इन बच्चों को पढ़ाना अभय के लिए सिर्फ नौकरी नहीं, 5000 दिव्यांग बच्चों को बना चुके हैं साक्षर
रायबरेली। मन के हारे हार है मन के जीते जीत, ये पंक्तियां हम सभी ने स्कूल की किताबों में पढ़ीं या सुनी थीं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इस मान्यता को ज़िंदगी में भी सच कर दिखाते हैं। रायबरेली के अभय श्रीवास्तव ऐसी ही एक शख्सियत हैं।
34 साल के अभय यूं तो बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक (विशेष सहायक) हैं लेकिन इनका परिचय इससे कहीं ज़्यादा है। अभय लंबे वक्त से दिव्यांग बच्चों के लिए काम कर रहे हैं और विकलांगता की चारों विधाओं से ग्रस्त बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि हर बच्चा खास होता है, दिव्यांगता किसी भी बच्चे की प्रतिभा को ज़रा भी कम नहीं कर सकती, हां ये ज़रूरी है कि ऐसे असहाय बच्चों की हिम्मत टूटने ना दी जाए। अभय बीते कई सालों से ऐसे बच्चों को कई तरह से ट्रेंड करते हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई के अलावा उनकी प्रतिभा को निखारते हैं।
एक सरकारी रिसर्च बताती है कि हमारे देश में ज़्यादातर दिव्यांग बच्चे पांचवीं से आठवीं के दौरान पढ़ाई छोड़ देते हैं। क्योंकि वो शारिरिक दिक्कतों के चलते मन से टूट जाते है, शायद इसलिए क्योंकि उन्हें अपना आने वाला कल मुश्किल लगता है, वो खुद को मुख्यधारा से नहीं जोड़ पाते। लेकिन अभय दिव्यांग बच्चों के इस एहसास को समझते हैं और इसीलिए उनके लिए काम करते हैं। पूरे ज़िले में उनके अभियान से तकरीबन पांच हज़ार बच्चे जुड़ चुके हैं जो मौजूदा वक्त में दसवीं औऱ बारहवीं के छात्र हैं। गांव कनेक्शन ने जब ऐसे छात्रों से बात की तो उन्होंने बताया कि मास्टर साहब के सहयोग के चलते ही वो आज अपनी तालीम पूरी कर पा रहे हैं।
देखिए वीडियो में-अभय की पूरी कहानी
हमारे देश के सरकारी स्कूलों और शिक्षकों के बारे में आम राय चाहे जो भी हो लेकिन ये बच्चे और इनके अभिभावक अभय सर को बहुत चाहते हैं। वो कहते हैं कि अभय सर उन्हें हौसला और हिम्मत न देते तो शायद वो ये कभी न समझ पाते कि विकलांगता सिर्फ एक मनोस्थिति है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। अगर कोई शख्स पूरी लगन मेहनत और हिम्मत के साथ अपने सपनों को पूरा करना चाहे तो उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। अभय के ट्रेंड बच्चों से मिलकर ऐसा लगता ही नहीं कि उन्हें कहीं किसी तरह की कोई दिक्कत है, वो खेलते हैं, कूदते हैं, पढ़ते है और हां शैतानी भी करते हैं। अजय श्रीवास्तव की इस कोशिश के लिए गांव कनेक्शन ने उन्हें साल 2016 के स्वयं अवार्ड से सम्मानित भी किया था। गांव कनेक्शऩ टीवी की रिपोर्ट।