहले जब यह बांध नहीं था तो यहां पीने के पानी का स्तर बहुत नीचे था। रिहंद बाध बनने के बाद पानी का स्तर तो बढ़ा लेकिन वो अब जहरीला हो चुका है। रिहंद का पानी लोगों तक सीधे नहीं पहुंच रहा लेकिन यहां कोई और नदी या तालाब नहीं है। इस बांध से सिंचाई के लिए पानी नहीं जा रहा लेकिन जमीन तो दूषित हो गई है।"

इस सीरीज की दूसरी खबरें आप यहां पढ़ सकते हैं-

सिंगरौली पार्ट 2- राख खाते हैं, राख पीते हैं, राख में जीते हैं
सिंगरौली पार्ट 3- मौत का पहाड़, सांसों में कोयला और जिंदगी में अंधेरा
सिंगरौली पार्ट 4- लोगों को जागरूक करने वाला पर्यावरण का सिपाही अब बैसाखी के सहारे चल रहा


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