महाराष्ट्र का एवरेस्ट है कलसुबाई : आपका भी मन मोह लेंगे ये 2 गाँव

Update: 2018-02-15 19:23 GMT
महाराष्ट्र का एवरेस्ट है कलसुबाई

दीपक मिश्र

लखनऊ। घने कोहरे से ढके हुए विशाल पर्वतों की श्रृंखला जिनके मध्य में स्थित है महाराष्ट्र की सबसे ऊंची चोटी-माउंट कलसुबाई। महाराष्ट्र के नासिक जिले के इगतपुरी तालुका में स्थित माउंट कलसुबाई महाराष्ट्र की सबसे ऊंची चोटी है।

’महाराष्ट्र के एवरेस्ट’ नाम से प्रसिद्ध इस चोटी की ऊंचाई समुद्र तल से 1646 मीटर है। जिसके अंचल में बसते हैं दो खूबसूरत गांव। एक है बारी और दूसरा गाँव है बाड़ी। वैसे बाड़ी का पूरा नाम है ’अहमदनगर बाड़ी’ है, मगर दोनों गांवों की समीपता के कारण उनके नामों में भी समीपता आ गयी है। इस प्रकार सहयाद्री श्रृंखला का यह भाग ’बारी-बाड़ी’ के नाम से जाना जाता है। दोनों गांवों में कुल मिलाकर लगभग 40 से 50 घर हैं। छोटे-छोटे पहाड़ी खेतों में धान के पौधे हवा में झूम रहे हैं। इनकी महक से वातावरण सुगंधित हो उठता है। गांव के एक किसान भीमराज ने बताया कि ये धान की ’इंद्राणी’ प्रजाति है जिसके पौधों से विशेष सुगंध निकलती है।

कल-कल करते झरनों में गूंज रही हंसी

महाराष्ट्र का एवरेस्ट है कलसुबाई

बारी गाँव के पूर्वा छोर पर एक विद्यालय स्थित है, जिसमें दोनों गाँव के बच्चे पढ़ते हैं। दोनों गाँवों के मध्य में एक कुआं है, जिसके पानी से दोनों गाँवों की जलापूर्ति होती है। मानसून का समय है। इस वर्ष बारिश अच्छी हुई है। ऐसे में कुएं का पानी सतह से मात्र दो फीट नीचे है। गांव की कुछ महिलायें एक थैलेनुमा कपड़े को रस्सी से बांधकर पानी निकाल रही हैं। उससे कुछ ही दूरी पर सड़क के उस पार झरने का पानी खेतों से होता हुआ बह रहा है। ऐसा प्रतीत होता जैसे हरियाली की चादर ओढ़े पहाड़ों की हंसी कल-कल करते झरनों में गूंज रही है।

बाड़ी गांव से शुरू होती है चढ़ाई

महाराष्ट्र का एवरेस्ट है कलसुबाई

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साल के बारहों मास देश के कोने-कोने से लोग महाराष्ट्र के इस अद्भुत सौंदर्य का दर्शन करने आते हैं। पर्वत की चोटी पर स्थित है देवी कलसुबाई का मन्दिर। उनके नाम पर ही इस चोटी का नाम ’माउण्ट कलसुबाई’ पड़ा और सप्ताहांत में यहां खास जमावड़ा लगता है। बाड़ी गांव से कलसुबाई की चढ़ाई प्रारंभ होती है। चढ़ाई तकरीबन साढ़े तीन घण्टे की है जो टेढ़े-मेढ़े और घुमावदार पथरीले रास्तों से तय होती है। कहीं पहाड़ों को सीढ़ीनुमा बनाया गया है तो कहीं लोहे की सीढ़ियों का प्रयोग किया गया है। बीच-बीच में जलपान की दुकानें के साथ विश्राम का भी सुअवसर प्रदान करती हैं। वहीं दूसरी ओर लगभग आधी चढ़ाई पर साढ़ियों पर बैठा बन्दरों का जत्था अपने जल-पान का इंतजार कर रहा होता है।

बारिश में रास्ता फिसलन भरा हो जाता है, जिससे अति सावधानी से कदम रखने पड़ते हैं। चोटी समतल है जिसके बीच में कलसुबाई का मन्दिर है। पहाड़ की इस ऊंचाई पर तापमान काफी गिर जाता है और हवायें काफी तेज होती हैं। चारों ओर धुंध बिखरी हुई है। ऐसा लगता है जैसे धरती-आकाश का स्वरुप एक हो गया है। धवलवर्णी और इन सबके मध्य कलसुबाई का केसरिया मन्दिर अपनी पूर्ण आभा में विद्यमान। प्रत्येक मंगलवार और बृहस्पतिवार देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र का समय खास होता है। इस अवसर पर यहां मेला भी लगता है।

पयर्टन और कृषि आय का प्रमुख स्त्रोत

महाराष्ट्र का एवरेस्ट है कलसुबाई

पर्यटन और कृषि ग्रामवासियों की आय का प्रमुख स्त्रोत है। धान यहां की प्रमुख फसल है। यहां एक खास तिलहन की खेती होती है, जिसे स्थानीय भाषा में ’’खुरासनी’’ कहा जाता है। इसके पौधे 2-3 फीट लंबे होते हैं और इसकी पत्तियां अरहर की पत्तियों के समान होती हैं। इनके बीज सूर्यमुखी के बीज के समान काले रंग के होते हैं। इसका प्रयोग खाने के अलावा औषधि के रुप में भी किया जाता है। खुरासनी के तेल का प्रयोग स्थानीय लोग चोट और जले-कटे स्थानों पर दवा की तरह करते थे। एक बुजुर्ग काकी ने बताया कि ये तेल घुटनों के दर्द यानि ’बताश’ की रामबाण औषधि है। पर अफसोस गांव की युवा पीढ़ी खुरासनी को उसके औषधिय गुणों को कम ही जानती है।

बारिश का मौसम के बाद बदल जाती है सूरत

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आमतौर पर ये विश्वास नहीं होता कि ये हरियाली और ये पानी मात्र तीन महीनों के मेहमान होते हैं। पर बारिश का मौसम समाप्त होते ही ये झरने खेतों का साथ छोड़ जाते हैं और पानी से लबा-लब भरे हुए कुएं मात्र नुमाइश की चीज हो जाता है।

पिछले वर्ष बारिश कम होने के कारण मानसून के तीन महीनों को छोड़कर साल के बाकी नौ महीनों तक गांव-वालों को पीने के पानी की भी किल्लत रही। महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध पयर्टन स्थल होने के बावजूद यहां की समस्या की ओर सरकार का कोई ध्यान नही है। हम यही उम्मीद करते हैं कि इस बार गांव वालों के सामने पानी की विकट परिस्थिति उत्पन्न न हो।

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