11 महीने में 85 बाघों की मौत, कहीं बाघों के लिए कब्रगाह न बन जाए भारत

एक महीने के अंदर जिस तरह देश में दो बाघिनों की हत्या हुई, बाघ संरक्षण के प्रयासों पर सवाल उठने लगे हैं

Update: 2018-11-14 07:30 GMT

लखनऊ। एक महीने के अंदर जिस तरह देश में दो बाघिनों की हत्या हुई, बाघ संरक्षण के सरकार प्रयासों पर सवाल उठने लगे हैं। आंकड़ों में भले ही देश में बाघों की संख्या बढ़ रही हो, लेकिन उतनी तेजी से उनकी मौत भी हो रही है। एक आंकड़े के अनुसार देश में इस साल अब तक 85 बाघों की मौत हो चुकी है।

बीते अक्टूबर माह में महाराष्ट्र के यवतमाल में नरभक्षी बाघिन की मौत का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि इसी माह उत्तर प्रदेश के दुधवा नेशनल पार्क में ग्रामीणों ने एक बाघ को मार डाला। महाराष्ट्र में बाघिन अवनी को जिस तरह मारा गया, पूरी दुनिया में उसका विरोध हो रहा है।

वन्यजीव संरक्षणकर्ताओं का आरोप है कि सरकार ने अवनी को जिंदा पकड़ने का प्रयास ही नहीं किया। पोस्टमार्ट रिपोर्ट में भी यह खुलासा हुआ है कि जिस समय अवनी को मारा गया वह न तो हमलावर थी और न ही भाग रही थी। वहीं उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर खीरी स्थित दुधवा नेशनल पार्क के पास ग्रामीणों ने एक बाघिन को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला।

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मध्य प्रदेश, भोपाल के टाइगर एक्टिविस्ट अजय दुबे 'गाँव कनेक्शन' से फोन पर बताते हैं, "उत्तर प्रदेश में जो हुआ, वो बहुत गलत है। सरकार को सभी आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। कार्रवाई ऐसी हो जिससे और लोग आगे ऐसा करने से पहले सोचें। टाइगर राष्ट्रीय पुश होने के साथ-साथ दुर्लभ भी है। ऐसे में सजा और कड़ी होनी चाहिए।"

वहीं डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और महासचिव रवि सिंह ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा "भारत को अपने बाघों की रक्षा करने की जरूरत है और भारत ऐसा करेगा, लेकिन इसके लिए हमें सख्त योजना बनाने की जरूरत है।"

कान्हा टाइगर रिजर्व में घूमता बाघ। (फोटो साभार- मध्य प्रदेश फाॅरेस्ट विभाग )

2010 में सेंट पीटर्सबर्ग के बाघ शिखर सम्मेलन में जब हर साल बाघ दिवस मनाने का फैसला लिया गया था तब 13 देशों ने सहमति जताई थी कि 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करनी है। इसके लिए दानदाताओं से 1500 करोड़ रुपए जुटाने की भी बात हुई। लेकिन जिस तरह से बाघों को मारा जा रहा है, उससे इस लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल लग रहा।

देश में इस साल अब तक (११ महीने में) विभिन्न कारणों से 85 बाघों की मौत हो चुकी है। जबकि पिछला साल यानी 2017 बाघों के लिए मौत का साल रहा। देश भर में 116 बाघों की मौत हुई। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें 99 बाघों के शव और 17 बाघों के अवशेष बरामद किए गए। इन में से 32 मादा और 28 नर बाघों की पहचान हो सकी, बाकी मृत बाघों की पहचान नहीं हो सकी। इसमें 55 फीसदी माैतेें ही प्राकृतिक रूप से हुई हैं।

बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का नाम पहले नंबर पर आता है। वर्ष 2017 में वहां 29 बाघों की मौत हुई, जबकि इस प्रदेश में पिछले सात सालों में बाघों की सुरक्षा, मैनेजमेंट और टाइगर रिजर्व, अभयारण्यों से गाँवों की शिफ्टिंग पर 1050 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं, बावजूद इसके यहां बाघों की मौत का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है।

इसके अलावा 2017 में महाराष्ट्र में 21, कर्नाटक में 16, उत्तराखंड में 16 और असम में 16 बाघों की मौत दर्ज की गई। बाघों की मौत के पीछे करंट लगना, शिकार, जहर, आपसी संघर्ष, प्राकृतिक मौत, ट्रेन या सड़क हादसों को कारण बताया गया। वर्ष 2014 से अब तक 490 बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं। इनमें वर्ष 2014 में 66, वर्ष 2015 में 91, वर्ष 2016 में 132, वर्ष 2017 में 116 और वर्ष 2018 में नवंबर तक 85 मामले शामिल हैं।

फोटो साभार- डॉ साकेत बडोला (हेड वाइल्डलाइफ फंड, ट्रैफिक इंडिया) 

सरकार को बाघों को बचाने के लिए और गंभीर होना पड़ेगा। सरकार को ये भी सोचना चाहिए कि टाइगर जंगलों से बाहर आ ही क्यों रहे हैं? ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि शाकाहारी जानवरों का शिकार तेजी से हो रहा है। ऐसे में जब बाघ और शेरों को जंगल में खाना नहीं मिलेगा तो वे बाहर आएंगे ही। समस्या यहीं से शुरू हो जाती है। बाहर इंसानों के बीच आने पर दोनों की लड़ाई में जानवर मारे जा रहे हैं।"
अजय दुबे, टाइगर एक्टिविस्ट, भोपाल

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुताबिक, वर्ष 2004 में हुई गणना में देश भर में 1411 बाघ थे। सन 2011 में बाघों की तादाद बढ़ कर 1706 हो गई। सन 2014 में फोटोग्राफिक डाटा बेस के आधार पर देश भर में 2226 बाघ गिने गए। यह संख्या दुनिया भर के बाघों की संख्या का करीब 60 फीसदी है। दुनिया भर में बाघों की फिलहाल कुल संख्या लगभग 3900 है। इसमें से रूस में 433, इंडोनेशिया में 371, मलेशिया में 250 और नेपाल में 198 बाघ हैं।

वाइल्डलाइफ फंड और ट्रैफिक की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 100 सालों में दुनिया भर में बाघों की संख्या में 96 फीसदी की कमी आई है। 100 साल पहले बाघों की संख्या एक लाख से ज्यादा थी। हालांकि बाघों की संख्या में इधर बढ़ोतरी भी हुई है।

वाइल्डलाइफ फंड और ट्रैफिक के इंडिया हेड डॉ साकेत बडोला (भारतीय वन सेवा) गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं "भारत बाघों के संरक्षण के लिए सबसे बेहतर काम कर रहा है। इसका परिणाम भी हमें देखने को मिला कि कैसे देश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन चूंकि बाजार में बाघों के हर अंगों की मांग बहुत ज्यादा होती है इस कारण शिकारियों की नजर इन पर हमेशा रहती है, ऐसे में बाघों को सुरक्षित बचाना सबसे बड़ी चुनौती है।"

बाघों के संरक्षण के लिए सरकार ने सन 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था। तब से लेकर अब तक देश में 50 टाइगर रिजर्व बनाए गए हैं, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.12 प्रतिशत है। सन 2014 के बाद इस साल फिर देश भर में बाघों की गणना हो रही है। इस बार गणना में परंपरागत तरीकों के अलावा हाईटेक तरीके का भी इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एक मोबाइल ऐप भी बनाया है। इसे मॉनिटरिंग सिस्टम फॉर टाइगर इंटेंसिव प्रोटेक्शन एंड इकोलॉजिकल स्टेट्स या एम स्ट्राइप्स नाम दिया गया है।

राजस्थान के रणथंभोर बाघ अभ्यारण में आराम करता बाघ। (फोटो साभार आदित्य सिंह, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर)

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और बाघों पर रिपोर्टिंग करने वाले शशिकांत मिश्रा गाँव कनेक्शन से फोन पर बताते हैं,, "बाघों को अब शिकारियों के साथ-साथ ग्रामीणों से भी खतरा है। इसके लिए सरकार को ग्रामीणों को जागरूक करने की मुहिम चलाई जानी चाहिए। इसके बाद शिकारियों की रोकथाम के लिए व्यापक कदम उठाने पड़ेंगे।" शशिकांत आगे कहते हैं, "करंट की चपेट में भी आने से बाघों की मौत हो रही है। जहां से बिजली के तार गये हैं वहां की निगरानी कराने की बात केंद्र सरकार ने एक बार कही थी, लेकिन उस योजना का विस्तार ही नहीं हो पाया। ऐसे में हर साल टाइगर डे मनाने से टाइगर नहीं बचने वाले। इसके लिए कारगर कदम उठाने होंगे।"

नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया, प्रोजेक्ट टाइगर के आंकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार ने देश भर के टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण के लिए वर्ष 2007 से 2012 के बीच कुल 792 करोड़ रुपए खर्च किए। जबकि 2012 से 2018 के लिए 1349 करोड़ रुपए स्वीकृति किया गया है।

कंजरवेशन एक्शन ट्रस्ट के ट्रस्टी देबी गोयनका बताते हैं, "देश में बाघ तभी सुरक्षित रह पाएंगे जब उनके निवास स्थान को सुरक्षित रखा जाएगा। इसके साथ-साथ टाइगर कोरीडोर की सुरक्षा करनी होगी। जंगलों में अतिक्रमण रुके और विभाजित न किया जाए, अगर ये कदम जल्द से जल्द नहीं उठाए गए तो वो दिन दूर नहीं जब हम बाघों को भी खो देंगे।"

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एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने इसी साल राज्य सभा में बताया था कि देश के 7,64,000 लाख स्क्वायर किलोमीटर जंगल की जमीन में से 13,612 स्क्वायर किलोमीटर पर अवैध रूप से कब्जा है। ये देश की भूमि का लगभग 23 प्रतिशत हिस्सा है। मध्य प्रदेश, आसाम, कर्नाटक और ओडिशा के जंगलों में अतिक्रमण है।

ओडिशा के ढ़ेंकनाल जिले के बलरामपुर गाँव में एक छोटा सा जंगल है जिसे सरकार ने बियर बनाने वाली कंपनी को दिया है। यहां 160 किस्म के 10 हजार से ज्यादा पेड़ हैं। इस जंगल में 40 से 50 हाथी रहते हैं। ग्रामीण इसके विरोध में लगातार विरोध कर रहे हैं।

पन्ना टाइगर रिजर्व के फिल्ड डायरेक्टर केएस भदौरिया कहते हैं "बाघों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन जंगल सिकुड़ रहा है। जंगलों में इंसानों का अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है, ऐसे में टाइगर कहां जाएंगे। इंसानों को यह समझना होगा कि हमारी ही तरह उनका भी घर है, जिसको हम छीन रहे हैं, इसका परिणाम गलत ही होगा। ऐसे में अब सबसे बड़ी चुनौतो तो यह होगी कि बाघों और जंगलों को बचाया कैसे जाए।"

फोटो- डब्ल्यूडब्ल्यूएफ से साभार

क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे अधिक जंगल मध्य प्रदेश में

जंगल (स्क्वायर किमी में)

  1. मध्य प्रदेश- 77.5 हजार
  2. अरुणाचल- 67.2 हजार
  3. छत्तीसगढ़- 55.6 हजार
  4. महाराष्ट्र- 50.5 हजार
  5. ओडिशा- 50.4 हजार

बाघों के दखल वाला क्षेत्र

(स्क्वायर किलो मीटर में)

2006- 93,700

2010- 81,906

2014- 89,164

(स्रोत: इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट)

टाइगर एक्टिविस्ट अजय दुबे आगे कहते हैं, "सरकार को बाघों को बचाने के लिए और गंभीर होना पड़ेगा। सरकार को ये भी सोचना चाहिए कि टाइगर जंगलों से बाहर आ ही क्यों रहे हैं? ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि शाकाहारी जानवरों का शिकार तेजी से हो रहा है। ऐसे में जब बाघ और शेरों को जंगल में खाना नहीं मिलेगा तो वे बाहर आएंगे ही। समस्या यहीं से शुरू हो जाती है। बाहर इंसानों के बीच आने पर दोनों की लड़ाई में जानवर मारे जा रहे हैं।" एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2017 के बीच देश में हाथी, बाघ और तेंदुए के हमले में 1608 लोगों ने अपनी जान गंवा दी।

इंसानों से बढ़ा संघर्ष

  • 20 सालों में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई
  • पिछले साल फरवरी में 6 लोगों को मारने वाले बाघ को जिंदा पकड़ा गया
  • 2017 में ही अक्टूबर में चार लोगों को जान लेने वाली बाघिन को मार डाला गया
  • 2018 अक्टूबर में महाराष्ट्र के यवतमाल में नरभक्षी बाघिन अवनी को मारा गया
  • अक्टूबर 2018 में ही दुधवा नेशनल पार्क में ग्रामीणों ने बाघिन को पीटकर मार डाला

बाघ इंसानों पर हमला तभी करता है जब उसके बच्चे के आसपास लोगों का दखल बढ़ता है। ऐसे में सरकार को व्यापक कदम उठाना चाहिए कि हम जंगलों पर कब्जा क्यों कर रहे हैं, हम उनके घरों को क्यों छीनें।
देबी गोयनका, ट्रस्टी, कंजरवेशन एक्शन ट्रस्ट

इन देशों में बाघ की स्थिति

देश

बाघ

भारत

2,226

रूस

433

इंडोनेशिया

371

मलेशिया

250

नेपाल

198


वर्ष 1994 से 2018 तक इतने बाघों का हुआ अवैध शिकार

वर्ष        बाघों की संख्या

1994     95

1995     121

1996     52

1997     88

1998     39

1999     81

2000     52

2001     72

2002     46

2003     38

2004     38

2005     46

2007     २७

2006    37

2008     39

2009     32

2010     30

2011     13

2012     32

2013     43

2014     23

2015     26

2016     50

2017     38

2018     25

(स्रोत: वर्ल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया)

बाघों की प्रजाति और संख्या

सुमात्रा टाइगर: सुमात्रा टाइगर की संख्या 400 बची हैं। ये टाइगर इंडोनेशिया के जावा आइलैंड और उसके आस-पास पाए जाते हैं।

अमूर टाइगर: इन्हें साइबेरियन टाइगर भी कहते हैं। इनकी संख्या 540 हैं। दक्षिण-पूर्वी रूस, उत्तर-पूर्वी चीन में पाए जाते हैं।

बंगाल टाइगर: भारत, नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार में पाए जाते हैं। इनकी कुल संख्या 2500 है।

इंडो चीन टाइगर: इंडो चीन टाइगर की संख्या केवल 350 बची हैं। यह थाईलैंड, चीन, कंबोडिया, म्यांमार, विएतनाम जैसे देशों में पाए जाते है।

साउथ चीन टाइगर: दक्षिण-पूर्वी चीन में पाई जाने वाली ये प्रजाति विलुप्त हो चुकी है।

(डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार)

(फोटो साभार आदित्य सिंह, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर)

क्या कहते हैं आंकड़े

  1. कभी 50 हजार से ज्यादा थी बाघों की संख्या
  2. देश में टाइगर रिजर्व की कुल संख्या- 50
  3. 18 राज्यों में है टाइगर रिजर्व
  4. 2.2 फीसदी क्षेत्र आता है इसके तहत
  5. बाघों वाला वन क्षेत्र कुल 90 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है
  6. 2004 में 1410 थी बाघों की संख्या
  7. 2011 में संख्या बढ़कर 1706 हो गई
  8. 2014 में ये 2,226 हुई बाघों की संख्या
  9. देश में एक लाख बाघ थे 19वीं सदी के अंत तक
  10. शिकार की वजह से महज 100 बाघ बचे थे 1970 में भारत में

शिकारियों को नहीं मिलती सजा

  • मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 2008 में 30 बाघ खत्म हुए
  • केवल एक फीसदी शिकारियों को ही मिल पाती है सजा
  • हर साल औसतन 1.4 लाख हेक्टेयर जंगल खत्म हो रहा
  • बाघों के अंगों की मांग वियतनाम और चीन में सबसे ज्यादा

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