सेम, बाकला, केवांच और ग्वार में होते हैं दवाओं वाले गुण, इन सब्जियों की खेती करें किसान

Update: 2017-11-29 10:28 GMT
दलहनी सब्जियाें की खेती को बढ़ावा।

लखनऊ। देश-दुनिया में जिस तरह से सब्जियों की मांग बढ़ रही है उस अनुपात में सब्जियों की पैदावार नहीं हो रही है, स्थिति यह है कि देश में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जियों की आवश्यकता होती है लेकिन उपलब्धता मात्र 240 ग्राम सब्जियों की है।

ऐसे में स्नो पी, रनर बीन, लांग बीन, लीमा बीन, सेम, बॉकला, केवांच, ग्वार और सब्जी सोयाबीन जैसी दलहनी सब्जियों की खेती करके किसान इस कमी को दूर कर सकते हैं। सितंबर से लेकर अक्टूबर तक इसकी बुवाई का समय है किसान इसकी उन्नत किस्मों के बीजों को लेकर इसकी बुवाई कर सकते हैं।

देश के सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतगर्त आने वाले भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी ने दलहनी सब्जियों के खेती का रकबा बढ़ाने के लिए किसानों को जागरूक कर रहा है। यहां के वैज्ञानिक डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने बताया '' पोषण, सुरक्षा और आय के लिए किसानों को दलहनी सब्जियों की खेती करनी चाहिए। इन सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं इसलिए बाजार में इनकी मांग भी अधिक है। ''

उन्होंने बताया कि भारत जैसे देश जहां पर प्रोटीन की कमी एक समस्या और अधिकतर जनसंख्या शाकाहारी है, ऐसे में दलहनी सब्जियां मांसाहार का विकल्प होने के साथ ही प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत हैं। दलहनी सब्जियों में औषधीय गुण पाए जाते हैँ और विभिन्न रोगों को खासकर डायबिटीज, प्रोस्टेट कैंसर और पर्किसन्स जैसी बीमारी से लड़ने की क्षमता भी इसमें अधिक होती है।

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दलहनी सब्जियों में प्रमुख स्नो पी की बुवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह करते हैं। सामान्य मटर से स्नो पिन भिन्न होती है और इसकी संपूर्ण फलियां खाने के काम में लाई जाती हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसकी फलियां प्रारंभिक अवस्था में फूलकर चपटी हो जाती हैं और दाने अविकसित रहते हैं। यह खाने में बहुत स्वादिष्ट होती हैं। विटामिन सी, आयरन और पोटैशियम की इसमें भरपूर मात्रा पाई जाती है। स्नो पी की खेती पश्चिम आस्ट्रेलिया में सबसे पहले शुरू की गई थी। 8 से लेकर 12 सप्ताह में यह तैयार हो जाती है। भारत में स्नो पी की वीआरपीडी-2 और वीआपीडी 3, मीठी फली, स्वर्ण तृप्ति और अर्का अपूर्वा की उन्नत किस्मों को विकसित किया गया है, जिसकी खेती करके किसान लाभ कमा सकते हैं।

लांग बीन

स्नेक के बीन के नाम से भी जाने जाना वाला लांग बीन भी एक प्रमुख दलहनी सब्जी है। इसकी मुलायम फलियां सब्जी के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं। इसके दूसरे सब्जियों के साथ मिलकर भी बनाया जाता है। लांग बीन की मुलायम पत्तियों और टहनियां को भी सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं। माना जाता है कि इस सब्जी की उत्पत्ति चीन में हुई थी। इसकी खेती ऐसी जगहों पर हो सकती है जहां पर दिन का तापमान 25 से 35 डिग्री रहे और रात का 15 डिग्री सेंटीग्रेड। बीन में ही रनर बीन भी एक प्रजाति है जिसको सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते हैं। रनर बीन की फलियां और सूखे बीज दोनों के सब्जी के रूप में उपयोग करते हैं।

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लांग बीन।

ग्वार

दलहनी सब्जियों में ग्वार भी एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई है। सूखरोधी होने के कारण कम पानी में भी इसकी अच्छी खेती होती है। महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में इसकी प्रमुख रूप से खेती होती है।

ग्वार ।

केवांच

केवांच एक लतायुक्त पौधा होता है, जिसकी फलियां भूरे रंग के रेशे से ढंकी रहती हैं। केवांच की मुलायम फलियों को सब्जी और भुर्ता बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी फलियां, बीज और जड़ को औषधी के रूप में भी महत्व है। इसके बीज में एल डोपा नमक पाया जाता है, जो पर्किन्सस रोग और तनाव को दूर करने में काफी कारगर है। एमएन-1, एमयू-1 इसकी उन्नत प्रजाजियों है, जिनसे अधिक उपज ली जा सकती है।

सेम

सेम भी एक उपयोगी दलहनी फसल है, जिसकी फली, बीज, जड़ें, फूल और पत्तियां खाने के काम में आती हैं। इसकी फलियों में प्रोटीन की मात्रा लगभग 2.4 ग्राम प्रति 100 ग्राम पाई जाती हैं। खनिज और विटामिन भी इसमें प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। सेम में एंटीआक्सीडेंट का गुण पाया जाता है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान की तरफ से इसकी खेती के लिए उन्नत प्रजातियों को विकसित किया गया है। आईआईएचआर सेलेक्शन-21, डब्ल्यूबीसी-2 और सेलेक्शन 71 प्रजाति की खेती करके अच्छी उपज ली जा सकती है।

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बाकला

यह भी प्रमुख दलहनी सब्जी है, जिसमें अन्य सब्जियों के मुकाबले अधिक प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। बाकला की खेती बहुत प्राचानी काल से ही की जा रही है इसलिए इसे बीन ऑफ हिस्ट्री या बीन ऑफ बाईबिल भी कहा जाता है। इसकी बुवाई सितंबर से लेकर अक्टूबर तक की जाती है। पूस सुमित और स्वर्ण सुरक्षा इसकी उन्नत किस्में हैं। बुवाई के तीन महीने बाद यह तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 890 से लेकर 100 कुंतल इसकी उपज होती है। कुपोषण खासकर प्रोटीन की कमी के शिकार लोगों के लिए इसकी सब्जी उत्तम आहार है। एनीमिया और पीलिया रोग में भी इसका सेवन फायदेमंद माना जाता है।

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