उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि कृषि अधिकतर भारतीयों की मुख्य आजीविका है, लेकिन किसानों को यह व्यवसाय आकर्षक नहीं लगता क्योंकि इसमें आय तथा उत्पादकता कम है। उन्होंने 19 जनवरी को बेंग्लुरु में सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन संस्थान में 14वां डॉ. वीकेआरवी स्मृति व्याख्यान देते हुए यह कहा।
उन्होंने कहा कि तेज, समावेशी और सतत विकास की रणनीतियों से किसानों की समस्याओं को हल करना होगा। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-नाम और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी सरकारी पहलों से किसानों को उत्पादकता में सुधार करने और बेहतर लाभ प्राप्त करने की दिशा में मदद मिल रही हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने खाद्यन्न की कमी पर कामयाबी से विजय प्राप्त कर ली है। हम खाद्यान्न आयात करने की स्थिति से बढ़कर इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गए हैं और अब खाद्यान्न का निर्यात कर रहे हैं। पहले हम मामूली तरीके से किसानी करते थे, लेकिन अब प्रौद्योगिकी आधारित खेती करने लगे हैं। उन्होंने कहा कि इस समय कई फसलों के उत्पादन में भारत शीर्ष स्थान पर पहुंच गया है। विश्व में भारत सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन कर रहा है और वह हरित, श्वेत, नील और पीत क्रांतियों में बड़े बदलावों से गुजर रहा है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के निवेशों में बढ़ोतरी की आवश्यकता है। हमें इस बात की जरूरत है कि दीर्घकालीन और मध्यकालीन कार्य योजना बनाएं, जिनके तहत निजी और सार्वजनिक निवेशों को लामबंद किया जा सके। हमें रणनीतिक दिशाएं भी तय करनी होंगी, ताकि इस क्षेत्र को दोबारा ऊर्जावान बनाया जा सके।
उपराष्ट्रपति के 12 सुझाव
- बेहतर बीजों का इस्तेमाल करें ताकि उत्पादकता में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हो।
- कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल करें।
- सीमान्त और छोटे किसानों द्वारा नवाचार अपनाने की दिशा में सामयिक संस्थागत ऋण मुख्य भूमिका निभाता है।
- पशु पालन, मछली पालन और मुर्गी पालन जैसी संबंधित गतिविधियों के साथ खेती को जोड़ना और विस्तार करना। इस कदम से किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- भारत में खेती के यंत्रीकरण को बढ़ाना होगा।
- कृषि गतिविधियों को तेज करने और कृषि को बागवानी से जोड़ने तथा पहाड़ में कृषि के यंत्रीकरण से किसानों की आय बढ़ सकती है।
- कृषि आधारित उद्योगों के प्रोत्साहन के मद्देनजर ईको-प्रणाली को मजबूत करना होगा।
- पानी के इस्तेमाल के प्रति बेहतर समझ बनानी होगी।
- किसानों को उपभोक्ता मूल्य के बड़े हिस्से को समझना होगा।
- हमें भू-नीति में मूलभूत सुधारों पर गौर करना होगा।
- हमें जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर कृषि गतिविधियों को विकसित करने की जरूरत है।
- ज्ञान को साझा करने की प्रक्रियाओं को दुरुस्त करना होगा।