विशेष : क्रांतिकारी, डॉक्टर, लेखक, गुरिल्ला नेता, और सामरिक सिद्धांतकार कुछ ऐसे थे चे ग्वेरा

Update: 2019-06-14 11:51 GMT
प्रतीकात्मक फोटो (चे - ग्वेरा )

अर्नेस्तो "चे ग्वेरा" अर्जेन्टीना के मार्क्सवादी क्रांतिकारी थे इनका जन्म 14 जून सन 1929 को रोज़ारियो, अर्जेंटीना में हुआ था। पांच संतानों के आर्जेंटीयन परिवार के वे सबसे बड़े बेटे थे।

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इन्हें एल चे या सिर्फ चे भी बुलाया जाता है। ये डॉक्टर, लेखक, गुरिल्ला नेता, सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने दक्षिणी अमरीका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया। चिकित्सीय शिक्षा के दौरान चे पूरे लातिनी अमरीका में घूमे। इस दौरान पूरे महाद्वीप में व्याप्त गरीबी ने इन्हें हिला कर रख दिया। इन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारण थे एकाधिकार पूंजीवाद, नव उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था - विश्व क्रांति।

इसी निष्कर्ष का अनुसरण करते हुए इन्होंने गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। उनकी क्रांतिकारी सोच और मजबूत हो गई जब 1954 में गुज़मान को अमरीका की मदद से हटा दिया गया। इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में इन्हें राऊल और फिदेल कास्त्रो मिले और ये क्यूबा की 26 जुलाई क्रांति में शामिल हो गए। चे शीघ्र ही क्रांतिकारियों की कमान में दूसरे स्थान तक पहुँच गए और बातिस्ता के राज्य के विरुद्ध दो साल तक चले अभियान में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई।

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क्यूबा की क्रांति के पश्चात चे ने नई सरकार में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए और साथ ही सारे विश्व में घूमकर क्यूबा के समाजवाद के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाया। इनके द्वारा प्रशिक्षित सैनिकों ने पिग्स की खाड़ी को सफलतापूर्वक पछाड़ा। ये सोवियत संघ से नाभिकीय प्रक्षेपास्त्र ले कर आए, जिनसे 1962 के क्यूबन प्रक्षेपास्त्र संकट की शुरुआत हुई और सारा विश्व नाभिकीय युद्ध के कगार पर पहुँच गया।

चे ने बहुत कुछ लिखा भी है, इनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ हैं, गुरिल्ला युद्ध की नियम-पुस्तक और दक्षिणी अमरीका में इनकी यात्राओं पर आधारित मोटरसाइकल डायरियाँ। 1965 में चे क्यूबा से निकलकर कांगो पहुंचे जहाँ इन्होंने क्रांति लाने का विफल प्रयास किया। इसके बाद ये बोलिविया पहुँचे और क्रांति उकसाने की कोशिश की, लेकिन पकड़े गए और इन्हें गोली मार दी गई।

मृत्यु के बाद भी चे को आदर और धिक्कार दोनों ही भरपूर मिले हैं। टाइम पत्रिका ने इन्हें 20वीं शताब्दी के सौ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सूची में शामिल किया।

फोटो साभार - हिस्ट्री डॉट कॉम 

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मरने से पहले चे का सपना तो पूरी हकीकत में नही बदल पाया लेकिन उनका संघर्ष अवश्य हकीकत बन गया। उनके द्वारा किये गये संघर्ष से आज भी करोडो लोग प्रेरणा लेते है। चे मार्क्सवाद को समर्पित बीसवी सदी के शायद सबसे प्रतिबद्ध विचारक-योद्धा थे। क्योकि चे के बाद क्रांतिकारी समाजवाद की डोर लगभग कट सी गयी थी। चे एक कुशल लेखक और विचारक थे। उन्होंने युद्ध के विषय को लेकर अपनी एक पुस्तक "गुरिल्ला वारफेयर" भी लिखी। इतिहास का यह एक विद्रोही नेता सर्वश्रेष्ट कवी भी था।

बोलिविया अभियान की असफलता को लेकर लिखी यह कविता उनकी आखरी वसीयत के समान है, "हवा और ज्वार" शीर्षक से लिखी गयी यह कविता उनके आदर्शवादी सोच की तरफ इशारा करती है। अपनी कविता में चे ने अपना सब कुछ क्रांति के नाम समर्पित करने को कहा था। वैसा उन्होंने किया भी, औपनिवेशक शोषक से मुक्ति तथा जनकल्याण हेतु क्रांति की उपयोगिता को उन्होंने न केवल पहचाना बल्कि उसके लिये आजीवन संघर्ष करते रहे। अंततः उसी के लिये अपने जीवन का बलिदान भी दिया। चे में बुद्धि और साहस का अनूठा मेल था।

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