'कभी भी समय पर नहीं मिली आरटीआई से सूचना'

आरटीआई एक्टिविस्ट को एक सूचना के लिए लग जाते हैं एक से डेढ़ साल। हर जानकारी के लिए नाकों चने चबाने पड़ते हैं। फोन पर धमकियां मिलती रहती हैं सो अलग।

Update: 2018-07-18 08:28 GMT

लखनऊ। अपने गाँव और स्कूल के विकास कार्यों के संबंध में पिछले पांच साल से आरटीआई से सूचना मांगते आ रहे सुखविंदर को कभी भी तय समय पर सूचना नहीं मिली। हर सूचना को पाने के लिए एक से डेढ़ साल का समय लगना तय था।

ललितपुर के महरौनी के करौरा गाँव में रहने वाले सुखविंदर सिंह परिहार पिछले पांच वर्षों से लगातार अलग-अलग विभागों से सूचना मांगते रहे हैं, लेकिन उन्हें हर सूचना के लिए नाकों चने चबाने पड़े।"नियमानुसार 35 दिन में कोई भी अधिकारी सूचना नहीं देता, इसके बाद विभाग के उच्च अधिकारी जो प्रथम अपीलीय अधिकारी भी होता है, के पास सूचना के लिए अपील करनी होती है," आरटीआई एक्टिविस्ट सुखविंदर सिंह परिहार ने फोन पर बताया, "अगर प्रथम अपीलीय अधिकारी से कोई सूचना न आए तो 45 दिन बाद दूसरी अपील राज्य सूचना आयोग में की जाती है। इस तरह से एक से डेढ़ साल लग जाते हैं, तब कहीं जाकर आधी-अधूरी सूचनाएं मिल पाती हैं।"

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लगातार सूचनाएं मांगने पर फोटोकॉपी आदि पर आने वाले खर्च के बारे में सुखविंदर बताते हैं, "हमारे मात्र 35 से 40 रुपये ही लगते हैं। क्यंकि आरटीआई एक्ट में प्रावधान है कि अगर सूचना 35 दिन में नहीं मिलती तो आवेदक को कोई पैसा नहीं देना पड़ता। हमें तो समय सीमा में कोई जानकारी मिली ही नहीं।"

सुखविंदर सिंह परिहार अब तक कई अधिकारियों पर कार्रवाई करा चुके हैं, तो कई पर जुर्माना भी किया गया है। "हम खंड विकास अधिकारी, जिला पूर्ति अधिकारी समेत कई लोगों पर कार्रवाई करा चुके हैं। हमें लगतार इसके लिए फोन पर धमकियां भी मिलती रहती हैं। कई बार तो लालच देने की भी कोशिश की गई," सुखविंदर सिंह परमार ने बताया।

भारत के पूर्व सूचना आयुक्त ने गाँव कनेक्शन से कहा, "सूचना आयुक्तों और सिविल सोसाइटी के लोगों से बात किए बिना आरटीआई कानून में संशोधन का बिल सरकार को नहीं लाना चाहिए। यह संशोधन बिल न केवल आरटीआई कानून को कमजोर बनाएगा बल्कि इसे समाप्त कर देगा। मुख्य सूचना आयुक्त का दफ्तर अन्य सरकारी कार्यालयों जैसा हो जाएगा।"

प्रस्तावित आरटीआई कानून में संशोधन बिल पर सुखविंदर सिंह ने कहा, "आरटीआई कानून अच्छा है, लेकिन इसे लगातार कमजोर करने की कोशिश की जाती रही है। अब तो शब्द सीमा भी निर्धारित कर दी है कि 599 शब्द से अधिक की सूचना नहीं मांग सकते," सुखविंदर सिंह ने बताया।

ग्राम पंचायत में हो रहे विकास को लेकर लगातार आरटीआई दखिल करने पर घर और गाँव में काफी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। "कई बार प्रधान जी हमारे माता-पिता जी से कह कर जाते हैं कि आप का लड़का हर किसी से दुश्मनी लेता रहता है" सुखविंदर ने बताया।

व्हिसल ब्लोअर सुरक्षा बिल-2014 संसद में मोदी सरकार ने पेश किया था, लेकिन चार साल गुजर जाने के बाद भी अब तक वह पास नहीं हो सका। 

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